सिर्फ स्क्रीन पर दिखना है, यह सोच कर काम नहीं कर सकता : शेखर सुमन

Wednesday, Jul 17, 2019 - 12:45 PM (IST)

चंडीगढ़(रवि पाल) : मुझे सिर्फ स्क्रीन पर दिखना है, यह सोचकर मैं काम नहीं कर सकता। लोग अक्सर पूछते हैं कि बड़े दिन हो गए आप स्क्रीन पर नजर नहीं आ रहे। उनके लिए मेरा यही जवाब होता है। फिल्म उत्सव, देख भाई देख और मूवर्स एंड शेखर जैसे शो में काम करने के बाद मेरी सोच बदल गई है। ऐसे में कोई भी ऑफर आए, और मैं उसे कर लूं तो लोग खुद कहेंगे कि शेखर को क्या हो गया है किस तरह का काम कर रहा है।

 यह कहना है एक्टर शेखर सुमन का, जो जीरकपुर में आयोजित हुए हैल्थ अवेयरनैस सैमीनार में पहुंचे थे।  उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि मैं अब काम को लेकर सिलैक्टिव हो गया हूं। यह सोच शुरू से थी। हां वक्त के साथ सोच में भी बदलाव आया है पहले जो गलतियां करता था। अब नहीं करता। लोगों को सच्चाई बर्दाश्त नहीं होती। इसलिए मैंने बेबाकी बंद कर दी है। मैं क्यों मसीहा बनूं। मैं अपने आपको एक अच्छा इंसान बना लूं। यही मेरे लिए काफी है।

हर कोई अगर यह सोच ले तो किसी समाज सुधारक की जरूरत नहीं है। मेरा मानना है कि शालीनता के दायरे में रहकर भी आप बहुत कुछ सिखा सकते हैं। आपको कौन सा रास्ता चुनना है यह आपका फैसला है। एक्सपीरियंस आपको बहुत कुछ सिखाता है। मैं जिंदगी में भागना नहीं चाहता, ठहराव बहुत जरूरी है। बिना सोचे समझे रफ्तार पकड़ लोगे तो गिरने का खतरा ज्यादा रहता है।

ट्रोलर्स मेरे लिए मायने नहीं रखते 
आज लोगों में इनटोलरैंस बढ़ रहा है, जिसका जिम्मेदार कुछ हद तक सोशल मीडिया भी है। आपके हर पल की खबर यहां रहती है। यहां ऐसे-ऐसे लोग भरे पड़े हैं जिनकी सोच इतनी घटिया है कि वह आपको गिराने का कोई मौका नहीं छोड़ते। कभी वह खुद यह करते हैं तो कभी किसी के इशारों पर। हर चीज पर एक लिमिट होना बहुत जरूरी है। लोग आपको ट्रोल करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। ऐसा नहीं है कि मैं एंटी सोशल इंसान हूं। मेरे मन में जब कोई उन्माद आता है तो तब सोशल मीडिया पर आता हूं। हालांकि मेरे लिए ट्रोलर्स अहमियत नहीं रखते। उनमें इतनी हिम्मत नहीं है कि वह आपको सामने आकर कुछ कह सकें। ऐसे लोग छिपकर ही किसी पर अटैक कर सकते हैं। इसलिए इन लोगों को अनदेखा ही करते हैं।

हंसाना नहीं, जगाना था मकसद 
90 के दशक में आया शो मूवर्स एंड शेखर स्मॉल स्क्रीन का पहला ऐसा शो था जिसने कॉमेडी के जरिए ऐसी बड़ी बड़ी बातों को लोगों के सामने रखा। लोग सोचने पर मजबूर हुए। खुद शेखर की मानें तो वह शो कभी कॉमेडी नहीं था। वह एक बातचीत थी, जिसमें हमने ऐसे मुद्दे उठाए जिनको लोग सुनना व जानना चाहते थे। शायद वही बात लोगों को अच्छी लगी। शो का कॉन्सैप्ट सटॉयर था कि न चाहते हुए लोगों को उसमें ह्यूमर मिला तो लोग हंसे। मकसद लोगों को जगाना था। हमने वाजपेयी साहब जैसी बड़ी पर्सनैलिटी पर व्यंग्य किया, लेकिन वो किसी को चुभा नहीं। आज जिस तरह कॉमेडी हो रही है उन पर यही कहना चाहूंगा कि शालीनता के दायरे में रहकर भी आप लोगों को हंसा सकते हैं।

bhavita joshi

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