बद से बदतर जिन्दगी जीने को मजबूर हैं इस स्नेहालय के बच्चे

punjabkesari.in Sunday, Feb 12, 2017 - 08:49 AM (IST)

चंडीगढ़ (रमेश): बेसहारा और अनाथ बच्चों को आसरा देने के लिए जनरल रोड्रिक्स का सपना था स्नेहालय लेकिन आज राज्यपाल के सपनों का स्नेहालय मासूम बच्चों के लिए कैदखाना बन कर रह गया है। स्नेहालय की आबोहवा और चारदीवारी की कैद ने इन मासूमों के मानसिक व सामाजिक विकास को रोक दिया है। 2 माह पहले कमीशन फॉर प्रोटैक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने बताया था कि स्नेहालय में बच्चों के नहाने के लिए साबुन नहीं है। बदन सोखने को तौलिया नहीं है।

 

कई दिन तक नहीं नहाने के कारण बच्चों के सिर में जुएं पड़ गई थीं, जिसके बाद जुएं मारने वाली दवाई मंगवाई गई जोकि इतनी महंगी थी कि इन बच्चों के लिए उतनी राशि में 4 माह का साबुन आ सकता था। लेकिन अफसोस कि स्थिति आज भी नहीं बदली। बच्चे खुले ढक्कन वाली टंकी का पानी पीने को मजबूर हैं क्योंकि वाटर कूलर खराब है और फिल्टर काम नहीं करता। एक तरफ सरकार की योजना के तहत गरीब बच्चों को हर वर्ष सर्दियों में गर्म वर्दी दे जाती है जिसमें स्वैटर, स्कार्फ व गर्म जुराबें शामिल हैं लेकिन स्नेहालय के बच्चों को गर्म कपड़े तो क्या, इस वर्ष जुराबें तक नसीब नहीं हुईं जबकि सर्दी खत्म होने को हैं।

 

रुक जाएगा मानसिक विकास: मनोचिकित्सक 
जाने-माने मनोचिकित्सक और काऊंसलर डा. प्रमोद कुमार के अनुसार इस तरह के बच्चे कुछ तो अनाथ हो जाने के बाद तनाव में आ जाते हैं और अगर उन्हें चारदीवारी में समाज से अलग-थलग रखा जाए तो वे डिप्रैशन में आ सकते हैं। अगर सामाजिक धारा से या आम बच्चों से वे नहीं मिलते तो उनका मानसिक विकास भी रुक जाएगा। उन्होंने बताया कि इस प्रकार के बच्चों को अलग सैगमैंट में रखा गया है। 

 

इन्हें इसलिए अलग रखा जाता है कि उन्हें कोई अब्यूज न करे लेकिन चारदीवारी में बंद करना उसका समाधान नहीं। डा. प्रमोद ने सुझाव दिया कि स्नेहालय में रहने वाले बच्चों की रैगुलर मैंटल हैल्थ असैसमैंट होनी चाहिए। इसके आधार पर जरूरत के अनुसार काऊंसलिंग होनी बहुत जरूरी है। यह कदम अतिशीघ्र उठाना चाहिए वरना बच्चे मानसिक संतुलन तक खो सकते हैं। उन्हें बड़े होकर या यहां से बाहर जाकर समाज का हिस्सा बनाने में कठिनाई महसूस होगी। 

 

स्नेहालय ‘ओपन टू सिविल सोसायटी’: डॉ. चवन 
जी.एम.सी.एच.-32 के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख व दिव्यांग बच्चों के संस्थान के प्रमुख डॉ. बी.एस. चवन का कहना है कि स्नेहालय ओपन टू सिविल सोसायटी है। उन्हें नहीं मालूम कि ये नियम किसने बनाए हैं कि बच्चों को समाज से अलग रखा जाए। अगर ऐसा है तो नियमों में बदलाव होना चाहिए। चारदीवारी के भीतर बच्चों का शारीरिक और यौन शोषण अधिक होता है जबकि चारदीवारी के बाहर वह अब्यूज नहीं होते। 

 

केयर टेकर, सीनियर्स, स्टाफ, पारिवारिक लोग ही बच्चों को अब्यूज करते हैं, बाहरी लोग नहीं। उनका भी सुझाव था कि सिस्टम में परिवर्तन कर ऐसे नियम बनाये जाने की जरूरत है जिसमें बच्चे सिविल सोसायटी के संपर्क में रहे चाहे। इसके लिए सप्ताह के कुछ दिन फिक्स कर दिए जाएं। उन्होंने बताया की शहर में सैंकड़ों परिवार हैं, जो इन बच्चों को अडॉप्ट करने को तत्पर हैं, जिस पर विचार किया जाना चाहिए। अगर बच्चों को चारदीवारी में रखा जाएगा तो वे मानसिक रूप से पिछड़ जाएंगे। 

 

उम्र के हिसाब से रखने का था सुझाव चंडीगढ़ कमीशन फॉर प्रोटैक्शन 
ऑफ राइट्स ने पाया था कि एक ही कमरे में रह रही लड़कियों और लड़कों की उम्र में काफी फासला है। मसलन 8 वर्षीय बच्चे के साथ 15-16 वर्षीय किशोर रह रहा है। इससे छोटे बच्चे के यौन शोषण की संभावना है इसलिए सुझाव था कि हमउम्र बच्चों को ही साथ रखा जाए। इस सुझाव पर भी अमल नहीं किया गया, जिसका परिणाम था मासूमों से कुकर्म के दो केस दर्ज होना। लेकिन अभी तक संबंधित विभाग की नींद नहीं टूटी है। ‘पंजाब केसरी’ द्वारा कुकर्म का पर्दाफाश करने के बाद लड़कियों को यहां से वापस उनके आशियाने में भेज दिया गया है। 

 

क्या 200 बच्चे कैद में हैं ?
स्नेहालय में रह रहे बच्चों को मिलने की किसी को इजाजत नहीं है न ही कोई परिवार उन्हें अपने साथ खाना खिला सकता है न ही महीने से पहले परिजन अपने बच्चों से मिल सकते हैं। बच्चों को स्नेहालय से बाहर निकल खुले में सांस लेने या मार्कीट जाने तक की परमिशन नहीं है। अगर कोई दान देना चाहे या कपड़े बांटना चाहे तो उसे बच्चों से मिलने की आज्ञा नहीं दी जाती। हां, उनके दिए सामान की पर्ची जरूर दे दी जाती है लेकिन यह सुनिश्चित नहीं कि वह सामान बच्चों तक पहुंचता है या नहीं। एन.जी.ओ. की संचालक ममता बहल ने सवाल उठाया कि आखिर स्नेहालय में ऐसा क्यों है? 

 

क्या वहां रह रहे बच्चे अपराधी हैं या उन्हें वहां बंदी बनाया गया है? जब ब्लैड संस्थान सैक्टर-26 में उक्त कोई बंदिश नहीं है तो यहां ऐसी पाबंदियां क्यों? उन्होंने कहा कि उक्त व्यवस्था से लगता है कि प्रशासन भीतर की खामियां छिपाना चाहता है। ममता ने कहा कि ऐसे हालात तभी ठीक होंगे, जब यहां का प्रबंधन के लिए नेत्रहीन संस्थान की तरह एक कमेटी बनाई जाए। समाजसेवी राजेश गोयल का सुझाव था कि चंडीगढ़ और आसपास कई ऐसे परिवार हैं, जो सेवाभाव रखते हैं जिन्हें एक-एक बच्चा अडॉप्ट करवाया जा सकता है। वे बच्चे के लालन-पालन का खर्च दे सकते हैं। उन्होंने खुद भी उसमें सहयोग की बात कही है। 

 

कई दिन तक नहीं नहा पाते बच्चे  
सर्दी में बच्चों को नहाने के लिए गर्म पानी तक नसीब नहीं हो रहा क्योंकि अधिकांश गीजर काम नहीं करते। सूत्रों के अनुसार ठंडे पानी के कारण बच्चे नहाने से कतराते हैं और हफ्ते भर तक नहाते ही नहीं। 

 

खाने को राशन नहीं था 
कमीशन ने पाया था कि स्नेहालय में पल रहे बच्चो के खाने के लिए पर्याप्त राशन ही किचन में नहीं था। खाने के नाम पर बस पेट भरा जा रहा था जिसके बाद किचन में सुधार और राशन की समय पर आपूर्ति का सुझाव दिया गया था।


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