आर.ओ.पी. की जांच के लिए पी.जी.आई. व नारायण नैत्रालय ने बनाई पोर्टेबल स्क्रीनिंग मशीन

Sunday, Jun 23, 2019 - 12:19 PM (IST)

चंडीगढ़ (रवि): रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी (आर.ओ.पी.) की स्क्रीनिंग के लिए अब तक बच्चों को मशीन के पास लाया जाता है। क्योंकि मशीन का साइज बड़ा होता है। इस मशीन से बच्चों की आंखों की फोटो जांच के लिए प्रयोग की जाती है। 

 

इसकी कीमत 80 से 90 लाख तक की है। लेकिन पी.जी.आई. और बैंगलुरु के नारायण नैत्रालय के सहयोग से एक नई पोर्टोबल स्क्रीनिंग मशीन तैयार की गई है, जिसकी कीमत 15 से 20 लाख तक की है। मैड इन इंडिया’ स्कीम के तहत इसे बनाया गया है। 

 

बैंगलुरु के नारायण नैत्रालय आई इंस्टीट्यूट के पीडिएट्रिक रेटिना डिपार्टमैंट के हैड डॉ. आनंद विनेकर शनिवार को पी.जी.आई. व द इंडियन रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी सोसायटी ऑफ इंडिया की ओर से करवाई जा रही कॉन्फ्रैंस में पहुंचे। 

 

डॉ. आंनद पी.जी.आई. से एम.डी. व सीनियर रैजीडेंसी रक चुके हैं। वह इन दिनों गवर्नमैंट ऑफ इंडिया के नैशनल टास्क फोर्स फॉर आर.ओ.पी. में बतौर मैंबर सेवाएं दे रहे हैं।

 

2000 बच्चों की रोजाना हो रही स्क्रीनिंग
डॉ. आनंद ने बताया कि एथिक्स कमैटी के नियमों को देखते हुए 150 बच्चों पर मशीन का टैस्ट किया गया था। इससे पहले इसके सेफ्टी मेजर्स चैक किए गए। इसकी तुलना यू.एस. मशीन से की गई। पूरे कर्नाटका में आर.ओ.पी. की स्क्रीनिंग को लेकर कई प्रोग्राम चल रहे हैं । 

 

मशीन की मदद से एक महीने में 2 हजार तक बच्चों की स्क्रीनिंग की जा रही है। पी.जी.आई. एलुमनाई डॉ. आनंद ने आई. डिपार्टमैंट के एच.ओ.डी. डॉ. एम.एस. डोगरा के साथ मिलकर मशीन को टैस्ट किया है। रिजल्ट इतने अच्छे रहे कि अमेरिकन जरनल में इसे पब्लिश किया गया है। 

 

इस बीमारी का इलाज बहुत कम अस्पतालों में 
डॉ. आनंद आर.ओ.पी. डिजिज पर पिछले कई सालों से काम कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने एक पॉयलेट प्रोजैक्ट के तहत रिसर्च कंपलीट की, जो वल्र्ड में पहला है। बच्चों की स्क्रीनिंग के दौरान आंख में आने वाले आंसुओं से पता चल सकेगा कि बच्चे को आर.ओ.पी. का रिस्क फैक्टर कितना है। 

 

बच्चा जब स्क्रीनिंग के लिए हमारे पास आता है तो हमे कई बार पता नहीं चलता है कि बच्चे को आर.ओ.पी. होगा की नहीं। उसे दोबारा स्क्रीनिंग के लिए कब बुलाना है। फिल्टर पेपर से आंसुओं को इकठ्ठा कर, लैब में उनकी जांच की गई। 

 

आंसुओं में मौजूद प्रोटीन को जांचने के बाद पता लगाया जा सकेगा कि बच्चे को कितना रिस्क  फैक्टर है। इसे जांचने के बाद परिजनों को कहा जा सकता है कि बच्चा हाईरिस्क पर है। इसके लिए कब-कब स्क्रीनिंग करनी है। हाल ही में हुई ऑल इंडिया कॉफ्रैंस में डॉ. आनंद ने इस रिसर्च को प्रेजैंट किया था। 

 

इसके लिए उन्हें सम्मान मिला था। इस बीमारी का इलाज बहुत कम अस्पतालों में हैं। ज्यादातर मरीज रैफर होकर आते हैं। हफ्ते में कई बार स्क्रीनिंग की जरूरत पड़ती है। 75 बच्चों पर यह रिसर्च किया गया था, लेकिन डॉ आनंद इस स्टडी को बड़े स्कैल पर लेकर जा रहे हैं।

pooja verma

Advertising