'भारत: तेजी से बढ़ रही ब्याज दरों के बीच सावधानी से करें निवेश'

punjabkesari.in Saturday, Jul 29, 2023 - 08:27 PM (IST)

पूरी दुनिया में अधिकांश एडवांस्ड इकोनॉमीज अभी भी सर्विसेज द्वारा संचालित काफी तेजी से बढ़ती महंगाई का सामना कर रही हैं। श्रीजीत बालासुब्रमण्यम, इकोनॉमिस्ट और वाइस प्रेसिडेंट, फिक्स्ड इनकम टीम, बंधन एएमसी का कहना है कि ‘‘अमेरिका में, बैंकिंग सेक्टर की अधिकांश समस्याएं सुलझ गई हैं, हाउसिंग सेक्टर में सुधार हो रहा है और उनकी ग्रोथ ने सभी को हैरान कर दिया है। वास्तव में, फेड स्टाफ अब अमेरिकी मंदी की भविष्यवाणी नहीं करता है। संभावित वेल्थ इम्पैक्ट के अलावा, बीते सालों में महामारी से जुड़े फिस्कल इंसेटिव्स और एक मजबूत लेबर मार्केट के अलावा लोगों के पास पड़ी एडह्वीशनल घरेलू बचत के तौर पर जमा फंड्स भी इकोनॉमी को मजबूती दे रहे हैं। कोर-नॉन-हाउसिंग-सर्विसेज सीपीआई पर अब फेड का पूरा ध्यान केन्द्रित है और इसलिए इसमें आगे ग्रोथ देखने की जरूरत है। ग्राहकों की मांग के चलते चीजों के दाम भी बढ़े हैं लेकिन ये ग्रोथ के लिए अच्छे हैं।’’
 
बालासुब्रमण्यम ने कहा कि ‘‘यूरोप में, मुख्य अंतर कमजोर ग्रोथ है। दिसंबर और मार्च तिमाही में यूरो एरिया की तिमाही दर तिमाही वास्तविक जीडीपी ग्रोथ निगेटिव रही है। मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई गिर रहा है और अमेरिका की तुलना में काफी कमजोर है। ग्राहकों का भरोसा और रिटेल सेक्टर में सेल्स भी कमजोर है, जबकि बैंक के कर्जों को लेकर मार्केट सर्वे क्रेडिट हालात को लेकर सख्त संकेत दे रहे हैं और कंपनियों की ओर से बहुत कमजोर मांग के संकेत मिल रहे हैं। हालांकि, यहां कंस्ट्रक्शन और सर्विसेज सेक्टर्स में भी लेबर मार्केट काफी सख्त है। मुद्रास्फीति भी गिर रही है, लेकिन अमेरिका की तुलना में, ग्रोथ धीमी है। चीजों के दाम घटने से, जिसका ईए में सीपीआई में अधिक भार है, कम रही है और विभिन्न सर्विसेज में महंगाई की दर काफी मजबूत है।’’
 
उनका कहना है कि ‘‘फेड ने, हालांकि मार्च 2022 से अपनी प्रत्येक रिव्यू मीटिंग में दरों में बढ़ोतरी के बाद जून में इसे रोक दिया था। उसके बाद 2023 के लिए फेड फंड दर के लिए अपने औसत प्रोजेक्शन में (50बीपीएस तक) और 2024 के लिए (कम कटौती) वृद्धि की और इसके बाद जुलाई, 2023 में दरों में 25बीपीएस की बढ़ोतरी की गई। इस प्रकार मजबूत ग्रोथ फेड को अपने काम पर टिके रहने का मौका दे रही है। दूसरी ओर, ईसीबी ने कमजोर ग्रोथ, एनर्जी की कीमतों में नरमी और सख्त क्रेडिट स्थितियों को स्वीकार किया है, लेकिन विशेष रूप से सर्विस सेक्टर में काफी सख्त लेबर मार्केट से मुद्रास्फीति के बढऩे के जोखिम को भी स्वीकार किया है। ईसीबी को सदस्य देशों में अलग-अलग आर्थिक स्थितियों और राजकोषीय नीतियों की अतिरिक्त चुनौती का सामना करना पड़ता है। सभी ने कहा, ऐतिहासिक गति और पैमाने के बाद फेड और ईसीबी के लिए इस साइकिल में दरों में बढ़ोतरी का यह अंतिम चरण होने की संभावना है।’’
 
बालासुब्रमण्यम ने कहा कि ‘‘यूके जैसी अन्य एडवांस्ड इकोनॉमीज अभी भी बहुत अधिक महंगाई दरों का सामना कर रही हैं और बाजार यहां सेंट्रल बैंक दर में और आक्रामक बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया में, मुद्रास्फीति संभवत: अपने चरम को पार कर गई है और लेबर मार्केट में नरमी आई है, लेकिन यह अभी भी प्रगति पर है और केंद्रीय बैंक ने हाल ही में इसे रोक दिया है। स्वीडन में, उपभोक्ता मांग में गिरावट के साथ ग्रोथ के आंकड़े कमजोर रहे हैं, लेकिन चीजों के दाम कम होने की गति काफी धीमी रही है और इसलिए इसके सेंट्रल बैंक ने जून में पॉलिसी रेट में फिर से 25 बीपीएस की बढ़ोतरी की है।’’
 
बालासुब्रमण्यम ने कहा कि ‘‘उभरते बाजारों में, चीन महामारी और प्रॉपर्टी सेक्टर से पहले से धीमा रहा है और अब इसमें अन्य समस्याएं भी शामिल हो गई हैं और बिजली की कमी भी शामिल हो गई। इस वर्ष आर्थिक गतिविधियों को दोबारा से खोलने के बावजूद बाजारों में उत्साह नहीं है क्योंकि उपभोक्ता मांग कमजोर है और ग्लोबल ग्रोथ का भी धीमा होना तय है। पॉलिसी रिस्पांस को हमेशा मापा और टार्गेट किया गया है, और इसके साथ ही प्राइवेट कंजम्पशन को संबोधित करने के लिए एक बड़े इंसेटिव को अब तक टाला गया है। मुद्रास्फीति कम होने के कारण इंडोनेशिया के सेंट्रल बैंक ने कुछ समय के लिए अपने पॉलिसी रेट में कोई बदलाव नहीं किया है। फिलीपींस में भी मुद्रास्फीति कम होने से रुक गई है लेकिन यह कुछ सरकारी खाद्य मूल्य नियंत्रणों के कारण भी था। मलेशिया में भी, जैसे-जैसे मुद्रास्फीति कम हो रही है, सेंट्रल बैंक ने इस साल दरों को बढ़ाने पर रोक लगा दी, मई महीने में में बढ़ोतरी की लेकिन फिर से रोक दी गई है।’’ उनका कहना है कि  वियतनाम में मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात ग्रोथ धीमी हो गई है और मुद्रास्फीति भी धीमी हो गई है, और सेंट्रल बैंक पहले ही अप्रैल से दरों में कटौती कर चुका है।
 
बालासुब्रमण्यम ने कहा कि ‘‘भारत की मार्च तिमाही में जीडीपी ग्रोथ उम्मीद से बेहतर रही, चालू खाता घाटे में सुधार हुआ है, जबकि जीएसटी कलेक्शन और पोर्टफोलियो प्रवाह में उछाल आया है। कॉरपोरेट और बैंकिंग सेक्टर की बैलेंस शीट अब पहले से काफी बेहतर हैं। हालांकि, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स चीजों का उत्पादन थोड़ा कमजोर रहा है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही है और अल नीनो (मानसून सीजन में कम वर्षा के माध्यम से) और धीमी वैश्विक वृद्धि से संभावित जोखिम हैं। आरबीआई ने दरों में बढ़ोतरी के बाद रोक लगा दी है, लेकिन मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के लक्ष्य के साथ क्रमिक आधार पर तालमेल में लाना काफी हद तक जरूरी हो गया है। इसलिए, एडवांस इकोनॉमी वाले सेंट्रल बैंक इस साइकिल में दरों में बढ़ोतरी के ज्यादातर अंतिम चरण में हैं, लेकिन उनके बीच कुछ विविधिताएं भी हैं। जहां मुद्रास्फीति वर्तमान में लक्ष्य, डिसइनफ्लेशन की संभावित ट्रांजेक्ट्री और ग्रोथ की तुलना में है। जबकि कुछ उभरते बाजार सेंट्रल बैंकों ने मुद्रास्फीति कम होने के कारण दरों में बढ़ोतरी रोक दी है, इनमें से कई इकोनॉमी इंफ्रास्ट्रक्चर आधार पर फूड और तेल की कीमतों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना उनके लिए वास्तव में महत्वपूर्ण होगा।’’
 
अंत में बालासुब्रमण्यम का कहना है कि ‘‘आखिरकार, नीतिगत दरों पर सवाल अब दर में कटौती से पहले कितना-कितना आगे से कब तक होगा तक बदल गया है। अंत में, जो मायने रखता है वह लंबी अवधि तक न्यूट्रल रेट है, वह दर जिस पर पॉलिसी किसी अर्थव्यवस्था के लिए न तो एकमोडेटिव होती है और न ही रिस्ट्रक्टिव होती है। इसका मूल्यांकन और क्या यह महामारी के बाद बदल गया है, भविष्य की नीति दिशा का मार्गदर्शन करेगा। इस पर करीबी नजर रखने की जरूरत है।’’


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News Editor

Deepender Thakur

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