अब गंभीर मरीजों का बड़े से बड़ा ट्यूमर निकला जा सकेगा आसानी से, पी.जी.आई. ने खोजी नई टैक्नीक

punjabkesari.in Friday, Oct 23, 2020 - 10:47 PM (IST)

चंडीगढ़, (रवि पाल): पी.जी.आई. के न्यूरोसर्जरी डिपार्टमैंट ने प्यूटरी ट्यूमर (एक तरह के ब्रेन ट्यूमर) के इलाज के लिए एक टैक्नीक ईजाद की है। प्यूटरी ट्यूमर की सर्जरी के लिए अभी तक एंडोस्कोपिक सर्जरी की जाती रही है लेकिन अब नई टैक्नीक की मदद से गंभीर मामलों को ज्यादा आसानी से ट्रीट किया जा सकेगा। साथ ही दोबारा ट्यूमर होने का भी खतरा कम होगा, जोकि पहले ज्यादा हुआ करता था। न्यूरोसर्जन डॉ. दंडापानी एस.एस. और डॉ. निनाद ने इस नई डिवाइस को बनाया है। डॉ. दंडापानी ने बताया कि इससे पहले भी इन मरीजों का इलाज पहले स्कल की ओपन सर्जरी कर किया जाता था लेकिन पिछले कुछ साल से एंडोस्कोपिक से ही सर्जरी हो रही है। उन्होंने इस एंडोस्कोपिक में नेविगेशन और एंगल को एड कर दिया है, जिससे मुश्किल सर्जरी आसान हो गई है। दो साल में 130 मरीजों का सफल इलाज किया जा चुका है।
 

 

दुनियाभर के सर्जन को बहुत मदद मिलेगी
इसमें सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि वल्र्ड लैवल पर भी जितने मैडीकल लिटरेचर मौजूद हैं, उनमें भी इसके इस्तेमाल और फायदे के बारे में कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में इसका इस्तेमाल करना और इसके रिजल्ट देखना एक चुनौती थी। प्यूटरी ट्यूमर की सर्जरी में एक बहुत बड़ी डिस्कवरी है जोकि दुनियाभर के सर्जन को बहुत मदद करेगी। पी.जी.आई. की इस रिसर्च को न्यूरोसर्जरीकल रिव्यू में पब्लिश किया गया है। यह जर्नल न्यूरोसर्जरीकल फील्ड का एक अहम जर्नल माना जाता है।    
 

2 साल में पूरी हुई रिसर्च 
साल 2017  में इस रिसर्च को शुरू किया गया था।  दो साल के नतीजे बेहद शानदार रह हैं। 130 गंभीर मरीजों के प्यूटरी ट्यूमर इससे निकले गए हैं। छोटे साइज के ट्यूमर आमतौर पर छोटे हॉस्पिटल में ट्रीट कर दिए जाते हैं लेकिन गंभीर मरीजों का ट्यूमर निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है। इस बीमारी की सबसे खतरनाक बात यही है कि शुरूआती वक्त में यह डायग्नोस नहीं हो पाती। पी.जी.आई. के पास ज्यादातर गंभीर मरीज ही रैफर होकर आते हैं।
7.5 सैंटीमीटर का ट्यूमर भी निकाला
एंडोस्कोपोक से छोटे ट्यूमर को निकालना आसान हो जाता है। जब बात बड़े ट्यूमर को निकलने की आती है तो मुश्किल हो जाती है। आमतौर पर देखा जाता है कि ट्यूमर का छोटा पार्ट रह जाता है या दोबारा वह रिग्रोथ हो जाता है। इसे रेडियो थैरेपी से ट्रीट किया जाता है। कई बार सर्जरी में रिस्क फैक्टर इतना बढ़ जाता है कि मरीज कोमा में भी चला जाता है। नई डिवाइस से अभी तक 7.5 सैंटीमीटर तक का बड़ा ट्यूमर निकला जा चुका है। दूसरी खास बात यह है कि बीमारी के दोबारा होने का चांस कम हो गया है। पहले जहां 5 में से 2 मरीजों को दोबारा बीमारी हो जाती थी, अब वह 1 तक पहुंच गई है।  
नजर कम हो रही है तो न करें अनदेखा
डॉ. दंडापानी कहते हैं कि प्यूटरी ग्लैंड हमारी बॉडी में सभी हार्मोंस को एक्टिव करता है। अगर किसी की आंख की रोशनी लगातार कम हो रही है तो उसे आंखों के साथ-साथ अपने डॉक्टर की सलाह पर सिर का एम.आर.आई. जरूर करना चाहिए। इसके साथ ही वेट, डायबटीज बढऩा, सैक्सुअल डिस्फंक्शन, महिलाओं के चहरे पर हेयर ग्रोथ इसके कुछ मेजर सिम्टम्स हैं लेकिन दिक्कत यह है कि जब ये सारी परेशानियां होती हैं तो मरीज इनसे संबंधित डॉक्टर्स के पास ही जाता है। ऐसे में डॉक्टर्स को भी ध्यान देने की जरूरत है। अगर शुरूआती दौर में ही इसे डायग्नोस कर लिया जाए तो ट्यूमर को बड़ा होने से पहले आसानी से निकाल लिया जाता है। प्यूटरी आंख और नाक के बिलकुल बीच में होता है। ज्यादतर मरीज एडवांस स्टेज में ही पी.जी.आई. आते हैं।  


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AJIT DHANKHAR

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