अब PGI में सिर्फ MBBS और MD डॉक्टर्स ही साइन कर सकेंगे लैब रिपोर्ट

punjabkesari.in Friday, Oct 06, 2017 - 10:30 AM (IST)

चंडीगढ़ (अर्चना): लैब रिपोर्ट साइन किए जाने को लेकर मैडीकल कौंसिल ऑफ इंडिया और पी.जी.आई. के बीच चल रहे घमासान के बीच आखिरकार पी.जी.आई. को अपना फैसला बदलना पड़ा। दिल्ली हाई कोर्ट में दायर एक याचिका में सुनाए गए फैसले के बाद पी.जी.आई. के डायरैक्टर प्रो.जगत राम ने लैब रिपोट्स साइन किए जाने के बाबत 27 जुलाई को दिए फरमान को वापस ले लिया है। दो महीने पहले प्रो.जगत राम ने पी.जी.आई. को जारी किए गए आदेश में कहा था कि मैडीकल कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा 14 जून को जारी की गई नोटीफिकेशन पी.जी.आई. पर लागू नहीं होती है, क्योंकि पी.जी.आई. एक ऑटोनोमस बॉडी है। 

 

आदेश में लिखा था कि पी.जी.आई. के एम.बी.बी.एस., एम.डी. और पी.एच.डी. होल्डर डाक्टर्स लैब रिपोर्ट्स को साइन कर सकेंगे। जबकि प्राइवेट लैबोरेटरी और अन्य हॉस्पिटल्स ने एम.सी.आई. की ओर से जारी की गई नोटीफिकेशन को ध्यान में रखते हुए नॉन मैडिको डाक्टर्स द्वारा लैब रिपोटर््स की साइनिंग पर रोक लगा दी थी। पी.जी.आई. एम.सी.आई. के निर्देश जारी होने के बावजूद बायोकैमिस्ट्री, वायरोलॉजी, इम्युनोपैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी की लैब्स में 20 के करीब नॉन मैडिको डाक्टर्स ही रिपोर्ट्स साइन कर रहे थे। 


 

पहले लैब रिपोर्ट्स की साइनिंग अथॉरिटी का उठा था मामला 
चंडीगढ़ में 9 साल पहले लैब रिपोर्ट्स की साइनिंग अथॉरिटी का मामला उठा था। जी.एम.सी.एच.-32 की एक डाक्टर ने हैल्थ मिनिस्ट्री को एक शिकायत भेजी थी और कहा था कि नॉन मैडिको डाक्टर लैब रिपोर्ट साइन नहीं कर सकती हैं। हाल ही में सितम्बर के महीने में हाई कोर्ट द्वारा लैब रिपोर्ट्स की साइनिंग को लेकर जारी किए गए आदेश जिसमें कहा गया है कि सिर्फ एम.बी.बी.एस. और एम.डी. डाक्टर्स ही लैब रिपोर्ट साइन कर सकेंगे। पी.एचडी., एम.एससी. और लैब टैक्नीशियंस लैब रिपोर्ट साइन नहीं कर सकते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं पी.जी.आई. के डायरैक्टर प्रो.जगत राम पिछले समय में एम.सी.आई. ओवरसाइट कमेटी के सदस्य भी बन चुके हैं। 
 
 

यह था मामला
लैब रिपोर्ट्स की साइनिंग को लेकर वर्ष 2009 में मामला उठा था। जी.एम.सी.एच.-32 की गाइनीकोलॉजी डाक्टर ने हैल्थ मिनिस्ट्री और चंडीगढ़ प्रशासन को इस बाबत लिखित शिकायत की थी कि हॉस्पिटल की लैब रिपोर्ट्स नॉन मैडिको डाक्टर्स साइन कर रहे हैं परंतु तत्कालीन समय में शिकायत को नजरअंदाज कर दिया गया था। आज हाई कोर्ट के आदेशों और एम.सी.आई. के निर्देशों के बाद सभी लैब रिपोर्ट्स की साइनिंग का अधिकार सिर्फ मैडिको डाक्टर्स को सौंप दिया गया है। जब गाइनीकोलॉजी विभाग की प्रोफैसर डॉ.अलका सहगल से इस बाबत बात की तो उन्होंने कहा कि वह इस मुद्दे पर कुछ भी कहना नहीं चाहती परंतु चंडीगढ़ प्रशासन से इस बाबत सवाल किया जाना चाहिए कि सालों पहले उन्होंने मेरी शिकायत की तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया था? 


 

यह कहते हैं हाईकोर्ट के आदेश
15 सितम्बर 2017 को दिल्ली हाई कोर्ट ने एसोसिएशन ऑफ क्लीनिकल बायोकैमिस्ट एंड माइक्रोबायोलॉजिस्ट ए.सी.बी.एम. बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस में अपना फैसला सुनाया है। याचिका में एम.सी.आई. द्वारा 14 जून 2017 को जारी की गई लैटर को चुनौती दी गई थी। उसमें एम.सी.आई. ने कहा था कि सभी लैब रिपोर्ट एम.सी.आई. /स्टेट मैडीकल कौंसिल से रजिस्टर लोगों द्वारा ही साइन की जाएगी। याचिका के मुताबिक संबंधित आदेश इंडियन मैडीकल कौंसिल एक्ट की सैक्शन 15(2)की उल्लंघना थी। साथ ही यह याची एसोसिएशन को उनके व्यापार और व्यवसाय के अधिकार से वंचित करती है। याची के मुताबिक उनकी एसोसिएशन उच्च शैक्षणिक योगयता रखती है और लैबोरेटरी टैस्टिंग  की गतिविधियों से जुड़े हैं। 

 

वहीं कहा गया है कि लैब टैस्ट करना और रिपोर्ट सबमिट करवाना महत्वपूर्ण दक्षता से जुड़े काम है जिसके लिए याची एसोसिएशन पूरी तरह से क्वालिफाईड है। ऐसा जरूरी नहीं है कि उनके द्वारा सबमिट टैस्ट रिपोर्ट पर मैडीकल प्रैक्टिशनर के काऊंटर साइन हो। याची पक्ष के मुताबिक नैशनल एक्रेडिशन बोर्ड फॉर टैस्टिंग एंड कैलिब्रेटिंग लैबोरेटरीज पैथोलॉजी लैबोरेटरी को एक्रेडिशन देने के लिए सक्षम है और एम.सी.आई. से एक्रेडिशन की आवश्यकता नहीं है। हाई कोर्ट ने संबंधित मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि मैडीकल लैबोरेटरी रिपोर्ट को टैस्ट रिपोर्ट के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता, जो सिर्फ टैस्ट का परिणाम बताती है या किस प्रकार से टेस्ट किया गया है। 

 

साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि मैडीकल लैबोरेटरी रिपोर्ट वह है जिसमें मैडीकल डायग्नोस्टिक रिजल्ट और /या टैस्ट रिजल्ट के संबंध में राय दी होती है। वहीं टैक्नीकल रिपोर्ट बिना अपनी राय दिए टैस्ट का रिजल्ट बताती है और सैंपल का आंकलन दर्शाती है ऐसे में यह मैडीकल लैबोरेटरी रिपोर्ट की श्रेणी में नहीं आती है। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि जिस कम्युनिकेशन को चुनौती दी गई थी उसको सीमित रूप में ही देखा जा सकता है ना की विस्तृत रूप में। ऐसे में कोर्ट ने कहा कि  संबंधित कम्युनिकेशन को जिस प्रकार रखा गया है उसे लेकर याची की कोई समस्या नहीं हो सकती। ऐसे में संबंधित याचिका में आगामी आदेश जारी करने की कोई आवश्यकता नहीं है। हाई कोर्ट ने अपने इसी विचार के साथ याचिका का निपटारा कर दिया। 


 


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