समलैंगिकों पर हो रहा अत्याचार डिप्रैशन के शिकार, शराब सहारा

Tuesday, Aug 08, 2017 - 11:23 AM (IST)

चंडीगढ़(अर्चना) : चंडीगढ़ में समलैंगिकों को समाज का हिंसा नहीं समझा जा रहा। जिन पर अत्याचार किए जा रहे हैं, जिसकी वजह से वह डिप्रैशन का शिकार होकर शराब का सहारा ले रहे हैं, जिनका उक्त व्यवहार उनमें एड्स का खतरा बढ़ा रहा है। उनके इस व्यवहार का बड़ा कारण डाक्टर भी हैं जो उनका इलाज करना खुद की तौहीन समझते हैं। 

 

यह खुलासा किसी की शिकायत पर नहीं बल्कि पी.जी.आई. के स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के डाक्टरों और एड्स कंट्रोल सोसायटी द्वारा संयुक्त रूप से किए रिसर्च में हुआ है। मौजूदा समय में चंडीगढ़ में समलैंगिक (पुरुषों) में 0.4 प्रतिशत लोग एच.आई.वी. से ग्रस्त हैं, जबकि आम लोगों में एच.आई.वी. की मौजूदगी 0.25 प्रतिशत है। आम लोगों के मुकाबले समलैंगिकों में एच.आई.वी. की तादाद अधिक है। समलैंगिकों की यह तादाद चंडीगढ़ के स्टेट एड्स कंट्रोल प्रोग्राम के लिए खतरा बन सकती है। 

 

अध्ययनकर्ताओं की मानें तो न सिर्फ परिवार और समाज बल्कि डाक्टर्स भी समलैंगिकों को इलाज देना पसंद नहीं करते हैं। यह वर्ग खुद भी इस वजह से तनाव में है, क्योंकि सैक्शन 377 भी उनके बर्ताव को अपराधिक मानता है। उनका कहना है कि पुरुषों के समलैंगिक बनने की वजह हारमोन या जीन्स से संबंधित नहीं है ना ही उनका परिवार इसके लिए जिम्मेदार होता है। असल में किसी भी पुरुष का व्यवहार ऐसा होने की वजह आज तक पता नहीं चल सकी है। उनका कहना है कि नेचर ने कुछ लोगों को ऐसा क्यों बनाया है, इसके लिए बड़े अध्ययनों की जरूरत है।  

 

समलैंगिकों के भी हैं उपनाम :
स्टडी के दौरान समलैंगिक (पुरुष) के ग्रुप (कोठी, पंथी, डबल डेकर, बाईसैक्सुअल और गे वर्ग से संबंधित लोगों को रिसर्च का हिस्सा बनाया गया। नॉन गवर्नमैंट ऑर्गेनाइजेशन की मदद से एम.एस.एस. से संपर्क किया गया। समलैंगिकों की प्रॉब्लम जानने के लिए ग्रुप डिस्कशंस की गई। 

 

स्टडी कहती है कि समलैंगिक समाज के व्यवहार की वजह से डिप्रैशन की चपेट में हैं। समाज उन्हें तिरस्कृत्त निगाहों से देखता है। वह लोग भी खुद भी अपने बर्ताव से शर्मिंदा हैं और शराब को आसरा बना रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि समलैंगिकों में ठग वर्ग और पुलिस के कारिंदे तक उन्हें मानसिक और शारीरिक तौर पर प्रताडि़त करते हैं।  

 

न ट्रांसजैंडर वर्ग में आते हैं, न सामान्य लोगों की तरह होते हैं :
शोधकर्ता डाक्टर वेंकटेशन चक्रपानी ने बताया कि यह स्टडी एम.एस.एम. के समक्ष आने वाली समस्याओं को ध्यान में रखते हुए की गई है। एम.एस.एम. समाज का ऐसा ग्रुप है जो न तो ट्रांसजैंडर वर्ग में आते हैं, न ही सामान्य लोगों की तरह ये होते हैं। चूंकि प्रकृति ने उन्हें इसी तरह का बनाया है। 

 

यह वर्ग खुद भी जानता है कि यह लोग समाज से भिन्न हैं इसलिए लोग उन्हें तिरस्कार की नजरों से देखते हैं, जिसके चलते यह लोग डिप्रैशन की चपेट में आ जाते हैं। डाक्टर्स तक इन्हें ट्रीटमैंट देने से गुरेज करते हैं। परेशान होकर यह लोग शराब, नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। उनके इस रवैये की वजह से एच.आई.वी. संक्रमण बढऩे का खतरा भी बढ़ जाता है।  

 

कोई भगवान से नाराज तो कोई छोड़ रहा परिवार :
-मेरी दो बहनें हैं। मेरी समलैंगिकता के बारे में अगर समाज को पता चला तो मेरी बहनों की शादी नहीं हो सकेगी। मैं खुद को बदलने में असमर्थ हूं। मैं ऐसा क्यों हूं मैं भी नहीं जानता और मैंने खुद को बदलने की कोशिश भी बहुत की है, मैं जल्द ही अपने परिवार से दूर हो जाऊंगा, ताकि मेरे परिवार को मेरी वजह से समाज में शर्मिंदा न होना पड़े।

-मैं अपने बारे में हर रोज सोचता हूं कि मैं ऐसा क्यों हूं? यह सोच सोचकर मैं तनाव में जा रहा हूं। ईश्वर से भी यही सवाल करता हूं कि मुझे दूसरे पुरुषों जैसा क्यों नहीं बनाया, परंतु कोई जवाब नहीं मिलता, लेकिन मेरे फ्रैंड्स मेरा साथ दे रहे हैं। उन्हें मेरी आदतों के बारे में पता है और वो मेरा सहारा बन चुके हैं।

-मैं जानता हूं कि समाज की सोच गलत नहीं है। पुरुषों को ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, परंतु मैं खुद को बदल नहीं पा रहा हूं। मैं यह भी जानता हूं कि आने वाले समय मुझे ऐसी आदत के नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहना होगा।

-हमें प्रकृति ने जैसा बनाया है उसकी वजह से लोग हम पर अत्याचार कर रहे हैं। पुलिस या ठग समुदाय के लोग अपनी पावर दिखाकर हमें शारीरिक तौर पर प्रताडि़त करते हैं, परंतु हम उनके खिलाफ कैसे आवाज उठाएं।
 

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