PGI में हुआ इस वर्ष का 37वां ओर्गन ट्रांसप्लांट, 5 लोगों को मिली नई जिंदगी

punjabkesari.in Monday, Oct 23, 2017 - 08:39 AM (IST)

चंडीगढ़(रवि) : किसी ब्रेन डैड मरीज की आखिरी सांस किसी दूसरे मरीज के लिए नई शुरूआत है, और पी.जी.आई. इस वर्ष बखूबी ओर्गन ट्रांसप्लांट की बदौलत कई मरीजों को नई जिंदगी दे चुका है। पी.जी.आई. में वर्ष 1996 से शुरू हुआ ओर्गन ट्रांसप्लांट आज देश के दूसरे अस्पतालों के लिए मिसाल पेश कर रहा है। रविवार को संस्थान ने अपना इस वर्ष का 37वां ओर्गन ट्रांसप्लांट करने में सफलता हासिल की है। 

 

25 वर्षीय ब्रेन डैड युवक के कारण 5 लोगों को नई जिंदगी मिल पाई है। पी.जी.आई. निदेशक प्रो. जगत राम की माने तो अस्पताल ट्रांसप्लांट तो कई वर्षो से कर रहा है लेकिन पिछले कुछ वक्त से इसमें काफी तेजी आई है। जो सिर्फ और सिर्फ  लोगों के जागरूक होने के कारण हो रहा है। लेटैस्ट टैक्नीक हो या ट्रैंड स्टाफ यह सबकुछ बेकार है अगर ब्रेन डैड मरीज के परिजन अपनी सहमति न दे। अब लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है वह आगे आकर न सिर्फ ओर्गन ट्रांसप्लांट के बारे में बात करते हैं बल्कि अपनी सहमति भी दे रहे हैं जो सराहनीय है। 

 

वरुण की हुई थी हादसे में मौत :
हमीरपुर का रहना वाला 25 वर्षीय वरुण बद्दी की ऑक्सलिस लैब के प्रोडौक्शन डिपार्टमैंट में काम कर रहा था। 18 अक्तूबर को वरुण ऑफिस जाते वक्त आनंदपुर साहिब के पास एक एक्सीडैंट का शिकार हो गया था। सिर में गंभीर चोट लगने के कारण वरुण को पी.जी.आई. रैफर कर दिया गया था। वरुन पिछले 4 दिनों से पी.जी.आई. में ही एडमिट था। 

 

डाक्टर्स की माने तो सिर में गंभीर चोट लगने के कारण हालत में कोई सुधार नहीं हो पा रहा था। 21 अक्तूबर को डाक्टर्स ने उसे ब्रेन डैड घोषित कर दिया था। काऊंसलर ने वरुण के पिता अनूप चंद से ओर्गन डोनेट करने की बात कही। वरुण अपने घर में सबसे छोटा था। अपने बेटे के ओर्गन डोनेट करने वाले पिता की मानें तो यह फैसला लेना कोई आसान नहीं था लेकिन आज वरुण के कारण 5 लोगों को नई जिंदगी मिल पाई है। उनका बेटा भी उनके फैसले से कहीं न कहीं जरूर संतुष्ट होगा। रविवार को हुए इस ओर्गन ट्रांसप्लांट के जरिए डाक्टर्स ने 5 लोगों को एक नई जिदंगी दे पाए हैं। यह मरीज पी.जी.आई. में कई वक्त से अपना इलाज करवा रहे थे। एक मरीज को लिवर, दो किडनी व दो मरीजों को कॉर्निया ट्रांसप्लांट किया गया है। 

 

लिवर भेजा दिल्ली :
पी.जी.आई. ओर्गन ट्रांसप्लांट विभाग (रोटो) के नोडल ऑफिसर डा. विपिन कौशन ने बताया कि परिजनों ने वरुन के ओर्गन डोनेट करने की सहमति तो दी। लेकिन पी.जी.आई. में लिवर का कोई मैचिंग रिस्सीपिंयट नहीं मिल पाया। हम परिजनों के त्याग को बेकान नहीं होना देना चाहते थे, जिसके बाद हमने नोटो (नैशनल ओर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ओर्गेनाइजेशन) के साथ सपंर्क किया। 

 

दिल्ली आई.एल.बी.एस.(इंस्टीयूट ऑफ लीवर एंड बीलरी साइंस) में हमें मैचिंग रिस्सीपिंयट होने के सूचना मिली। हमने पी.जी.आई. से एयरपोर्ट तक लिवर को पहुंचाया जहां आई.एल.बी.एस.की टीम ओर्गन को अस्पताल तक ले गई। ओर्गन शेयर करने के कारण दिल्ली में एक मरीज की जान बच पाई है। तीन घंटे तक हमने लिवर को दिल्ली तक पहुंचा दिया जो काफी मेहनत का काम था हमारी पूरी टीम व अस्पताल स्टाफ का इससे काफी योगदान रहा।


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