साऊथ के डाक्टरों और नर्सों ने लगाई पंजाबी क्लास, हुण पुछदे कि तकलीफ है तुहानूं

Wednesday, Feb 22, 2017 - 08:20 AM (IST)

चंडीगढ़(पाल) : ‘हांजी दस्सो की तकलीफ है तुहानूं’ यह पंजाबी शब्द पी.जी.आई. की ओ.पी.डी. में या वार्ड में दक्षिण भारतीय डाक्टरों के मुंह से सुनने को मिल रही है जिसके चलते मरीजों और डाक्टरों के बीच कम्युनिकेशन गैप खत्म हो रहा है। मरीज खुलकर पंजाबी में अपनी समस्या बताते हैं और डाक्टर भी पंजाबी में ही जवाब दे रहे हैं। ऐसा संभव हुआ है पी.जी.आई. में। पिछले 21 दिनों तक स्पैशल पंजाबी की क्लास के बाद जिसमें दक्षिण भाषी 10 डाक्टरों व 15 नर्सों ने हिस्सा लिया था। 

 

सैक्टर-46 स्थित सरकारी कालेज के प्रोफैसर पंडित राव पिछले एक वर्ष से पी.जी.आई. में मौजूद साऊथ के डाक्टरों और नर्सों को हिंदी और पंजाबी भाषा सिखा रहे थे। प्रोफैसर राव की मानें तो उन्हें 21 दिन तक चले इस क्रैश कोर्स में डाक्टरों ने अपने बिजी शैड्यूल में से वक्त निकालकर काफी मेहनत की है। उनकी मानें तो पंजाबी भाषा का क्रेज साऊथ के डाक्टर्स में काफी है। वह भविष्य में भी इस तरह के कोर्स पी.जी.आई. में लगाते रहेंगे। 

 

एक वर्ष से सिखा रहे पंजाबी :
गवर्नमैंट कालेज सैक्टर-46 में बतौर असिस्टैंट प्रोफैसर कार्यरत पंडित राव एक वर्ष से पी.जी.आई. में हिंदी और पंजाबी भाषा का प्रचार कर रहे हैं। प्रोफैसर राव 15 से ज्यादा डाक्टर्स और नर्सों को न सिर्फ हिंदी, बल्कि पंजाबी में ट्रेंड कर चुके हैं। 

 

कर्नाटक के रहने वाले प्रोफैसर राव की पंजाबी भाषा पर अच्छी पकड़ है और वह अब तक पंजाबी में 12 किताबें लिख चुके हैं, साथ ही और वे श्री जपुजी साहिब, श्री सुखमणी साहिब और जफरनामा का पंजाबी से कन्नड़ भाषा में अनुवाद कर चुके हैं। पी.जी.आई. में करीब 750 दक्षिण भारतीय डाक्टर्स और 100 से ज्यादा नर्सें हैं जो पंजाबी भाषा सीखना चाहते हैं। पंडित राव की मानें तो पी.जी.आई. में ज्यादातर मरीज पंजाब से आते हैं, ऐसे में पंजाबी आने से डाक्टर्स और मरीज का तालमेल काफी बढ़ जाता है। 

 

डाक्टरों ने किए विचार सांझा :
डाक्टर पुनित ने बताया कि मैं कर्नाटका से हूं, इसलिए पंजाबी भाषा से कोई लेना देना नहीं, लेकिन पी.जी.आई. में पंजाब से काफी बड़ी संख्या में मरीज आते हैं तो ऐसे में लोकल लैंग्वेज आने से मरीजों के साथ बातचीत अब आसान हो गई है। इससे मरीजों के  साथ मुझे भी काफी सहूलियत हो गई है। 

 

डाक्टर प्रताप ने बताया कि जिस जगह आप काम करते हो तो वहां की लोकल लैंग्वेज का आना जरूरी हो जाता है। चाहे वो कोई भी भाषा हो। इस कोर्स के लिए वक्त निकालना थोड़ा मुश्किल था लेकिन इन 21 दिन में नई भाषा सीखी, वह काम आ रही है। आगे भी सीखना जारी रखूंगा। 

 

नर्स ग्रेस्मा ने बताया कि डाक्टरों से ज्यादा नर्स मरीज के पास सबसे ज्यादा रहती है, ऐसे में नर्स के लिए लोकल लैग्वेंज आना जरूरी है। यही सोचकर मैंने पंजाबी सीखनी शुरू की। पंजाबी आने के बाद अब काम में आसानी हो गई है। 
 

डाक्टर विश्वनाथ ने बताया कि मैं पंजाबी सिंगर दिलजीत का बड़ा फैन हूं। शायद यह भी एक कारण है जिसकी वजह से मैं कई महीनों से पंजाबी सीख रहा हूं। अब पंजाबी गाने और फिल्में अच्छी तरह समझ आने लगे हैं। वहीं अब पंजाब से आने वाले मरीजों से काफी आसानी से बात होती है। 
 

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