सिटको को 13.50 करोड़ का चूना, प्रशासन नहीं दे रहा रकम

punjabkesari.in Saturday, Nov 24, 2018 - 08:22 AM (IST)

चंडीगढ़(साजन): सिटको घाटे में डूबती जा रही है लेकिन इसे बचाने का कोई गंभीर प्रयास प्रशासन नहीं कर रहा। सिटको को कुछ सालों में करीब 13.50 करोड़ का चूना लग गया। यह रकम वसूलने के लिए इसकी टॉप मैनेजमैंट में कोई इच्छा शक्ति नहीं दिख रही। कैग (सैंट्रल ऑडिटर जनरल) ने इस रकम की वसूली को लेकर सिटको मैनेजमैंट पर तलख टिप्पणी की है लेकिन मैनेजमैंट के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। प्रशासन को सिटको एक चिट्ठी तक लिखने की हिम्मत नहीं कर पाई। 

हाल ही में एडवाइजर परिमल राय ने कई विभागों पर लगे ऑडिट ऑब्जेक्शनों को लेकर इन विभागों के उच्चाधिकारियों के साथ मीटिंग की थी और आगाह किया था कि यह ऑब्जैक्शंस मुश्किलें पैदा कर सकते हैं। लिहाजा इनकी बाबत तुरंत ऑडिट विभाग को क्लेरीफिकेशन दी जाए और इन्हें ओवररूल कराया जाए ताकि प्रशासन की ऑडिट के मामले में किरकिरी न हो। सिटको के उच्चाधिकारी लगातार मुलाजिमों को आगाह कर रहे हैं कि कार्पोरेशन की आर्थिक हालत खराब है। कर्मचारियों की छंटनी भी हो सकती है लेकिन इस बड़ी राशि को वसूलने की हिम्मत नहीं दिखा रहे।

 यू.टी. सेक्रैट्रिएट की कैंटीन चलाने का जिम्मा 1983 में सिटको को दे दिया गया था। 1995 में तय हुआ कि कैंटीन चलाने के लिए सिटको को 50 हजार रुपए प्रति माह की सबसिडी दी जाएगी जो प्रशासन की ओर से आज तक नहीं मिली। ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2004 से लेकर 2018 तक सिटको इस कैंटीन पर 11.71  करोड़ कर चुका है लेकिन चंडीगढ़ प्रशासन से यह पैसा आज तक रिकवर नहीं किया गया। ये लगातार बढ़ता जा रहा है।

दिल्ली का यू.टी. गेस्ट हाऊस भी सिटको के हवाले
सिटको दिल्ली में स्थित यू.टी. गेस्ट हाऊस का भी संचालन करता है। यहां होने वाले एडमिनिस्ट्रेटिव एक्सपैंस जैसे ट्रेवल, आफिस एक्सपैंस, स्टाफ की सैलरी व व्हीकल्स का चालन व मैंटीनेंस भी कार्पोरेशन के ही हवाले है। वर्ष 2011 से लेकर 2018 तक सिटको ने इस पर 1.45 करोड़ खर्च कर दिए। इतना ही नहीं सिटको ने 2012 में 8.78 लाख की होंडा सिटी और वर्ष 2017 में 17.83 लाख की टोयोटा कोरोला गाड़ी भी यहां आने जाने वाले यू.टी. के अफसरों के लिए खरीदी। यह तमाम खर्चा सिटको की ओर से किया गया हालांकि यह उसकी कमर्शियल एक्टीविटी में शामिल नहीं था। 

प्रशासन नहीं है गंभीर
इंडियन ऑडिट एंड अकाऊंट्स डिपार्टमैंट ने सिटको के तमाम खर्चे और इनकम का ऑडिट किया जिसमें ये अनियमितताएं सामने आई। ऑडिट की ओर से ऑब्जेक्शंस लगाए गए कि इतने बड़े बड़े खर्चे करने का जिम्मा सिटको का नहीं था लेकिन फिर भी सिटको से प्रशासन यह खर्चे करा रहा है। 2014 में इतनी भारी भरकम राशि खर्च करने को लेकर ऑडिट विभाग की ओर से ऐतराज उठाए गए और प्रशासन से यह राशि वसूलने को कहा गया लेकिन बावजूद कोई नतीजे नहीं निकले। प्रशासन ने इस ऑब्जेक्शंस का यह जवाब देकर इतिश्री कर ली कि यह खर्चा नॉन कामर्शियल बेसिस पर सोशल फंक्शन था। बताया जा रहा है कि मई 2016 में इसको लेकर एक एग्रीमैंट भी तैयार किया गया लेकिन न तो इस पर किसी के दस्तखत थे और न ही इसे अब तक लागू किया गया। सिटको मैनेजमैंट ने इस सारे ऐतराजों के बाद महज तीन चार पत्र लिखे लेकिन वसूली के लिए कभी गंभीर प्रयास नहीं किए। सिटको को अब तक 13.43 करोड़ का घाटा हो चुका है। ऑडिट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि न तो सिटको और न ही चंडीगढ़ प्रशासन ने इतने सालों में जनरल फाइनैंशियल रूल्स का पालन किया। आर.टी.आई. एक्टीविस्ट आर.के. गर्ग ने कहा है कि आर.टी.आई. के तहत मांगी गई जानकारियों में जो इस तरह की धांधलियां सामने आ रही हैं, उन्हें प्रशासन तुरंत दुरुस्त करे। 


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bhavita joshi

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