शहर के वृद्ध आश्रम में रहने वाली माओं का छलका दर्द
punjabkesari.in Monday, May 15, 2017 - 08:15 AM (IST)

चंडीगढ़ (नेहा): मां तो मैं भी हूं पर कोई मां बोल कर बुलाए ये तो अब सपना ही रह गया! बेटा बिन औलाद कैसी मां कैसा मदर्स डे। ये कुछ ऐसे शब्द थे जो उन बूढ़े शरीरों में कहीं दफन घुटन को साफ बयान करते हैं। जब दुनिया में हर तरफ मदर्स डे सैलिब्रेट किया जा रहा था तब कुछ ऐसी माएं भी थी जिनके लिए यह दिन उनके जख्म कुरेदने के अलावा और किसी काम का नहीं था। मदर्स डे पर जब सभी मां का गुणगान करने में व्यस्त थे तब हम शहर के वृद्धाश्रम में गए। यह उम्मीद थी कि शायद यहां कुछ अलग कहानी नजर आए। शायद कोई बेटा मदर्स डे पर अपनी मां को वापस लेने आया हो या उनसे मिलने, या उनके साथ वक्त बिताने आया हो लेकिन ऐसा कुछ नहीं दिखा।
दो आश्रम, दोनों की दिशा और दशा अलग
शहर में मुख्यत: सरकार द्वारा संचालित दो वृद्ध आश्रम हैं। इनमें एक सैक्टर-15 में और दूसरा सैक्टर-43 में है। सैक्टर-15 स्थित सीनियर सिटीजन होम खासतौर पर उन बुजुर्गों के लिए है जिनका इस दुनिया में कोई नहीं। मतलब जो अब अकेले हैं और उनकी देखभाल करने वाला कोई न हो ऐसे में इन सभी बुजुर्गों को यहां बिना फीस के रखा जाता है। सैक्टर-43 के सीनियर सिटीजन केयर सैंटर में उन सभी को रखने की व्यवस्था है जिनका परिवार तो है लेकिन किसी कारण वश उन्हें साथ नहीं रख सकता। बता दें कि बिना किसी अपने के सैक्टर-15 में रह रहे इन बुजुर्गों के पास कई लोग बिना किसी रिश्ते के ही अपना वक्त सांझा करने मदर्स डे के दिन भी इन्हें कुछ खास महसूस करवाने के लिए पहुंचे। वहीं सैक्टर-43 में रहने वाली बुजुर्ग की आंखें आज भी बच्चों की राह निहारती नजर आईं।
जिनका कोई नहीं उन्हें मिल रहा स्नेह
मदर्स डे के मतलब और अहमियत का सही अंदाजा तब हुआ जब एक वृद्धाश्रम में बुजुर्गों को कुछ नौजवानों के साथ किसी बच्चे की तरह हस्ता खिलखिलाता देखा। ये लड़के एन.जी.ओ. से थे जो मदर्स डे यहां मौजूद उन माताओं के साथ मानाने आए थे जिनके बच्चे उनसे दूर हो गए। एन.जी.ओ. के प्रैजीडैंट संदीप ने बताया कि उनकी कोशिश रहती है कि वे यहां आकर इन बुजुर्गों को कुछ वक्त के लिए हंसा सकें और उनका ध्यान उनकी तकलीफों से हटा सकें। संदीप के साथ गए नितिन ने बताया कि घर पर तो सिर्फ एक मां है जो कभी प्यार करती है कभी डांटती है लेकिन यहां तो काफी माएं हैं जो जो कभी डांटती नहीं इस डर से कि कहीं हम आना बंद न कर दें। शहर में लगभग सभी को पता है कि सैक्टर-15 के वृद्धाश्रम में वे लोग रहते हैं जिनका इस दुनिया में कोई नहीं है। शायद यही वजह है कि अपनी जिंदगी में किसी बड़े का साया ढूंढ रहे लोग यहां इनके पास आ जाते हैं, ताकि इन बुजुर्गों में अपने बड़ों को ढूंढ सकें और अपनी व इनकी जिंदगी का अधूरापन दूर कर सकें।
सैक्टर-43 स्थित सीनियर सिटीजन केयर सैंटर में रहने वाले बुजुर्ग हमेशा आंखों में अपनों के आने का इंतजार लिए यहां रहते हैं। मदर्स डे पर जहां हर तरफ मां का गुणगान हो रहा था यहां मौजूद हर मां का दिल मां शब्द सुनने के लिए तरस रहा था। 83 वर्षीय एक बुजुर्ग से जब मदर्स दे के बारे में पूछा तो उन्होंने दर्द और घुटन भरी आवाज में जवाब दिया ‘बेटा-बिन औलाद कैसी मां, कैसा मदर्स डे!’ हम तो वो अभागे हैं जिनकी कोख सूनी नहीं है लेकिन जिंदगी वीरान है।