चंडीगढ़ ने जीते 14 गोल्ड 19 रजत और 29 कांस्य पदक

Friday, May 24, 2019 - 11:32 AM (IST)

चंडीगढ़(लल्लन) : शिक्षा विभाग की ओर से स्कूल नैशनल में टीम भेजने व कैंप के लिए तकरीबन करोड़ों रुपए खर्च करके सिर्फ 62 पदक ही हासिल कर सके हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि शहर में सभी सुविधाएं होने के बाद भी खेल के क्षेत्र में शहर काफी पिछड़ा हुआ है। 

स्कूल नैशनल गेम्स में पदक तालिका की बात की जाए तो चंडीगढ़ का नाम तकरीबन 14वें स्थान पर है। इसके मुकाबले हमारे पड़ोसी राज्य हरियाणा व पंजाब इससे अधिक पदक हासिल करते हैं। इसके साथ ही हॉकी में शहर के खिलाड़ी पदक जीतने से मरहम रहे हैं। हॉकी में शहर से अंडर-14,17 व 19 में लड़कों व लड़कियों की टीमें जाती हैं, लेकिन तीन वर्गीय की टीम पदक ही नहीं सेमीफाइनल में भी नहीं पहुंच सकी है। 

इसका मुख्य कारण यह कई स्कूलों में बच्चों को खेलने के लिए समय नहीं दिया जाता। इसके साथ नैशनल में टीम के साथ जो कोच व मैनेजर भेजे जाते हैं। वह स्पोर्ट्स से संबंधित नहीं होते हैं। ऐसे में मैदान पर खिलाडिय़ों को उत्साहित करने में भी अध्यापक असफल रहते हैं। शहर के कई स्कूलों में स्पोर्ट्स टीचर का भी अभाव हैं। ऐसे में आप शहर के नन्हें व युवा खिलाडिय़ों से पदक की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। 

तीन वर्गों की टीम सिर्फ 62 पदक जीत सकी :
शिक्षा विभाग की ओर से स्कूल नैशनल गेम्स में कई टीमों को भेजा जाता है। विभाग की ओर से साल 2018-19 में भेजी गई नैशनल टीमों ने तीन वर्गों में मिलकर कुल 62 पदक हासिल किए हैं, जिसमें 14 स्वर्ण,19 रजत तथा 29 कांस्य पदक हासिल किए हैं। इन पदकों की सूची पर ध्यान दिया जाए तो व्यक्तिगत मुकाबले में चंडीगढ़ के खिलाडिय़ों ने अधिक पदक हासिल किया है। 

जैसे कि फेसिंग, बॉक्सिंग, जूडो, ताइक्वांडो, आर्चरी, कुश्ती तथा जिम्नास्टिक में सबसे अधिक पदक हासिल किए हैं। इसके विपरीत टीम इवैंट में खिलाडिय़ों ने बेहतरीन प्रदर्शन नहीं किया है। जानकारी के अनुसार बास्केटबॉल खेल में नैशनल में शहर के खिलाड़ी काफी पीछे हैं। यही नहीं हॉकी के तीन वर्गों में से किसी में भी टीम पदक जीतने में सफल नहीं हुई हैं। 

180 टीमें नैशनल में लेती हैं भाग :
विभाग की ओर से तकरीबन स्कूल नैशनल में 60 खेलों में तीनों वर्गों (लड़कों व लड़कियों) की टीमें भाग लेती हैं, जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि नैशनल में 180 टीमें भाग लेती हैं। 

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार विभाग की ओर से एक टीम को नैशनल भेजने तक तकरीबन 70 हजार रुपए खर्च आते हैं। इसमें जब से खिलाडिय़ों का चयन किया जाता है। चयन में चयनित खिलाडिय़ों का 21 दिनों का कैंप लगाया जाता है। इसमें खिलाडिय़ों कैंप के दौरान रिफ्रैशमैंट दी जाती है। इसके साथ ही मैडीकल के ऊपर भी विभाग की ओर से खर्चे किए जाते हैं। 

ग्रास रूट पर नहीं दिया जाता ध्यान :
खिलाडिय़ों को अभ्यास करने के लिए विभाग की तरफ से जीरो पीरियड गेम्स के लिए घोषित किया गया है। लेकिन अधिकतर स्कूलों में गेम्स पीरियड लगाया ही नहीं जाता। ऐसे में खिलाडिय़ों को अभ्यास करने का समय ही नहीं मिलता है। 

इसके साथ हॉकी में भी स्कूल स्तर पर मैदान उपलब्ध नहीं हैं। क्योंकि स्कूल नैशनल में हॉकी के मैच अधिकतर एस्ट्रो टर्फ पर ही खेले जाते हैं, लेकिन शहर में किसी भी स्कूल में एस्ट्रो टर्फ हॉकी का मैदान नहीं हैं। हालांकि विभाग की ओर से शहर के 2 स्कूलों में एस्ट्रो ट्रर्फ का मैदान बनाने का प्रोपोजल पास किया गया था, लेकिन यह प्रोजैक्ट सिरे नहीं चढ़ सका। 

ढंग से टीम का चयन नहीं :
खिलाडिय़ों के पदक अधिक नहीं जीतने का मुख्य कारण यह है कि टीम में सही खिलाडिय़ों का चयन नहीं किया जाता है। सिर्फ सिफारिशों के कारण टीम में खिलाडिय़ों का चयन किया जाता है। वह नैशनल में फेल हो जाते है। टीमों के चयन को लेकर परिजनों का हंगामा होता है कि चयन प्रक्रिया गलत हो रही है। 

Priyanka rana

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