निगम ने मैच्योर होने से पहले फिर निकाले एफ.डी. से पैसे

Saturday, Oct 10, 2020 - 08:00 PM (IST)

चंडीगढ़, (राय): वित्तीय संकट से जूझ रहे चंडीगढ़ नगर निगम ने वेतन, मजदूरी और विभिन्न बकाया बिलों का भुगतान करने के लिए फिर से बैंक में जमा अपनी फिक्स्ड डिपॉजिट (एफ.डी.) राशि को समय से पहले निकाला है। निगम सूत्रों के अनुसार इस बार करीब 10 करोड़ की एफ.डी. में पड़ी राशि को मैच्योर होने से पहले बैंक से निकाला गया है। कुछ वर्ष से निगम ने अपनी 500 करोड़ से अधिक की एफ.डी. राशि को मैच्योर होने से पहले बार-बार अपने खर्च चलाने के लिए बैंक से निकाला और आज स्थिति यह है कि उसके पास मासिक वेतन व मजदूरी के भुगतान के लिए भी पैसा नहीं है।
ग्रांट-इन-एड में भी हुई कटौती
निगम को इस वर्ष ग्रांट-इन-एड के रूप में दी जाने वाली 580 करोड़ की राशि में भी कट लग रहा है जबकि 597 करोड़ की निगम की देनदारियां हैं। कोविड-19 संकट के दौरान निगम को अपने स्रोतों से होने वाली आय में भी कमी आई। अनुदान-आधारित सहायता में तिमाही आधार पर 20 प्रतिशत की कटौती की गई है। अब उसे यह राशि भी एक मुश्त नहीं दी जाएगी और उसे बैंक में राशि जमा करवाकर मिलने वाले ब्याज से भी हाथ धोना पड़ा है।
संशोधित बजट अनुमान के तहत 1, 232 करोड़ की मांग की 
निगम को वेतन के रूप में 420 करोड़, पैंशन के भुगतान के लिए  50 करोड़, बिजली बिलों के भुगतान के लिए 120 करोड़ और ईंधन खर्च के रूप में 100 करोड़ रुपए की आवश्यकता होती है। निगम ने प्रशासन से संशोधित बजट अनुमान के तहत 1, 232 करोड़ की मांग की है। इस राशि में से 1,072 करोड़ राजस्व के अधीन है। केवल 115 करोड़ का उपयोग विकास कार्यों के लिए किया जाना है।

 


निगम के गांवों में विकास कार्य पड़े ठप्प
चंडीगढ़ प्रशासन ने अपने अधिकारी क्षेत्र में आते 13 गांव तो निगम के हवाले कर दिए लेकिन इनके विकास के लिए अतिरिक्त धन देने से इन्कार कर दिया। अब हालत यह है कि गांवों में विकास भी नहीं हुआ और बिल न चुका पाने के कारण कई गांवों में स्ट्रीट लाइटों के कनैक्शन ही कट गए हैं। निगम ने चालू वित्त वर्ष में गांवों के विकास के लिए 125 करोड़ और मनीमाजरा के लिए 13 करोड़ की मांग की थी।
प्रशासन के राजस्व में से पूरा हिस्सा दिए देेने के लिए लिखा था पत्र 
प्रशासन के नागरिक निकाय विभाग का कहना है कि प्रशासन ने जो रिवाइज्ड बजट केंद्र सरकार को भेजा है, अगर वह पारित हो जाता है तो निगम को अतिरिक्त फंड देने पर विचार किया जा सकता है। वित्त संकट को गहराते देख निगम कमिश्नर के.के. यादव ने पिछले दिनों प्रशासन को चौथे दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर निगम को प्रशासन के राजस्व में से उसका पूरा हिस्सा दिए जाने के लिए भी पत्र लिखा था। प्रशासन ने उसे केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज दिया है लेकिन वहां से अभी कोई जवाब नहीं आया है। निगम ने संकट से उभरने के लिए अब सम्पत्ति कर के डिफाल्टरों, पानी के बिलों का भुगतान न करने वालों और निगम की सम्पत्ति का बकाया न जमा कराने वालों को नोटिस भेजने शुरू कर दिए हैं।

AJIT DHANKHAR

Advertising