लाखों के फंड मिलने के बाद भी ये हैं बेसहारा, भीख मांगने पर मजबूर

Saturday, Oct 01, 2016 - 09:27 AM (IST)

चंडीगढ़, (रश्मि): जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  दिव्यांगों को  लेकर समय-समय पर नई-नई योजनाएं शुरू करने में लगे हुए हैं। वहीं, चंडीगढ़ के सैक्टर-21 स्थित चेशायर होम में रहने वाले दिव्यांगों को किसी प्रकार की कोई भी सुविधा नहीं मिल रही है। उल्लेखनीय है कि चेशायर होम एक इंटरनैशनल एन.जी.ओ., जिसकी  दुनियाभर में शाखाएं बनी हुई हैं। प्राप्त जानकारी अनुसार चेशायर होम जिस बिल्डिंग में चल रहा है, वह चंडीगढ़ प्रशासन की है, जिसे प्रशासन द्वारा समाज कलयाण विभाग को सौंपा गया था और फिर समाज कल्याण विभाग द्वारा इसे चेशायर एन.जी.ओ. को दिव्यांगों की देखभाल के लिए प्रदान कर दिया गया था। इससे पहले चेशायर होम सैक्टर-15 स्थित  इंटरनैशनल होस्टल की बेसमैंट में होता था। 

बिजली बोर्ड से मिल रही हैं कनैक्शन काटने की वार्निंग :
चेशायर होम में रहने वाले वीर सिंह ने बताया कि पिछले चार-पांच महीने से बिजली का बिल नहीं भरा गया है, जिसके चलते बिजली बोर्ड के कर्मचार आकर उन्हें बिल न भरने पर कनैक्शन काटने की वार्निंग देकर गए हैं। वीर सिंह ने बताया कि पिछले कुछ महीनों का बिल लगभग 18 हजार के करीब है, जिसे भरना हमारे लिए संभव नहीं है।

इंटरनैशनल खिलाड़ी अब एक वक्त की रोटी को मोहताज :
इंटरनैशनल लेवल पर खेल चुके वीर सिंह संधू की हालत आज यह है कि आज वह एक वक्त की रोटी के लिए भी  मोहताज हैं। वीर सिंह ने बताया कि पिछले कुछ महीनों से उनकी हालत ऐसी बनी हुई है कि उन्हें दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं हो रही हैं। पिछले दिनों हाल यह था कि वे पानीपत चैरिटी जाकर पेट भरने के लिए राशन लेकर आए। वीर सिंह ने अपनी व्हील चेयर क्रिकेट टीम भी बनाई हुई है, जिसके वे खुद कैप्टन हैं। इतना ही नहीं, इनमें से एक दिव्यांग जिसका नाम पूजा है, वह भी अब भीख मांगने को मजबूर है। 

प्रशासन ने रैडक्रॉस सोसायटी के हवाले की बिल्डिंग :
रैडक्रॉस सोसायटी से प्राप्त जानकारी अनुसार प्रशासन के सामने सारा मामला आने के बाद प्रशासन ने इस बिल्डिंग को रैडक्रॉस के हवाले कर दिया है। इसे रैडक्रॉस इसे मंदबुद्धि बच्चों की देखरेख के लिए प्रयोग में लाएगा लेकिन इसे लेकर चेशायर होम में रहने वाले दिव्यांग अपने आपका असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं रैडक्रॉस द्वारा उन्हें इस जगह से निकाल न दिया जाए। दिव्यांगों की माने तो उन्हें नहीं मालूम कि वो प्रशासन के इस फैसले पर खुश हों या दुखी, क्योंकि इन्हें नहीं मालूम कि उन्हें वहां रखा जाएगा या नहीं।

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