नए सैशन की तैयारी, पेरैंट्स की जेब पर स्कूल बैग पड़ा भारी

punjabkesari.in Monday, Mar 25, 2019 - 10:55 AM (IST)

चंडीगढ़ (रोहिला): अप्रैल महीने से सभी स्कूलों में नए शैक्षणिक सत्र शुरुआत हो रही है। स्कूलों में एडमिशन के साथ किताबों की बिक्री भी शुरू हो गई है। हर वर्ष अभिभावकों के लिए यह समय परेशानी भरा व बजट को बिगाडऩे वाला होता है। 

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इस वर्ष भी छात्रों के एडमिशन से लेकर बुक्स, यूनिफॉर्म, स्टेशनरी तक की खरीदारी परेशानी का सबब बनी हुई है। सी.बी.एस.ई. बोर्ड द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार स्कूलों में एन.सी.ई.आर.टी. की किताबें पढ़ाना जरूरी है। लेकिन बावजूद स्कूलों में प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें पढ़ाई जा रही हैं। 

 

एन.सी.ई.आर.टी. की किताब के नाम पर मात्र एक दो किताबें लगा दी जाती हैं। इससे अभिभावकों की जेब हल्की और स्कूलों की तिजोरी भारी हो रही है। इतना ही नहीं ज्यादातर प्राइवेट स्कूल हर वर्ष किताबें बदल देते हैं। पूरी किताबें नहीं भी बदलतीं, बस कुछ चैप्टर ही बदल देते हैं। 

 

ताकि बच्चे पुरानी किताबों का उपयोग नहीं कर सकें। ऐसे में अभिभावकों को मजबूरी में नई किताबें खरीदनी पड़ रही हैं। कुछ वर्ष पहले तक सीधे प्रकाशक से पैसा लिया जाता था, चाहे किताबें कहीं बिके, लेकिन अब सिस्टम बदल गया है। 

 

अब प्रकाशक और बुक शॉप दोनों से स्कूल संचालक मोटी रकम ले रहे हैं, जिसका सीधा असर अभिभावकों की जेबों पर पड़ रहा है, जबकि प्रावधानों के अनुसार 10 वर्ष के अंतराल पर सिलैबस में बदलाव किया जाता है। किताबें भी उसी के अनुसार बदलती हैं। 

 

एन.सी.ई.आर.टी. में विषयवार किताबों की कीमत के साथ संख्या भी कम है। प्राइमरी से हायर सैक्शन तक की कक्षाओं के लिए 7-8 किताबें होती हैं, जबकि प्राइवेट पब्लिशर्स की 16-17 किताबें स्कूलों में पढ़ाई जाती हैं। 

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एक दुकानदार ने बताया कि कुछेक स्कूल तो 20-22 किताबें भी लागू कर देते हैं। इस कारण अभिभावकों को किताबों की चार गुना से अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है।

 

किताबों से लेकर स्टेशनरी तक के लिए स्कूल थमा देते हैं पर्ची
स्कूल मैनेजमैंट और बुक पब्लिशर्स की मिलीभगत से किताब-कॉपियों में कमीशन का कारोबार फल-फूल रहा है। ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों द्वारा रिजल्ट के ही दिन किताबों की सूची उपलब्ध करा देते हैं। 

 

सूची के साथ एक पर्ची भी अटैच होती है, जिसमें उस दुकान का नाम लिखा होता है, जहां ये कि ताबें मिलेंगी। इन दुकानों में पहले से ही अलग-अलग कक्षाओं के लिए किताब-कॉपी व कवर का एक बंडल तैयार रहता है। वे अभिभावक को बिना किसी मोल-भाव के किताब का बंडल थमा दे रहे हैं।

 

वसूल रहे मनमाने रेट 
स्कूल द्वारा बताई गई बुक्स शॉप पर अभिभावक बुक्स लेने के लिए पहुंचते हैं तो बुक सेलर्स द्वारा अभिभावकों को एक बंडल थमा दिया जाता है, जिसमें बुक्स के साथ-साथ स्टेशनरी भी डाली होती है। 

 

इसके चलते रेट काफी हद तक बढ़ जाता है। बुक्स शॉप्स द्वारा किताबों के पैकेटों की मनमानी कीमत भी निर्धारित कर दी जाती है। कुछ दुकानदार किताबें खरीद की लिस्ट भी नहीं देते हैं। रसीद के बदले सादे कागज पर किताब की कीमत लिख कर दे देते हैं और टैक्स की चोरी करते हैं।

 

क्या बोले शॉपकीपर
क्या कारण है जो स्कूल जिस बुक शॅाप पर भेजते हैं उसके अलावा कहीं और बुक्स नहीं मिलती है। मॉडर्न बुक्स शॉप सैक्टर-22 के शॉपकीपर ने कहा कि ये ट्रैड सिक्रेट्स हैं। 

 

ये डिस्कलोज नहीं किए जा सकते हैं। यदि किसी को एन.सी.ई.आर.टी. की बुक्स चाहिए तो वो भी ले सकते हैं, लेकिन मैथ्स की एन.सी.ई.आर.टी. की बुक्स एवेलेबल नहीं है। हर वर्ष पब्लिशर्स के बदलने की वो बदलाव तो स्कूल प्रशासन द्वारा ही किया जाता है।


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pooja verma

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