वैबसाइट से लें आंतों की टी.बी. के इलाज की जानकारी

Monday, May 13, 2019 - 12:28 PM (IST)

चंडीगढ़(पाल): आंतों की टी.बी. एक खतरनाक बीमारी है जबकि ज्यादातर लोगों को केवल फेफड़े की टी.बी. के बारे में ही पता होता है। इस बीमारी के सिम्टमस क्रोन्स बीमारी से मिलते-जुलते हैं। कई बार तो डॉक्टर आंतों की टी.बी. और क्रोंस के अंतर को नहीं समझ पाते जिसकी वजह से गलत इलाज चलता है और इस कारण यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती चली जाती है। 

इसी को देखते हुए पी.जी.आई. गेस्ट्रोऐट्रोलॉजी विभाग ने एक नई पहल शुरू की है विभाग की ओर से एक वैबसाइट लॉन्च की गई है जिसमें मरीज को इस बीमारी के बारे में सारी डिटेल्स मिल सकेगी। यही नहीं डाक्टर्स को ट्रैंड करने व उन्हें इस बीमारी से अपडेट करने के लिए इसमें कई फीचर्स एड किए गए हैं। मरीजों को इससे काफी सहूलियत हो रही है और वे आसानी से डॉक्टर्स से राय ले रहे हैं।

डाक्टर के नंबर व ईमेल एड्रैस भी
गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के डा. विशाल शर्मा के मुताबिक कन्नड़, तेलुगू, पंजाबी, इंग्लिश, हिंदी समेत 7 भाषाओं में इसे ट्रांसलेट किया गया है ताकि दूसरी स्टेट्स के लोग भी इसकी मदद ले सके। बीमारी को लेकर मरीज के बहुत सवाल होते है शुरूआती दौर में डायग्रोस न होने पर मरीज लक्षणों को अनदेखा कर देता है इन सभी को वैबसाइट में डाला गया है।

इसकी खास बात यह है कि मरीज अपने सवाल पी.जी.आई. डाक्टर से पूछ सकता है इसके लिए बकायदा साइट पर डाक्टर के नंबर व इमेल एड्रैस दिया गया है। ऐसा पहली बार हुआ कि किसी बीमारी को लेकर इस तरह का कदम उठाया गया हो। वहीं, डाक्टर्स व एक्सपर्ट के लिए लेटैस्ट रिसर्च पेपर्स व ट्रीटमैंट व डब्लू.एच.ओ. की गाइडलाइंस को भी इसमें शामिल किया गया है ताकि डाक्टर्स इस बीमारी को लेकर अपडेट रहें। 

थाईलैंड व फिलीपींस से आ रहे हैं मरीजों के सवाल 
abdominaltb.org पर जाकर कोई भी इसकी मदद ले सकता है। डा. विशाल ने बताया कि बीमारी को लेकर इंडिया से ही नहीं बल्कि थाईलैंड व फिलीपींस जैसे कई दूसरे देशों से भी मरीज संपर्क कर रहे है। ज्यादातर लोगों के सवाल ट्रीटमैंट व क्रोन्स को लेकर आ रहे है जो कि सबसे कॉमन है। बीमारी का डायग्रोस बड़ा मुश्किल है इसके लिए हमे मरीज की क्लोनोस्कॉपी करनी पड़ती है आंत में जो बैक्टीरिया रहता है वह बहुत कम पॉजीटिव पाया जाता है ऐसे में डायग्रोस लेकर लेकर दिक्कत ज्यादा रहती है। इसके इलाज की बात करे तो 6 महीने तक इसका ट्रीटमैंट चलाया जाता है। इंडिया की बात करे तो यहां क्रोंस कम है लेकिन टी.बी. ज्यादा है। ऐसे में हम पहले मरीज को टी.बी. की दवाई देते है अगले दो महीनों से दोबारा जांच की जाती है अगर इस दौरान अल्सर ठीक हो गया तो टी.बी. था। अगर नहीं हुए तो मरीज को क्रोन्स की दिक्कत है। 

 

bhavita joshi

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