अपनी इंद्रियों वश में रखने वाला ही है असली बुद्धिमान : डॉ विवेक बिंद्रा

punjabkesari.in Wednesday, May 22, 2024 - 06:53 PM (IST)

श्रीमद्भगवतगीता एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें जीवन की हर एक समस्या का हल छुपा है, आजकल के जीवन में एक बड़ी परेशानी है व्यक्ति का अपनी ही मन की इच्छाओं और इन्द्रियों पर काबू ना होना। एक बार की बात है कि अर्जुन घूमते घूमते देवराज इंद्र की नगरी अमरावती पहुंचे, जहां उन्होंने अस्त्र शस्त्र की ट्रेनिंग ली। शस्त्र विद्या की ट्रेनिंग लेने के बाद देवराज इंद्र ने उन्हें संगीत और नृत्य कला की शिक्षा लेने की भी बात कही। अर्जुन ने देवराज इंद्र की बात मानते हुए संगीत और नृत्य की शिक्षा को शुरू किया। 

अर्जुन जब गंधर्व चित्रसेन के पास नृत्य की शिक्षा ले रहे थे तब स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी ने उन्हें नृत्य करते हुए देखा। अर्जुन का मनमोहक रूप देख उर्वशी उनकी ओर आकर्षित हो गई, जिसके बाद उसने अर्जुन के पास जाकर उनसे विवाह की इच्छा जाहिर की। लेकिन अर्जुन ने उर्वर्शी के सामने हाथ जोड़कर कहा कि मैं आपके चरण स्पर्श करना चाहता हूं क्योंकि मैं आपको अपनी मां के समान मानता हूं। 

अर्जुन का अपने मन और मस्तिष्क पर इतनी अच्छी तरह से काबू था कि स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा के विवाह प्रस्ताव को भी उन्होंने एक पल में ना सिर्फ अस्वीकार किया बल्कि उन्हें मां का दर्जा भी दे दिया। लेकिन महाभारत के युद्ध के समय एक ऐसा समय आया जब अर्जुन का भी अपने मन मस्तिष्क से कंट्रोल खोने लगा था। तब भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध के दौरान अर्जुन को मार्गदर्शन प्रदान किया। 

दूसरे अध्याय के 58वें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं…

यदा संहरते चायं कूर्मोंऽग्नीङाव सर्वश: ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ।।

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि “जिस प्रकार कछुआ अपने अंगों को संकुचित करके, अपने खोल के भीतर खींच लेता है, ठीक उसी प्रकार बुद्धिमान व्यक्ति जब ज़रूरत पड़ेगी तब अपनी इंद्रियों को इंद्रियविषयों से अलग कर लेता है।”

जैसे कान एक इंद्रि है और उसका इंद्रियविषय है अपनी अच्छाई को सुनना और दूसरों की बुराई सुनना। इसी तरह से सभी इंद्रियों का अपना इंद्रियविषय होता है जिसके लोभ में व्यक्ति फंसा होता है। यहां पर भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों पर काबू करना सीख लेता है असल में वही बुद्धिमान होता है। 

कैसे करें इंद्रियों को इंद्रियविषयों से अलग

इंद्रियों को इंद्रियविषय से किस तरह अलग किया जाता है इसका उदाहरण रामायण में भगवान श्री राम के भाई भरत ने सामने रखा। भगवान श्री राम के वनवास जाने के बाद उनके पास पूरा अवसर था कि वो अयोध्या के सिंहासन पर बैठ कर राज करें। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, भगवान श्रीराम की चरण पादुकाएं उन्होंने सिंहासन पर रखी और स्वयं भी एक वनवासी की तरह जीवन बिताते हुए राज्य को चलाया। राजसी सुख के लोभ लालच को छोड़ सेवा धर्म को चुना। तो जो व्यक्ति समय और परिस्थिति के हिसाब से अपनी इंद्रियों को काबू कर सकता है वही असल में अपने जीवन में कुछ हासिल कर पाता है। 

मेजर ध्यानचंद ने भी अपने मजबूत इरादों से दी लोभ और लालच को मात

ऐसा ही एक अवसर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जीवन में भी आया था। 15 अगस्त 1926 को बर्लिन ओलंपिक में इंडिया और जर्मनी का फाइनल मैच हो रहा था। जहां मेजर ध्यानचंद ने बिना जूतों के मैच खेला और एक के बाद एक गोल करके जर्मनी को हरा दिया। ऐसा अद्भुत प्रदर्शन देख जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने मेजर ध्यानचंद को जर्मनी के लिए हॉकी खेलने को कहा और साथ ही उन्हें बड़ी तनख्वाह के साथ आर्मी में एक बड़े पद का ऑफर भी दिया। लेकिन भारत देश को समर्पित मेजर ध्यानचंद ने हिटलर के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि ये भारत की जिम्मेदारी नहीं है कि वो मुझे आगे बढ़ाए बल्कि ये मेरी जिम्मेदारी है कि मैं भारत को आगे बढ़ाऊं। 

इसे ही भगवान श्री कृष्ण ने भगवतगीता में स्टेबल इंटेलिजेंस बताया है जब व्यक्ति का अपनी इंद्रियों का पूरी तरह से कंट्रोल होता है कोई लालच और मोह उन्हें अपने वश में नहीं कर पाता है। डॉ विवेक बिंद्रा लगातार भगवतगीता की ये सीख लोगों तक पहुंचाने का काम करते रहे हैं, अपने इसी लक्ष्य को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने “गीता इन एक्शन” के इस दूसरे सीजन को शुरू किया है। इस शो के सभी एपिसोड्स को उनके यूट्यूब चैनल पर देखा जा सकता है।


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Content Editor

Diksha Raghuwanshi

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