मामा की हवस का शिकार हुई बच्ची की दशा देख मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक भी चिंतित

Saturday, Jul 22, 2017 - 08:43 AM (IST)

चंडीगढ़ (अर्चना): मामा की हवस का शिकार हुई बच्ची की दशा देख और सुन कर मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक भी चिंतित हैं। मनोवैज्ञानिक सचिन कौशिक के अनुसार 12 साल की उम्र में बच्ची का दिमाग इतना विकसित नहीं होता कि वह मां का रोल सहज अदा कर सके। जो खुद बच्ची है उसके लिए पेट में बच्चा रखना भी खतरनाक है। 18 साल की उम्र वाली गर्भवत्ती जानती है कि उसके पेट में पलने वाले बच्चे का ख्याल कैसे रखना है। उसे डाक्टर्स चलने, बैठने और उठने की खास हिदायतें देते हैं जैसे ऊंची एड़ी वाली चप्पल पहनने पर वह गिर सकती है और उसके गर्भस्थ शिशु के चोटिल होने पर खुद मां की जान भी खतरे में आ सकती है। 

 

कम उम्र में मां बनने वाली बच्ची को काऊंसलिंग देना बहुत जरूरी है। काऊंसलिंग उसके लिए कितने फायदेमंद है यह बच्ची की बौद्धिक क्षमता, ब्रेन डिवैल्पमैंट और सोच पर निर्भर करता है। इस उम्र की बच्ची की मां बनने के लिए काऊंसलिंग करना भी चुनौतीपूर्ण है। बच्ची के लिए उसकी मां को ही रोल मॉडल बनने की भूमिका अदा करनी होगी। भले इस समय बच्ची को कह दिया जाए कि पेट में पत्थरी है ऑपरेशन के बाद निकालनी है लेकिन बड़ी होने पर बच्ची समझ जाएगी कि उसके साथ क्या हुआ था और उस मैंटल ट्रामा से बाहर निकालने के लिए पहले से ही बच्ची को प्रिपेयर करना जरूरी है।


 

हॉस्पिटल में पहुंच रहे हैं टीनएज प्रेगनेंसी के केस
गाइनीकोलॉजी एक्सपर्ट डॉ. अलका सहगल की मानें तो हॉस्पिटल में टीनएज प्रेग्नैंसी के केस हर महीने पहुंच रहे हैं। छह महीनों में 3 से 4 ऐसे केस पहुंच चुके हैं। 12 साल की बच्ची से पहले तीन केस ऐसे आ चुके हैं जिसमें 14 से लेकर 17 साल की उम्र की लड़कियां प्रेग्नैंसी के साथ पहुंची। पहले भी ऐसे केस आते रहे हैं। ऐसे केस मलिन बस्ती में रहने वाली बच्चियों के होते हैं जहां के घर एक दूसरे से जुड़े होते हैं। पड़ोसी या नाते रिश्तेदार बच्चियों के साथ दुष्कर्म करते हैं। उधर, पंचकूला अस्पताल में दो दिन पहले कोट बिल्ला का एक केस पहुंचा जिसमें 14 साल की लड़की गर्भवती थी। डॉ.अनिता वर्मा का कहना है कि पंचकूला में हर रोज टीनएज प्रेग्नैंसी से जुड़ा एक केस पहुंच रहा है। बच्चियां मां के साथ गर्भ गिराने के लिए पहुंच रही हैं। चूंकि दुष्कर्म करने वाले परिवार के सदस्य और नाते रिश्तेदार होते हैं इसलिए पुलिस केस बनवाए बगैर माएं बच्चियों के अबॉर्शन करवा रही हैं।


 

यह कहना है गाइनी एक्सपर्ट्स का
डॉ. उमेश जिंदल का कहना है कि मां बनने के लिए यह उम्र जानलेवा है। बेशक बच्ची के गर्भ में बच्चा है परंतु यह इस बच्ची के लिए किसी ट्यूमर से कम नहीं। ट्यूमर शरीर पर वार करता है उसी तरह से यह बच्चा बच्ची के गर्भ में पैरासाइट की तरह पल रहा है। जिस बच्ची के  शरीर को ग्रोथ की जरूरत है, वह शरीर ग्रो करने की बजाए पैरासाइटनुमा बच्चे को न्यूट्रिशन देने का काम कर रहा है।

 

पंचकूला सिविल अस्पताल की गाइनी एक्सपर्ट डॉ. अनिता सोनी का कहना है कि बच्ची की उम्र 10 की बजाए अगर 12 है तो प्रेग्नैंसी रिस्क में सिर्फ 2 से 4 प्रतिशत का फर्क पड़ता है। 17 साल से छोटी उम्र में मां बनने वाली हर लड़की की जान खतरे में होती है। पीरियड जल्द शुरू होने से बच्ची मां तो बन सकती है परंतु गर्भस्थ शिशु का विकास खतरे में आ सकता है। बच्चा कम वजन के साथ पैदा होगा। अगर 7वें महीने में बच्चे को अबार्ट किया भी जाएगा तो बच्चा जीवित ही रहेगा इसलिए अबॉर्शन भी पॉसिबल नहीं है। डिलीवरी भी खतरनाक है।

 

जी.एम.सी.एच.-32 की गाइनीकोलॉजी एक्सपर्ट डॉ.अलका सहगल का कहना है कि मैडीकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नैंसी का लॉ यही कहता है कि 20 सप्ताह से अधिक समय के गर्भ को गिराया नहीं जा सकता है। डाक्टर्स के बोर्ड ने लीगल राय में यही कहा है कि बच्ची का अबॉर्शन नहीं किया जा सकता है। अब दिल्ली का कोई डाक्टर अगर अबॉर्शन के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहा है तो इसके बारे में वही जाने क्योंकि एम.टी.पी. लॉ के खिलाफ डाक्टर्स को नहीं जाना चाहिए। आखिर यह लॉ भी  बोर्ड ने सोच समझकर ही तैयार किया है।

 

मनोवैज्ञानिक बोले-बच्ची को काऊंसलिंग देना भी चुनौती
-उसके हार्ट पर ब्लड सर्कुलेशन डेढ़ गुना लोड बढ़ गया है।
-एनीमिया का शिकार।
-गर्भस्थ शिशु की ग्रोथ का बोझ पेट और मांसपेशियों पर बढऩा 
-पेलविक बोन पर बढ़ रहा है बच्चे का बोझ।
-अनडिवैल्प पेलविक बोन की वजह से होगी सिजेरियन डिलीवरी। 


 

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