शहर के सरकारी स्कूलों की स्मार्ट क्लास को लेकर शिक्षा विभाग नहीं गंभीर

Wednesday, Jul 10, 2019 - 10:00 AM (IST)

चंडीगढ़(वैभव): एक ओर जहां शहर को स्मार्ट बनाने के लिए जद्दोजहद की जा रही है, वहीं शहर के सरकारी स्कूल अभी तक स्मार्ट नहीं हुए हैं। इसके प्रति शिक्षा विभाग भी गंभीरता नहीं दिखा रहा है। बच्चों में शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए देश के सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में स्मार्ट क्लास शुरू करने का प्रावधान किया गया, लेकिन शहर में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिल रहा है। 

स्मार्ट क्लास को लेकर न तो शहर के स्कूल गंभीर और न ही प्रशासन। बता दें कि इस बार बेशक शहर के स्कूलों का रिजल्ट ठीक रहा हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। अगर इस सत्र के नतीजों को छोड़ दिया जाए तो सरकारी स्कूलों का हाल किसी से छिपा नहीं है। स्मार्ट क्लास छोटी क्लासेज से ही लगनी शुरू हो जाती है, जिससे बच्चों के कोर्स की पढ़ाई के साथ साथ उनके व्यक्तित्व विकास का पूरा इंतजाम होता है। स्मार्ट क्लास के तहत सरकारी स्कूलों को हाईटेक किया जाता है, शहर में इस दिशा की ओर कोई भी कदम नहीं उठाया गया है।

सैक्टर-53 में बना है एकमात्र स्मार्ट स्कूल 
शहर के प्राइवेट स्कूलों में स्मार्ट क्लासें लगाई जा रही हैं। इसका असर उनके रिजल्ट पर भी पड़ रहा है। छोटे बच्चों को शुरू से ही स्मार्ट क्लास में पढऩे का आगे जाकर फायदा होता है, यह बात शहर के प्राइवेट स्कूल साबित कर रहे हैं। गौरतलब है कि चंडीगढ़ शहर में एकमात्र स्मार्ट स्कूल सैक्टर-53 में बना है। यहां बच्चों को टीचर्स स्मार्ट तरीके से पढ़ा रही हैं, लेकिन एक स्कूल के स्मार्ट होने से शहर की शिक्षा प्रणाली ऊंची नहीं उठ सकती। इस ओर शिक्षा विभाग को जल्द कोई ठोस कदम उठाना पड़ेगा। 

टीचर्स ने किया स्मार्ट क्लास के लिए खुद को तैयार

शहर के प्राइवेट स्कूल मोती राम में टीचर्स ने स्मार्ट क्लास लगने से पहले स्वयं को इसके लिए तैयार किया। उन्होंने पहले स्मार्ट क्लास की पूरी ट्रैनिंग की, फिर क्लासरूम में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था। इसके अलावा अन्य प्राइवेट स्कूलों में भी टीचर्स ने पहले खुद को तैयार किया, उसके बाद क्लास को। स्मार्ट क्लास लगने से क्लास रूम का भी रूप बदल गया है, जहां पहले टीचर्स ब्लैकबोर्ड पर बच्चों को पढ़ाते थे, आज वहां पर प्रोजैक्टर के द्वारा बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। टीचर के हाथ में चॉक की जगह स्टाइलस डिवाइस और बच्चों के हाथ में पेन पैंसिल की जगह रिमोट कंट्रोल आ गए हैं। ऐसे में इसे विकासशील देश में शिक्षा की नई तस्वीर कहा जा सकता है। 

bhavita joshi

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