गेमिंग का एडिक्शन बढ़ा रहा युवाओं में डिप्रैशन, याद्दाश्त पर असर

punjabkesari.in Monday, Sep 16, 2019 - 12:22 PM (IST)

चंडीगढ़(पाल) : डिप्रैशन व स्ट्रैस के बाद इन दिनों साइकेट्रिक ओ.पी.डी. में गेमिंग एडक्शिन को लेकर मरीज आ रहे हैं। एडिक्शन इस कदर है कि ज्यादातर युवा इसका शिकार होने के बाद अपने परिवार से दूर तक हो जाते हैं। न खाने की परवाह की न ही पढऩे की। पी.जी.आई. में रविवार को साइकेट्रिक डिपार्टमैंट में दो दिवसीय सी.एम.ई. का आयोजन किया गया। इसमें देशभर से 200 से ज्यादा एक्सपर्ट्स हिस्सा लेने पहुंचे हैं। 

एम्स से आए सीनियर साइकेट्रिस्ट डा. रोहित वर्मा ने बताया कि अस्पतालों में इस तरह के मरीज पहले कम आया करते थे लेकिन पिछले कुछ साल से इनकी संख्या बढ़ रही है। इनमें ज्यादा संख्या युवाओं की है। एडिक्शन का असर इन मरीजों की याद्दाश्त पर असर पड़ रहा है। ऐसे में उनकी लाइफ स्टाइल में बदलाव से कई बीमारियां उन्हें अपना शिकार बना रही हैं। 

उन्होंने बताया कि इसमें भी दो तरह के डिस्ऑर्डर हैं। एक डिस्ऑर्डर में तो बच्चे और युवाओं का रुझान गेम्स की ओर चला जाता है। वे हर वक्त गेम्स की ही बात करते हैं। दूसरी ओर कुछ बच्चे इंटरनैट सर्फिंग में लगे रहते हैं। साइकेट्रिक साइंस इसे भी एडिक्शन मानता है। अगर युवाओं को यह सब नही मिलता तो वो धीरे-धीरे डिप्रैशन की ओर जाने लगते हैं। 

कम उम्र में हो रहा डिप्रैशन :
डॉ. वर्मा ने कहते हैं कि स्ट्रैस और डिप्रैशन के मरीजों की संख्या में 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो रही है। ओ.पी.डी. में डिप्रैशन के मरीजों की संख्या में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है।

डिप्रैशन भी दो तरह का होता है। कई बार जीवन में ऐसा कुछ हो जाता है जो व्यक्ति के अनुकूल नहीं होता तो व्यक्ति डिप्रैशन का शिकार होने लगता है। एक तो पता लग जाता है और उसका इलाज शुरू हो जाता है तो एक साल के भीतर वह ठीक होना शुरू हो जाता है। दूसरा डिप्रैशन ऐसा होता जो बार-बार होता है। ऐसे मरीज को 5 से 10 साल दवा दी जाती है। 

पी.जी.आई. में डिप्रैशन का इलाज हो रहा आसान :
डिप्रैशन(तनाव) में इलाज के दौरान मरीजों को कई तरह की दवाइयां दी जाती हैं लेकिन उन मरीजों में से भी कइयों से दवाइयों कोई फायदा नहीं होता है। ऐसे मरीजों के इलाज में पी.जी.आई. के साइकेट्रिक डिपार्टमैंट में नए तरह का ट्रीटमैंट काफी करगर साबित हो रहा है। 

पी.जी.आई. साइकेट्रिक विभाग के डा. शुभ मोहन कहते हैं कि ओ.पी.डी. में उपलब्ध इस ट्रीटमैंट का नाम रेपीटेटिव ट्रांसक्रेनियल मैगनेटिक स्टीमूलेशन (आर.टी.एम.एस.) है। डिप्रैशन के मरीजों के लिए इस तरह का इलाज मुहैया करवा रहा पी.जी.आई. उत्तर भारत का पहला अस्पताल है जहां यह सुविधा मरीजों को मिल रही है। 

आर.टी.एम.एस. ब्रेन स्टीमूलेशन टैक्नीक है जिसमें खोपड़ी पर इंस्युलेटिड कॉयल रख कर मैगनेटिक फील्ड जैनरेट(पैदा)की जाती है। यह मैगनेटिक फील्ड ठीक ताकत व प्रकार में ठीक वैसी होगी जो मेगनेटिक रेसोनेंस इमेजिंग यानी एम.आर.आई. में प्रयोग होती हैं। मैगनेटिक पल्स दिमाग में एकहल्का सा इलैक्ट्रिक करंट पैदा करती है जो न्यूरल सर्किट (दिमाग के सेलों के सर्किट)को सक्रिय करती है। इस ट्रीटमैंट में किसी तरह की दवा, इंजैक्शन लगाने की जरूरत नहीं लेकिन कुछ सावधानियां व एहतियात रखना जरूरी है। 


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Priyanka rana

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