UT की नहीं अपनी कोई स्पोर्ट्स पॉलिसी, पॉलिसी न होने से चंडीगढ़ को नुक्सान

punjabkesari.in Monday, Jun 26, 2017 - 10:41 AM (IST)

चंडीगढ़(लल्लन) : शहर को बने 60 साल हो चुके हैं पर अभी तक यहां खेल और खिलाडिय़ों के लिए स्पोर्ट्स पॉलिसी नहीं बनी है। बात करें दिग्गज खिलाडियों की तो यहां से कपिल देव, चेतन शर्मा से लेकर युवराज सिंह, राजपाल सिंह जैसे कई बड़े नाम निकले हैं, लेकिन ये सब बड़े नाम शहर के होकर भी दूसरे राज्यों की टीमों से खेले। दूसरे राज्यों की बात करें तो नैशनल और इंटरनैशनल स्तर पर मैडल पाने वाले खिलाडिय़ों को नौकरी के अलावा नकद इनाम से नवाजा जाता है, लेकिन यू.टी. में ऐसा कुछ नहीं।

 

कागजों में सीमित ड्राफ्ट पॉलिसी :
सूत्रों की मानें तो यू.टी. की ड्राफ्ट पॉलिसी तो तैयार की थी लेकिन उसे मंजूरी नहीं मिल सकी। फिलहाल ड्राफ्ट पॉलिसी भी सरकारी कागजों में सीमित है। खेल परिसर सैक्टर-43 के शुभारंभ पर नगर प्रशासक बी.पी. बदनौर ने स्पोर्ट्स पॉलिसी के लिए सुझाव मांगने का जिक्र किया था। 

 

स्पोर्ट्स पॉलिसी के लिए क्या जरूरी :
स्पोर्ट्स पॉलिसी के लिए बाकायदा खेल विशेषज्ञों के तौर पर पूर्व खिलाडिय़ों, खेल प्रशासकों से लेकर प्रतिष्ठित खेल प्रशिक्षकों,खेल एसोसिएशन से जुड़े पदाधिकारियों की समिति गठित होती है, जो खेल विकास को लेकर आपस में सुझाव पर चर्चा करते हैं। जिन सिफारिशों को मंजूरी मिलती है उसे पॉलिसी के अधीन लाया जाता है। पॉलिसी को अंतिम रूप देकर इसके मंजूर कराई जाती है जैसे कि पंजाब और हरियाणा में होता आया है। यहां समय-समय पर पॉलिसी संशोधित भी होती रही है। 

 

स्पोर्ट्स पॉलिसी न होने से चंडीगढ़ को नुक्सान :

-रोजगार का अभाव प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों को शहर छोडऩे को मजबूर कर रहा है। पॉलिसी में खेल कोटे के तहत रोजगार के प्रावधान का जिक्र होता है।

-खिलाड़ी बचपन से ट्रेनिंग यहां लेते हैं, लेकिन सीनियर लैवल तक पहुंचते ही रोजगार और पेशेवर ट्रेनिंग के लिए दूसरे राज्यों का रुख कर जाते हैं। 

-शहर के खिलाडिय़ों का सफलता का श्रेय अन्य राज्य को जाता है, हालिया वर्षों में यह हो भी रहा है। 

-खेल प्रशिक्षकों के लिए भी कोई अवार्ड नहीं,जिनकी प्रोमोशन भी लंबित रहती है। 

-नकद इनाम राशि देना भी नियमित नहीं।

-खेलों को बढ़ावा देने की दिशा में खेल एसोसिएशन के साथ तालमेल नहीं।

-यू.टी. का अपने नाम पर आधारित स्टेट अवार्ड नहीं,पॉलिसी में इस पहलू का सबसे पहले ध्यान रखता जाता है। मसलन पंजाब में महाराजा रणजी सिंह अवार्ड और हरियाणा में भीम अवार्ड खिलाडिय़ों को दिया जाता है। 

-स्पोर्ट्स पॉलिसी में खेल कोटे से सरकारी महकमों में नौकरी के प्रावधान का जिक्र होता है।

 

द्रोणाचार्य अवार्डी देश प्रेम आजाद ने किया था प्रयास :
शहर में स्पोर्ट्स पॉलिसी लाने का पहला प्रयास द्रोणाचार्य अवार्डी देश प्रेम आजाद ने किया था। इसके पीछे उनका नजरिया था कि अगर निश्चित स्पोर्ट्स पॉलिसी होगी तो शहर का टैलेंट दूसरे राज्य की ओर रुख नहीं करेगा। सरकारी महकमों में खेल कोटे का इस्तेमाल हो सकेगा। 

 

कौन-कौन से खिलाड़ी कर गए अलविदा 

अभिनव बिंद्रा      (निशानेबाजी)      (पंजाब)

राजपाल सिंह       ( हाकी)              (पंजाब)

धर्मवीर सिंह        ( हाकी)              (पंजाब)

रुपिंद्र पाल सिंह    ( हाकी)              (पंजाब)

सनम सिंह           ( टैनिस)            (हरियाणा)

मोनिका मलिक     ( हाकी)            (हरियाणा)

पुनीत राणा         (तैराकी)             (हरियाणा)

दिव्या                (जूडो)                (हरियाणा)
 


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