पंचकूला के अस्पताल में दफन हो गया आठ साल पुरानी मौतों का राज

Tuesday, Jun 13, 2017 - 07:21 AM (IST)

चंडीगढ़ (अर्चना): पंचकूला में संदिग्ध परिस्थिति में मरने वालों की मौत का कारण मोर्चरी में ही दफन हो कर रह गया। पंचकूला हॉस्पिटल ने पुलिस के कहने पर 35 शवों के विसरा, हार्ट, लंग्स, ब्रेन, लीवर, किडनी, सप्लीन और ब्लड सैंपल को पोस्टमार्टम के दौरान निकाला था। डाक्टर्स ने विसरा आदि को पुलिस के हवाले करना चाहा, लेकिन वह लेने नहीं आए। आठ साल तक करीब 35 विसरा के नमूने मोर्चरी में रखे-रखे ही खराब हो गए। इसके बाद भी हॉस्पिटल का फॉरैंसिक विभाग पंचकूला पुलिस को बार-बार विसरा लेकर सी.एफ.एस.एल. में जमा करवाने के लिए गुजारिश करता रहा। मोर्चरी से विसरा उठाने के लिए कई बार पुलिस विभाग को पत्र लिखा गया, लेकिन केसों के जांच अधिकारियों ने पत्रों को अनदेखा करते हुए अस्पताल की एक नहीं सुनी। करीब 10 विसरा को हालांकि पुलिस ने उठा भी लिया, लेकिन आठ साल के इंतजार के बाद आखिर पंचकूला हॉस्पिटल ने करीब 35 विसरा को आग की भेंट चढ़ा दिया।

 

सूत्रों की मानें तो विसरा को हॉस्पिटल कैंपस में ही जलाया गया और किसी की परमिशन भी नहीं ली गई। जबकि चंडीगढ़ पुलिस ने विसरा को महफूज रखने के लिए शहर के लगभग सारे थानों को फ्रिज दे रखे हैं। फोरैंसिक एक्सपट्र्स की मानें तो मौत का कारण जानने के लिए 7 दिनों के अंदर जांच करनी जरूरी होती है, क्योंकि उसके बाद लंग, लीवर, हार्ट, ब्रेन आदि अंग खराब हो जाते हैं और मौत की वजह नहीं पता चलती। पोस्टमार्टम के बाद डाक्टर्स से विसरा लेने के बाद पुलिस जांच अधिकारी ही विसरा को फोरैंसिक साइंस लैबोरेटरी तक ले जाता है। चंडीगढ़ पुलिस विसरा को लैब तक पहुंचाने में किसी तरह की कोताही नहीं बरतती और  विसरा को फ्रिज में रखने की नौबत नहीं आने देती।

 

51 वर्षीय अजय मडिय़ा की मौत 10 जून, 2016 को हुई थी। प्रेम सिंह के पुत्र अजय बेशक लंबे समय से बीमार थे, लेकिन पुलिस ने मौत को संदिग्ध मानते हुए विसरा लिए थे। विसरा जांच के बाद मौत की असल वजह सामने आ सकती थी, लेकिन अजय की मौत अब तक पहेली है।


16 जनवरी, 2017 को पंचकूला पुलिस को राम सिंह का शव मिला था। वह कहां से था, परिजन कौन थे, पुलिस के लिए रहस्य था। पोस्टमार्टम में साफ हो गया था कि दमे का शिकार था, लेकिन असल वजह जानने के लिए शरीर के अंग इत्यादि निकाले गए ताकि लैब में भेजे जा सकें।

 

42 वर्षीय सविता की मौत इसी साल मार्च में हुई थी। माना गया था कि हार्ट अटैक के बाद उसकी मौत हुई होगी, लेकिन असल कारण जानने के लिए सविता के हार्ट और अन्य ऑर्गन को निकाला गया ताकि विसरा को जांच के लिए भेजा जा सके परंतु विसरा को किसी लैब में भेजा नहीं जा सका।

 

बिहार के 35 वर्षीय मंगल का शव पंचकूला पुलिस को 10 दिसंबर, 2016 को मिला था। शव के पास से शराब की बदबू आ रही थी। मंगल की मौत संदिग्ध मानकर पोस्टमार्टम किया गया। उसके बाकायदा पेट की आंतडिय़ां, लीवर आदि को विसरा जांच के लिए निकाला गया परंतु पुलिस ने विसरा को जांच के लिए भेजने की कोशिश नहीं की।


जिसमें शक होता, उन्हें लेकर बरती जाती है कोताही
यही नहीं अभी भी पंचकूला अस्पताल में डेढ़ साल से करीब 15 विसरे लैब पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं। सूत्र कहते हैं कि हत्या साबित होने वाले केसेज के विसरा पुलिस नहीं छोड़ती, लेकिन जिसमें शक होता है, उनको लेकर कोताही बरती जाती है। जबकि ऐसे विसरा भी जांच के बाद बता सकते हैं कि मौत नशीले पदार्थ के सेवन की वजह से हुई या फिर किसी बीमारी की वजह से जिसका पहले किसी को अंदाजा नहीं था।

 

विसरा रिपोर्ट के बाद ही मौत की असल वजह आती है सामने: नशीला पदार्थ खाकर मरने वालों से लेकर हत्या के मामले तक पुलिस रजिस्टर करती है। चूंकि विसरा जांच के बाद मौत का असल कारण सामन आता है इसलिए जहर, हत्या के मामलों के केस दर्ज करने से बचने के लिए पुलिस विसरा जमा ही नहीं करवाती। जबकि परिजन मौत की असल वजह जानने के लिए लगातार पुलिस के चक्कर काटते रहते हैं। यही जवाब मिलता है कि रिपोर्ट के बाद ही कारण बता सकेंगे। जबकि पुलिस विसरा रिपोर्ट को जमा ही नहीं करवाती और गुमराह करती रहती है।


विसरा रिपोर्ट होती है केस में अहम सबूत
संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होने पर पोट्मार्टम के बाद जब डाक्टर को स्पष्ट तौर पर मौत का कारण नहीं पता चलता तो पुलिस विसरा को जांच के लिए लैब में भेजती है। रिपोर्ट ही बताती है कि मौत का कारण जहरीला पदार्थ खाना था या फिर किसी बीमारी की वजह से अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। जब विसरा रिपोर्ट नहीं पहुंचती तो संदिगध केस अदालत में मजबूत नहीं रहता और वह खत्म हो जाता है।


 

Advertising