सिम्मा धालीवाल ने नाटक ‘सैलेरी क्रेडिटेड’ के लिए संगीत तैयार किया, अब रिकॉर्ड लेबल के ज़रिए संघर्षरत कलाकारों को मंच देने की शुरुआत
punjabkesari.in Thursday, Jun 19, 2025 - 11:57 AM (IST)

चंडीगढ़। थिएटर और संगीत के交वर्ती क्षेत्र में काम करने वाले युवा रचनाकार सिम्मा धालीवाल ने हाल ही में भोपाल में प्रस्तुत हिंदी नाटक सैलेरी क्रेडिटेड के लिए संपूर्ण संगीत रचना की। यह प्रस्तुति 16 जून को हुई, जिसमें ग्रामीण जीवन में आर्थिक अनिश्चितता, पारिवारिक भूमिकाएं और सामाजिक चुप्पियाँ जैसे जटिल विषयों को उठाया गया। धालीवाल के संगीत को नाटक की भावनात्मक धारा में इस तरह पिरोया गया कि वह संवाद और मौन के साथ समांतर रूप से दर्शकों पर असर डालता रहा। प्रस्तुति के पश्चात संगीत की आलोचकों द्वारा विशेष सराहना की गई।
पंजाब के फिरोज़पुर में 14 अगस्त 2001 को जन्मे सिम्मा धालीवाल ने रचनात्मक जीवन की शुरुआत रंगमंच से की थी। किशोरावस्था में ही उन्होंने थिएटर प्रस्तुतियों के लिए पृष्ठभूमि संगीत बनाना शुरू कर दिया था। उनके आरंभिक कार्यों में लूणा, नील दर्पण, ओडकालु बिंब, आषाढ़ का एक दिन और डॉन स्पेशल जैसे नाटकों के लिए की गई रचनाएं शामिल हैं। इन परियोजनाओं के दौरान उन्हें रंगमंच की संरचना, संवादों की ध्वन्यात्मकता और मौन के भीतर छिपी भावनाओं को समझने का अवसर मिला। धालीवाल मानते हैं कि “थिएटर ने मुझे सिखाया कि कब संगीत को बोलना है, और कब सिर्फ महसूस करना है।”
2022 में उन्होंने स्वतंत्र संगीत क्षेत्र में कदम रखा, जब उनका पहला पंजाबी एकल गीत कनाडा वाली रिलीज़ हुआ। इस गीत को उन्होंने स्वयं लिखा, गाया और संगीतबद्ध किया था। इसके बाद गैंगस्टर, याद, सुरमा, सिप सिप, हीर रांझा, और अखां विच काजल जैसे गाने सामने आए। इन रचनाओं में व्यावसायिक ट्रेंड्स की जगह आत्मीयता, निजी अनुभव और भावनात्मक अभिव्यक्ति को केंद्र में रखा गया। धालीवाल ने अपनी संगीत यात्रा के शुरुआती दिनों में मोबाइल संपादन ऐप्स और वीडियो प्रभावों के साथ प्रयोग किए, जिससे उन्हें दृश्यात्मक समयबोध और कथात्मक अनुशासन विकसित करने में सहायता मिली।
सैलेरी क्रेडिटेड में उनका काम इस दिशा में एक परिपक्व वापसी थी, जहाँ रंगमंच के भावनात्मक संदर्भ को संगीत के माध्यम से गहराई दी गई। इस अनुभव के बारे में उन्होंने कहा, “थिएटर में संगीत केवल सजावट नहीं होता। जब पात्र कुछ न कह रहे हों, तब संगीत उनके भीतर की आवाज़ बन जाता है। लेकिन ये आवाज़ भी विनम्र होनी चाहिए जयादा बोलने से दृश्य कमज़ोर हो सकते हैं।”
हाल ही में धालीवाल ने ‘ट्रियो रिकॉर्ड्स’ नामक एक रिकॉर्ड लेबल की स्थापना की है। इस पहल के ज़रिए वे उन युवा और संघर्षरत कलाकारों को अवसर देने का इरादा रखते हैं जो संसाधनों की कमी या पहुंच के अभाव में अपने कार्य को सामने नहीं ला पा रहे हैं। इस संदर्भ में उन्होंने कहा, “बहुत से लोग काबिल हैं, लेकिन मंच तक नहीं पहुँच पाते। मैं चाहता हूं कि ट्रियो रिकॉर्ड्स उन आवाज़ों के लिए पुल बने जो अब तक अनसुनी रह गईं।”
सिम्मा धालीवाल की अब तक की यात्रा न तो एक तयशुदा राह पर चली है, न ही किसी शैली में बंधी रही है। रंगमंच और स्वतंत्र संगीत दोनों में उनकी सक्रियता उनके दृष्टिकोण को स्पष्ट करती है कि भावनात्मक प्रभाव का माध्यम चाहे जो हो, उसमें सच्चाई और संवेदनशीलता आवश्यक है।