GMCH -32 में पेशैंट्स को बेची जा रही महंगी दवाएं

punjabkesari.in Thursday, Oct 05, 2017 - 09:04 AM (IST)

चंडीगढ़ (अर्चना): गवर्नमैंट मैडीकल कालेज एंड हॉस्पिटल सैक्टर-32 मरीजों को महंगी दवाएं बेच रहा है। वर्ष 2016-17 के दौैरान हॉस्पिटल ने 13,51,320 मरीजों को भारी भरकम कीमत पर दवाएं दी जबकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय पिछले कई सालों से हॉस्पिटल को निर्देश जारी कर रहा है कि सस्ते दाम पर दवाएं और सर्जिकल का सामान मुहैया करवाया जाए। सिर्फ इतना ही नहीं यह भी देखने में आया है कि हॉस्पिटल मरीजों को ओ.पी.डी. में वह जरूरी दवाएं और सामान भी नहीं प्रदान कर पाया है जिन पर मरीजों का अधिकार था। 

 

ओ.पी.डी. स्टॉक में सामान उपलब्ध न होने की वजह से मरीजों को अपनी पॉकेट से यह सामान खरीदना पड़ा। जिसकी वजह से उनकी ट्रीटमैंट के दाम भी सरकारी न रहकर प्राइवेट के सामान हो गए। हॉस्पिटल के स्टॉक में जरूरी सामान उपलब्ध न होने की वजह से गरीब पेशैंट्स को इलाज के लिए अनिवार्य दवाएं खरीदना पड़ी। यह खुलासा जी.एम.सी.एच.-32 में किए गए ऑडिट ने किया है। ऑडिट ने मरीजों को महंगे दाम पर बेची गई दवा और ओ.पी.डी. के स्टॉक से गायब रही अनिवार्य दवाओं पर हॉस्पिटल से जवाब मांगा है। 

 

ऑडिट ने यह भी आपत्ति जताई है कि मैडीकल कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा 21 सितम्बर 2016 को जारी नोटीफिकेशन एम.सी.आई.-211(2)/2016 (एथिक्स)/13118 में यह साफ तौर पर कहा गया था कि प्रत्येक डाक्टर मरीजों को जैनरिक नाम के साथ दवाएं प्रिसक्राइब करेगा। यह भी कहा गया था कि जेनेरिक नाम को कैपिटल लैटर में लिखा जाएगा। ऑडिट ने हॉस्पिटल से पूछा है कि रिकार्ड की जांच कहती है कि एम.सी.आई. के निर्देशों के बाद सिर्फ एक बार 7 अप्रैल 2017 को जैनरिक दवाओं की प्रिसक्रिपशन के बाबत सर्कुलर जारी किया गया परंतु उसके बाद हॉस्पिटल ने एक भी ऐसी इंस्पैक्शन नहीं की जिससे यह साबित हो सकता कि एम.सी.आई. के निर्देशों का पालन किया जा रहा है या नहीं।


 

अर्फोडेबल हैल्थ केयर प्रदान करना था उद्देश्य 
वर्ष 2010 में प्लानिंग कमीशन ऑफ इंडिया ने यूनिवर्सल हैल्थ कवरेज का गठन कर मरीजों के लिए अर्फोडेबल हैल्थ केयर प्रदान करने को फ्रेमवर्क तैयार करने के लिए कहा था। आल इंडिया इंस्टीटियूट ऑफ मैडीकल साइंस (एम्स)ने इसी वजह से हॉस्पिटल परिसर में 24/7 फार्मेसी स्टोर खोलकर मरीजों को भारी भरकम डिस्काऊंट पर दवाएं और सर्जिकल सामान को बेचना शुरू कर दिया है। दवा कंपनियां मरीजों को सस्ती सी दवा की गोली भी भारी दाम पर बेच रही हैं। दवा की प्रोमोशन के दाम भी कंपनियां मरीजों की जेब से वसूल रही हैं। दवा कंपनियों, स्टॉकिस्ट, रिटेलर, मैडीकल रिप्रैजैंटेटिव और मैडीकल प्रैक्टिशनर के नैक्सस की वजह से दवा के दाम बढ़ा दिए जाते हैं। सरकारी अस्पतालों में आने वाले अधिकतर मरीजों निम्न आर्थिक दर्जे से संबंधित होते हैं। 

 

यह कहती है रिपोर्ट 
रिपोर्ट कहती है कि जी.एम.सी.एच.-32 के रिकार्ड बता रहे हैं कि मैडीकल कालेज ने कैमिस्ट शॉप को इस समझौते के साथ लीज किया था कि ब्रांडेड दवाओं पर 15 प्रतिशत जबकि सर्जिकल सामान और जैनरिक दवाओं पर मरीजों को 30 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। इसकी एवज में कैमिस्ट शॉप्स से 13,50,000 रु से लेकर 36,67,399 रु का किराया वसूला जा रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं प्रबंधन ने सस्ते दाम पर जैनरिक मैडीसिन बेचने के लिए जनऔषधि के नाम पर एक शॉप तो किराए के बगैर ही किसी को दे दी। 

 

जांच के दौरान पाया गया कि ओ.पी.डी. के पेशैंट्स दवाएं खरीदने के लिए जनऔषधि की बजाए ब्रांडेड मैडीसिन स्टोर पर दवाएं खरीदते हैं और सिर्फ नाममात्र पेशैंट्स ही दवाएं खरीदने के लिए जनऔषधि और अमृत्त स्टोर जाते हैं। रिपोर्ट कहती है कि एम्स दिल्ली और पी.जी.आई. चंडीगढ़ में कैमिस्ट शॉप्स को जी.एम.सी.एच.-32 के मुकाबले कम किराए पर लीज किया हुआ है। 

 

रिपोर्ट कहती है कि हॉस्पिटल सरकार के लिए कमाई का स्रोत नहीं बल्कि पेशैंट्स को ट्रीटमैंट प्रदान करने के लिए बनाया गया है इसलिए हॉस्पिटल को चाहिए कि वह ज्यादा से ज्यादा कैमिस्ट शॉप्स खोले और मरीजों को दवाओं पर ज्यादा डिस्काऊंट प्रदान करे। ऑडिट रिपोर्ट में ओ.पी.डी. के बफर स्टॉक से गायब होने पर भी ऐतराज जताया गया है और एम.सी.आई. के जेनेरिक दवा प्रिसक्रिपशन को लेकर जारी निर्देशों के बाद प्रिसक्रिपशन चैक करने के लिए एक भी इंस्पैक्शन न किए जाने पर भी सवाल किया है। 


 

ऑडिट ने हॉस्पिटल से पूछे हैं ये सवाल 
1. कैमिस्ट शॉप्स से महंगा किराया क्यों वसूला जा रहा है? कैमिस्ट महंगे किराए की एवज में गरीब पेशैंट्स से दवाओं के नाम पर भारी भरकम कीमत वसूलेंगे। ऐसा देखा गया है कि हॉस्पिटल की कैमिस्ट शॉप्स आल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मैडीकल साइंस और पी.जी.आई. चंडीगढ़ के मुकाबले मरीजों को दवाओं पर कम छूट दे रही है।  
2. क्या हॉस्पिटल प्रबंधन ने चंडीगढ़ प्रशासन को ऐसा कोई प्रस्ताव सौंपा है जिसके दम पर कैमिस्ट शॉप्स से कम किराया वसूला जाएगा ताकि पेशैंट्स को ज्यादा डिस्काऊंट मांगा गया हो? 
ऑडिट रिपोर्ट का कहना है कि हॉस्पिटल का कहना है कि अगर एम्स मॉडल अपनाया जाता है जो पेशैंट्स को दवाओं पर 56 प्रतिशत छूट दे रहा है तो राजकीय कोष का नुक्सान हो सकता है। ऑडिट ने कहा कि हॉस्पिटल एक ऐसा संस्थान है जिसे न सिर्फ चंडीगढ़ बल्कि पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के मरीजों को इलाज की सेवाएं प्रदान करनी है वह सरकार का पैसा कमाने का स्रोत नहीं है। 


 


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