PGI एमरजैंसी में सीनियर डाक्टर्स की भी लगेगी नाइट ड्यूटी

punjabkesari.in Tuesday, Dec 05, 2017 - 11:44 AM (IST)

चंडीगढ़ (अर्चना): पी.जी.आई. की एमरजैंसी में अब सीनियर डाक्टर्स को नाइट ड्यूटी भी देनी होगी। सूत्रों के मुताबिक पी.जी.आई. प्रबंधन ने एमरजैंसी और एडवांस ट्रामा सैंटर में आने वाले पेशैंट्स के इलाज में बरती जाने वाली कोताही के मद्देनजर ऐसा फैसला लेने की तैयारी की है। डायरैक्टर प्रो.जगत राम एमरजैंसी में सुधार लाने के लिए प्रयासरत हैं। हर सप्ताह एमरजैंसी के राऊंड्स, पेशैंट्स ट्रीटमैंट रिकार्ड, सर्जरी वेटिंग को ध्यान में रखते हुए उन्होंने पेशैंट्स के एमरजैंसी स्टे में भी कटौती की है। सूत्र कहते हैं कि प्रबंधन जल्द ही कंसल्टैंट लैवल के सीनियर डाक्टर्स की भी नाइट ड्यूटी लगाएगी। 

 

मौजूदा समय में एमरजैंसी और ट्रामा सैंटर में दिन में 4 कंसल्टैंट डाक्टर्स की ड्यूटी होती है। दो डाक्टर्स एमरजैंसी की ओ.पी.डी. जबकि दो डाक्टर्स एमरजैंसी वार्ड के पेशैंट्स को देखते हैं इसके अलावा अन्य विभागों के कंसल्टैंट ऑन कॉल कंसल्ट करते हैं। शाम 5 बजे के बाद कंसल्टैंट सिर्फ ऑन कॉल जूनियर डाक्टर्स को कंसल्टैशन देते हैं। पिछले कुछ माह से पी.जी.आई. प्रबंधन के पास लगातार शिकायतें पहुंच रही हैं कि एमरजैंसी वार्ड के रैजीडैंट डाक्टर्स पेशैंट्स को तवज्जो नहीं दे रहे हैं जिसके चलते कुछ पेशैंट्स को उनके अटेंडैंट इलाज के बगैर ही वापस भी ले जा रहे हैं। 

 


रैजीडैंट डाक्टर्स और इंस्टीच्यूट की भलाई में होगा फैसला
 पी.जी.आई. के रैजीडैंट डाक्टर्स ने नाम न लिखे जाने की शर्त पर कहा कि अगर पी.जी.आई. प्रबंधन ऐसा फैसला ले रहा है तो यह न सिर्फ इंस्टीच्यूट बल्कि रैजीडैंट डाक्टर्स के लिए भी अच्छा होगा, क्योंकि सीनियर डाक्टर्स जूनियर डाक्टर्स से इतना काम करवाते हैं कि डाक्टर्स 18 घंटे काम करने के बाद खुद डिप्रैशन में आ रहे हैं। सीनियर डाक्टर्स कहने को ऑन कॉल होते हैं लेकिन जूनियर डाक्टर्स की कॉल की कहां सीनियर परवाह करते हैं। कुछ तो कॉल पर भी जवाब नहीं देते। 


 

पेशैंट्स की अनदेखी की शिकायतें पहुंच रही डायरैक्टर ऑफिस
सैक्टर-22 निवासी तीन वर्षीय प्रबल के नाक में कागज के टुकड़े घुस गए थे। प्रबल की नाक में फंसे कागज के टुकड़ों को निकलवाने के लिए मां कविता उसे पी.जी.आई. की एमरजैंसी में ले गई। मां ने डाक्टर्स से आग्रह किया कि बच्चे को देख लें ताकि वह ठीक से सांस ले सके, लेकिन डाक्टर्स ने मां की एक बात न सुनी। मां की मानें तो डाक्टर्स उस दौरान शाम की चाय पीने में व्यस्त थे। डाक्टर्स से आग्रह करने के बाद भी जब बच्चे को इलाज न मिला तो मां बच्चे को प्राइवेट डाक्टर के पास ले गई। 

 

प्रबल की मां ने बताया कि उस वक्त एक अन्य बच्चा जिसकी उम्र एक साल के करीब थी उसे भी एमरजैंसी में लाया गया था उस बच्चे की नाक में मक्की के दाने घुस गए थे और उस बच्चे की हालत भी खराब थी, परंतु एमरजैंसी के डाक्टर्स को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। दोनों बच्चों को पहले एडवांस पैडिएट्रिक  सैंटर की एमरजैंसी में ले जाया गया था, परंतु वहां डाक्टर्स ने बच्चों को कभी ए.पी.सी. की चौथी मंजिल तो कभी एमरजैंसी में धक्के खाने के लिए भेज दिया था। ऐसे ही मामले पी.जी.आई. डायरैक्टर के पास शिकायत के तौर पर पहुंच चुके हैं। 


 


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