बौने रह गए हैं चंडीगढ़ के नौनिहाल

Tuesday, Sep 26, 2017 - 07:27 AM (IST)

चंडीगढ़ (अर्चना): चंडीगढ़ के बच्चे बौने रह गए हैं। पांच साल तक की उम्र के 28.7 प्रतिशत बच्चों का कद उम्र के अनुपात में छोटा मिला है। नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे पहली दफा चंडीगढ़ के बच्चों के पोषण व कुपोषण को देखने के लिए किया गया है और रिपोर्ट कहती है कि चंडीगढ़ के बच्चे न सिर्फ कद के छोटे मिले हैं बल्कि ऐसे बच्चे भी सामने आए हैं जिनका कद तो उम्र के हिसाब से ठीक है लेकिन उनके शरीर का वजन उनके कद से मेल नहीं खा रहा है। कम वजन वाले बच्चों की संख्या भी चंडीगढ़ में कम नहीं मिली है। सर्वे कहता है कि चंडीगढ़ के 14.8 प्रतिशत बच्चों के शरीर का वजन उनके कद के अनुपात में कम है। 

 

10.9 प्रतिशत बच्चों का वजन कद के हिसाब से थोड़ा कम मिला है जबकि 3.9 प्रतिशत बच्चों का वजन कद के हिसाब से बहुत ज्यादा कम है। 24.5 प्रतिशत ऐसे बच्चे सामने आए हैं जो कुपोषण की वजह से कमजोर और कम वजन के रह गए हैं। पैडीट्रिक एक्सपट्र्स का कहना है कि बच्चों में बौनापन, कमजोरी और खून की कमी की एक बड़ी वजह कुपोषण है। डाक्टर्स का कहना है कि बच्चों में बौनेपन की वजह बच्चों के कुपोषण के साथ साथ डायरिया से ग्रस्त रहना भी होता है। बच्चों में बौनेपन के लिए डायरिया 16 प्रतिशत जिम्मेदार होता है। बच्चे का माहौल जिसमें वह रह रहा है वह साफ-सुथरा होना भी जरूरी है। 

 

पंजाब मेंचंडीगढ़ से कम और हरियाणा में ज्यादा बौने हैं बच्चे 
मिनिस्ट्री ऑफ हैल्थ एंड फैमिली वेलफेयर ने इंटरनैशनल इंस्टीच्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंस, मुंबई को फैमिली हैल्थ सर्वे के लिए नोडल एजैंसी बनाया था। बच्चों की हैल्थ आंकने के लिए एजैंसी ने सोसाइटी फॉर प्रोमोशन ऑफ यूथ एंड मासेस द्वारा 751 घरों में जाकर सर्वे किया गया। सर्वे के दौरान 746 महिलाओं और 120 पुरुषों से सवाल जवाब किए गए। चंडीगढ़ के बच्चों में जहां बौनापन 28.7 प्रतिशत पाया गया है वहीं हरियाणा के 34 प्रतिशत बच्चों में बौनापन मिला है। हरियाणा में वर्ष 2005 में भी यह सर्वे किया गया था तब के मुकाबले इस दफा हरियाणा के बच्चों के कद में सुधार देखा गया है। रिपोर्ट कहती है कि तत्कालीन समय में 45.7 प्रतिशत बच्चों के कद में छोटापन मिला था जबकि उधर पंजाब के बच्चों में तत्कालीन समय में 36.7 प्रतिशत बौनेपन की प्रोब्लम सामने आई थी और मौजूदा सर्वे कहता है कि पंजाब के अब सिर्फ 25.7 प्रतिशत बच्चों में बौनापन रह गया है। 

 

हरियाणा के बच्चों के वजन में भी सुधार देखा गया है। पहले यहां के 39.6 प्रतिशत बच्चे कुपोषण से ग्रस्त थे जबकि अब उनकी संख्या सिर्फ 29.4 प्रतिशत रह गई है। पंजाब में पहले कुपोषण ग्रस्त बच्चों का आंकड़ा 24.9 प्रतिशत था और अब यह आंकड़ा 21.6 प्रतिशत पर पहुंच गया है। पी.जी.आई. के एंडोक्रायनोलॉजी विभाग के एक्सपर्ट डॉ. संजय बडाडा का कहना है कि आमतौर पर बौनापन उन बच्चों में ज्यादा होता है जिन्हें अन्न और दूध से एलर्जी होती है। अगर किशोर बच्चे जिन्हें एलर्जी नहीं है और छोटे कद के रह गए हैं तो यकीनन उनमें प्रोटीन की कमी होती है। बच्चे जो पांच साल से कम उम्र में बौने मिले हैं उनमें पोषक पदार्थों की कमी होगी।  

 

चंडीगढ़ के  बच्चे दो तरह की प्रोब्लम से ग्रस्त हैं। सर्वे रिपोर्ट कहती है कि चंडीगढ़ के बच्चे बौने रह रहे हैं और शहर में किए गए अन्य अध्ययनों की मानें तो चंडीगढ़ के शहरों में रहने वाले बच्चों में मोटापा और थुलथुलापन आ रहा है। मोटे बच्चों को भी कमजोर बच्चों की तरह बीमार ही माना जाता है। दोनों बच्चों में पोषण की कमी होती है। मोटापन फैटी चीजें खाने. बैठे रहने व पोषक पदार्थों के कम सेवन की वजह से आता है और कमजोरी भी पोषक पदार्थों के अभाव में दर्ज किया जाता है। चंडीगढ़ में दो किस्म के अभियान चलाने की जरूरत है ताकि भावी पीढ़ी को बीमारियों से दूर रखा जा सके। मोटे और कमजोर बच्चों में एक चीज सामान्य है कि दोनों में माइक्रोन्यूट्रियएंट और आयरन की कमी है। पी.जी.आई. के अध्ययन में भी आंगनवाड़ी केंद्रों में रहने वाले बच्चों में कुपोषण देखा गया है। प्रो.भवनीत भारती, पैडेट्रिएटिक          एक्सपर्ट पी.जी.आई.  


 

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