अंडों की फ्रीजिंग की ओर बढ़ रहा है युवतियों का झुकाव

punjabkesari.in Tuesday, Dec 05, 2023 - 11:39 AM (IST)

चंडीगढ़। महिलाओं द्वारा अंडों की फ्रीजिंग अब केवल चिकित्सा प्रक्रिया के लिए ही नहीं, बल्कि भविष्य में अपने प्रजनन पर ख़ुद का नियंत्रण पाने के लिए भी कराई जा रही है। अंडों की फ्रीजिंग 1980 के दशक से शुरू हो गई थी, और आज बहुत सी महिलाएं यह विकल्प चुनने लगी हैं। इंडियन सोसाइटी फॉर एसिस्टेड रिप्रोडक्शन (आईएसएआर) ने अंडों की फ्रीजिंग में 10-25% की वृद्धि दर्ज की है, जो 30 से 35 वर्ष के बीच की महिलाएं आमतौर से अपने करियर के उद्देश्य से करा रही हैं। इसका कारण करियर के अलावा इन्फ़र्टिलिटी का डर भी है। डॉ. राखी गोयल, कंसल्टैंट, बिरला फर्टिलिटी एंड आई. वी. एफ ने बताया कि  महिलाओं में जीवनशैली, तनाव और पर्यावरण में मौजूद टॉक्सिन आदि की वजह से इन्फ़र्टिलिटी की दर बढ़ रही है। इस डर और इन्फ़र्टिलिटी से जुड़े सामाजिक दबाव के कारण महिलाएं अंडों की फ्रीजिंग जैसे विकल्पों पर विचार करने लगी हैं।

प्रक्रिया

यह जटिल प्रक्रिया कई चरणों पूरी होती है। सबसे पहले हार्मोन्स को उत्तेजित किया जाता है, जिससे ओवरीज़ एक चक्र में कई अंडे उत्पन्न करने के लिए प्रेरित होती हैं। फिर इन उत्पन्न अंडों को एक छोटी सी सर्जरी करके निकाल लिया जाता है। इसके बाद इन निकाले गए अंडों को सावधानीपूर्वक तरल नाइट्रोजन में फ्रीज़ कर दिया जाता है। इन अंडों को एक दशक तक सुरक्षित करके रखा जा सकता है। इस प्रक्रिया को विट्रिफ़िकेशन भी कहा जाता है, जिसके द्वारा अंडों को तब तक सुरक्षित रखा जा सकता है, जब तक कि महिला इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आई. वी. एफ) द्वारा गर्भ धारण करने के लिए तैयार ना हो जाए।

अंडों की फ्रीजिंग के फायदे

अंडों की फ्रीजिंग से महिलाओं को कई फायदे मिलते हैं। इससे उन्हें अपनी प्रजनन क्षमता को संरक्षित करने का एक सक्रिय समाधान मिलता है, ताकि वो अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक लक्ष्यों की ओर बढ़ सकें। इस विधि द्वारा महिलाओं को अपने अच्छी गुणवत्ता के स्वस्थ अंडों को संरक्षित करने का विकल्प मिलता है, ताकि बढ़ती उम्र के कारण अंडों से जुड़े जोखिमों को कम किया जा सके। वो ज़्यादा आत्मविश्वास के साथ यह निर्णय ले सकती हैं कि वो माँ बनने के लिए कब तैयार हैं, और उन्हें परिवार नियोजन के लिए लचीलापन भी प्राप्त होता है। इसके अलावा, अंडों की फ्रीजिंग से प्रजनन क्षमता कम होने से जुड़ी चिंता और भावनात्मक दबाव भी कम होता है, और ज़्यादा उम्र में परिवार शुरू करने की इच्छुक महिलाओं को मानसिक शांति मिलती है।

इस प्रक्रिया की सफलता को प्रभावित करने वाले तत्व

अंडों की फ्रीजिंग के बारे में हो रही चर्चा एक सकारात्मक कदम है, लेकिन डॉक्टर इस प्रक्रिया की सफलता को प्रभावित करने वाले जोखिमों और तत्वों को समझने के महत्व पर जोर देते हैं। यदि जिस महिला के शरीर से अंडे प्राप्त किए गए हैं, वह युवा है, तो अंडों में निषेचन और गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है। महिलाओं की उम्र बढ़ने के साथ अंडों की गुणवत्ता कम होती चली जाती है, जिससे बाद में उनके निषेचित होने और गर्भ स्थापित होने की संभावना भी कम हो सकती है। इसके अलावा, अंडे की गुणवत्ता में आंतरिक भिन्नताएं भी हो सकती हैं, जो उनके निषेचन और भ्रूण के विकास को प्रभावित कर सकती हैं।

अंडा निकालने की प्रक्रिया के लिए हार्मोन्स को उत्तेजित किया जाता है, जिसकी वजह से कभी-कभी हल्की बेचैनी या साइड-इफ़ेक्ट महसूस हो सकते हैं। हार्मोन्स को उत्तेजित करने से अल्पकालिक शारीरिक परिवर्तन जैसे सूजन, मूड में बदलाव या ओवरीज़ के बढ़ने के कारण हल्का दर्द महसूस हो सकते हैं। दुर्लभ मामलों में ये साइड इफ़ेक्ट कुछ गंभीर हो सकते हैं, और ओवेरियन हाइपरस्टिम्युलेशन सिंड्रोम (ओएचएसएस) महसूस हो सकता है, जिसमें पेट में बेचैनी, सूजन और स्थिति गंभीर होने पर ऐसी समस्याएं हो सकती हैं, जिनके लिए डॉक्टर द्वारा इलाज कराना पड़ सकता है।

इसके अलावा, अंडों को फ्रीज़ कराने का निर्णय लेने से पहले उसकी लागत और उसके भावनात्मक प्रभाव के बारे में विचार कर लेना चाहिए। अंडों की फ्रीजिंग को एक विकल्प के रूप में रखना चाहिए, क्योंकि इससे प्रजनन क्षमता को संरक्षित करने का अवसर तो मिलता है, पर यह भविष्य में सफल गर्भधारण की गारंटी नहीं देता है। इसलिए अंडों को फ्रीज़ कराने से पहले स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से इस विषय में खुलकर बात करनी चाहिए, जो स्वास्थ्य की व्यक्तिगत परिस्थितियों का आकलन कर महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, और इस प्रक्रिया के संभावित जोखिमों एवं लाभों के बारे में बताते हैं।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Diksha Raghuwanshi

Related News