चंडीगढ़ का रेल पार्सल विभाग सह रहा घाटा, गैर-सरकारी कर्मचारी करते हैं कोरियर कंपनियों से सौदा

punjabkesari.in Monday, Jan 08, 2018 - 09:31 AM (IST)

चंडीगढ़ (लल्लन): पार्सल विभाग के कर्मचारियों तथा कोरियर कंपनियों की सैटिंग के चलते रेलवे विभाग को हर माह लाखों रुपए का घाटा हो रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कोरियर कंपनियों द्वारा बुक करवाए गए सामान व बंडल का वजन पार्सल विभाग के कर्मचारी नहीं करते। पार्सल को कोरियर कंपनी द्वारा बताए गए वजन के हिसाब से ही बुक कर दिया जाता है। आपसी मिलीभगत के कारण पार्सल का वजन बिलटी में कम लिखा जाता है और उससे अधिक वजन के रुपए अधिकारियों व गैर-सरकारी कर्मचारियों की जेब में जाते हैं। यही नहीं कई बार तो पार्सल ऑफिस तक भी नहीं जाता है। उसको प्लेटफार्म पर उतारकर सीधे बिलटी कटवा ली जाती है। ऐसे में इन सभी कामों के पीछे सिर्फ पार्सल अधिकारी व गैर-सरकारी कर्मचारी के सहयोग से यह काम हो रहा है। 


कांटे पर वजन जरूरी
पार्सल विभाग में हर रोज लाखों का सामान बुक होता है लेकिन नियम की बात की जाए तो कोरियर कंपनी की ओर से चाहे किसी भी कांटे पर वजन किया गया हो लेकिन बुकिंग के समय रेलवे के कांटे पर वजन करना जरूरी होता है। लेकिन रेलवे स्टेशन के पार्सल में कभी भी कोरियर कंपनियों के पार्सल वजन नहीं किए जाते हैं। कोरियर कंपनी की ओर से वजन की जो स्लिप दिखाई जाती है। उसी स्लिप के आधार पर बुकिंग कर दी जाती है।  पार्सल विभाग में डी ग्रेट के कर्मचारियों का अभाव होने के कारण पार्सल विभाग में 6 गैर सरकारी कर्मचारियों को लगाया गया है। जो सामान बुक व ट्रेनों में लोड करते हैं लेकिन यह सभी कर्मचारी अपना कार्य सही ढंग से नहीं करते हैं। इन गैर-सरकारी कर्मचारी तथा कोरियर कंपनी के संचालक  मिलकर पार्सल का वजन तथा मैजरमैंट  नही करते हैं। इसके बदले में यह कंपनी से रुपए लेकर पार्सल के उच्चाधिकारियों को देते हैं। यदि रेलवे की तरफ से इन कर्मचारियों पर नकेल लगाई जाए तो पार्सल में सुधार हो सकता है। 


संदेह में विभाग
कई बार पार्सल विभाग की शिकायत रेलवे बोर्ड दिल्ली में की जा चुकी है। जिसके बाद रेलवे विजीलैंस की ओर से चंडीगढ़ पार्सल विभाग में छापा भी मारा गया था। जिस दौरान तलाशी में पार्सल विभाग के तीन कर्मचारियों की जेबों में अधिक रुपए पाए गए थे। जिसके बाद इंक्वायरी मार्क की गई थी लेकिन अभी तक यह इंक्ववायरी कहा तक पहुंची इस संबंध में भी कोई अधिकारी बोलने को तैयार नही हैं। 


सामान का मेजरमैंट भी नहीं नापते कर्मचारी
पार्सल के नियम की बात की जाए तो बुकिंग के बाद हर बंडल व बॉक्स का मैजरमैंट होना जरूरी होता है, क्योंकि यदि सामान व पार्सल की लंबाई 1 फुट से अधिक होती हैं तो उसके किराए में बढ़ौतरी की जाती है लेकिन कोरियर कंपनियों की ओर से बड़े बॉक्स व बोरे में सामान बुक किया जाता है लेकिन पार्सल विभाग के कर्मचारियों की सहमति से कभी भी विभाग की ओर से मैजरमैंट नहीं किया जाता है। ऐसे में मैजरमैंट का पैसा पार्सल के अधिकारियों व गैर सरकारी कर्मचारियों की जेब में जाता है। इस तरफ ना तो डायरैक्टर का ध्यान जाता है और न ही अन्य अधिकारियों का। 
 


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