कैंसर के बढ़ते मामलों से ''’विकसित भारत 2047'' विजन को खतरा: ग्‍लोबल सस्‍टेनेबिलिटी अलायंस के विशेषज्ञों की चेतावनी

punjabkesari.in Monday, Feb 03, 2025 - 07:51 PM (IST)

इस ‘वर्ल्ड कैंसर डे’ पर ग्लोबल सस्टेनेबिलिटी अलायंस (जीएसए) ने कैंसर के बढ़ते मामलों को लेकर चिंता जताई है और कहा है कि यह ‘विकसित भारत 2047’ के विजन को प्रभावित कर सकता है। संगठन ने सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए एक विशेष रणनीति पेश की है और स्वास्थ्य कार्यक्रमों को तुरंत मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। ग्लोबल कैंसर ऑब्जर्वेटरी (ग्लोबोकैन) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कैंसर के मामलों में 2020 की तुलना में 2040 तक 57.5% की वृद्धि होने की आशंका है, जिससे यह संख्या 2.08 मिलियन तक पहुंच सकती है। वर्तमान में, भारत कैंसर के सबसे अधिक मामलों वाले देशों में तीसरे स्थान पर है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुझाए गए तंबाकू नियंत्रण उपाय प्रभावी साबित नहीं हो रहे हैं। भारत ने तंबाकू नियंत्रण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन ‘ह्यूमन-सेंट्रिक एप्रोच टू टोबैको कंट्रोल’ यह दर्शाता है कि तंबाकू का उपयोग अब भी एक गंभीर समस्या बना हुआ है।

भारत दुनिया में तंबाकू का उपयोग करने वाले देशों में दूसरे स्थान पर है, और यहां 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के 27% लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। देश के सामने एक बड़ी चुनौती यह भी है कि बड़ी संख्या में आर्थिक रूप से कमजोर लोग तंबाकू का सेवन कर रहे हैं, जिससे स्वास्थ्य और आर्थिक विकास दोनों प्रभावित हो सकते हैं। पीडी हिंदुजा हॉस्पिटल के कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट और एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. लेंसलोट मार्क पिंटो ने कहा, "भारत में कैंसर का एक प्रमुख कारण तंबाकू का सेवन है। तंबाकू का कोई भी रूप सुरक्षित नहीं है, लेकिन धूम्रपान से कैंसर का खतरा ज्यादा होता है। जब तंबाकू जलता है, तो इससे विषैले पदार्थ निकलते हैं, जो कैंसर और अन्य बीमारियों का कारण बनते हैं।" तंबाकू के नुकसान को रोकने की आवश्यकता पर चर्चा करते हुए, इंडिया फाउंडेशन प्राइवेट लिमिटेड के पेशंट सेफ्टी एंड एक्सेस पहल के फाउंडर डायरेक्टर डॉ. प्रोफेसर बिजोन मिस्रा ने कहा, "देश में कैंसर के मामलों में वृद्धि चिंताजनक है।

दुर्भाग्य से, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) जैसी वैश्विक संस्थाएं इस संकट का समाधान खोजने में सफल नहीं हो पाई हैं। डब्‍लूएचओ की ग्लोबल ट्रीटी 'फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल (FCTC)' के अनुसार, तंबाकू की आपूर्ति और मांग को कम करने के साथ-साथ तंबाकू से होने वाले नुकसान को भी घटाना जरूरी है। हालांकि, कई देशों ने इसे पूरी तरह से अपनाया नहीं, जिससे तंबाकू की खपत कम करने के लक्ष्य पूरे नहीं हो पाए। स्वस्थ आबादी ही भारत के 'विकसित भारत 2047' विजन की नींव है, लेकिन जब तक तंबाकू नियंत्रण की रणनीतियां स्थानीय स्तर पर सही तरीके से लागू नहीं होतीं, कैंसर के मामले बढ़ते रहेंगे।" दुनिया भर के देश तंबाकू के खिलाफ सख्त नीतियाँ बनाने की कोशिश कर रहे हैं, और इसमें गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) भी मदद कर रहे हैं।

पिछले साल, भारत सरकार ने एक अमेरिकी एनजीओ, कैंपेन फॉर टोबैको फ्री किड्स (सीएफटीके), को "प्रायर रेफरेंस कैटेगरी" में डाल दिया। इसका मतलब यह है कि अब इस एनजीओ को भारत में कोई भी दान देने से पहले सरकार से अनुमति लेनी होगी। सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि उसे लगा कि कुछ एनजीओ तंबाकू उद्योग के खिलाफ लॉबिंग करके देश की नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे। इसके बाद, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को भी ऐसी ही धमकी मिली, जिससे यह सवाल उठने लगा कि क्या सभी देश वैश्विक स्वास्थ्य नीतियों के निर्माण में बराबरी से हिस्सा ले रहे हैं। दुनिया भर में हो रहे इस असर के बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ ओटावा के फैकल्टी ऑफ लॉ के डेविड स्वीनोर ने कहा, "यह स्पष्ट है कि अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ एक बड़े एजेंडे के साथ काम कर रहे हैं। वे कम हानिकारक विकल्‍पों को अवैध बनाने के लिए कई मिलियन डॉलर के कैम्पेन चला रहे हैं। उनकी कोशिशें डब्ल्यूएचओ तक पहुंच चुकी हैं, ताकि लैटिन अमेरिका, एशिया और अन्य विकासशील देशों में ऐसे विकल्‍पों को पूरी तरह से नाजायज़ कर दिया जाए। जबकि इन देशों में यूएस और यूरोप से ज्यादा लोग धूम्रपान करते हैं, और इस तरह वे कम जोखिम वाले विकल्‍पों से वंचित हो रहे हैं।

अमेरिका, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, स्वीडन, जापान और कनाडा जैसे देशों में स्वास्थ्य एजेंसियों ने सक्रिय रूप से कुछ विकल्‍पों की सिफारिश की है, ताकि लोग धूम्रपान छोड़ सकें। लेकिन विकासशील देशों में इन विकल्‍पों को नहीं अपनाया गया है।" हाल ही में, एफडीए ने 20 ZYN निकोटिन पाउच प्रोडक्‍ट्स की बिक्री को स्वीकृति दी है, जो संपूर्ण वैज्ञानिक मूल्यांकन के बाद किया गया है। कम हानिकारक विकल्पों के नियमन के इस कदम ने धूम्रपान छोड़ने की दरों में सुधार किया है। गैलअप की रिपोर्ट में यह पाया गया कि अमेरिका में केवल 11% लोग धूम्रपान कर रहे हैं, जो पिछले 80 सालों में सबसे कम है। वहीं, नेशनल यूथ टोबैको सर्वे (एनवायटीएस) ने हाई स्कूल के छात्रों के बीच तंबाकू उत्पादों के उपयोग को 10.1% बताया है, जो पिछले 25 वर्षों में सबसे कम है। इस तरह के उपाय अब विकासशील देशों में भी अपनाए जा रहे हैं। थाईलैंड में एक विशेष संसदीय समिति को कम हानिकारक विकल्पों के विनियमन के लिए कानूनों का अध्ययन करने और उपाय सुझाने का काम सौंपा गया है।

यह कदम इस बात का संकेत है कि वहां भी इन विकल्पों के लिए नियामक और नियंत्रक उपायों की आवश्यकता महसूस की जा रही है। भारत, जो विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है और ‘विकसित भारत 2047’ के विजन को पूरा करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है, उसे इसके लिए एक स्वस्थ आबादी की भी जरूरत है। इसके लिए नीति-निर्माताओं, उद्योग और संस्थाओं को मिलकर काम करना चाहिए, ताकि तंबाकू से होने वाले नुकसान को कम करने वाले विकल्पों की भूमिका पर जोर दिया जा सके। इससे तंबाकू से होने वाले कैंसर का बोझ कम करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद मिल सकेगी।


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Content Editor

Diksha Raghuwanshi

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