चंडीगढ़ के कर्मी ने राष्ट्रपति को पत्र लिख की यह मांग...

punjabkesari.in Friday, Jun 23, 2017 - 10:10 AM (IST)

चंडीगढ़(रमेश) : चंडीगढ़ के एक सरकारी कर्मी ने राष्ट्रपति और चीफ इलैक्शन कमीशन को पत्र लिखकर मांग की है कि जब तक उसकी पैंडिंग पटीशन की जजमैंट नहीं आ जाती, तब तक राष्ट्रपति चुनावों पर रोक लगाई जाए। उक्त व्यक्ति ने वर्ष 2012 में राष्ट्रपति चुनाव लडऩे के लिए एन.ओ.सी. मांगी थी जोकि राष्ट्रपति ने देनी थी क्योंकि उक्त प्रावधान भारत के सविधान में नहीं है। उक्त पात्र 21 जून को राष्ट्रपति सचिवालय में रिसीव कर लिया गया है। सैक्टर-40 निवासी विजय कुमार ने 2012 में हुए राष्ट्रपति चुनाव लडऩे की इच्छा जताई थी। 

 

चूंकि वह सरकारी कर्मी है, इसलिए उन्हें चुनाव लडऩे के लिए नो ऑब्जैक्शन सर्टिफिकेट चाहिए था, जिसके लिए उन्होंने अप्लाई किया तो पता चला कि ऐसा प्रमाणपत्र देने का कानून हमारे सविधान में है ही नहीं। एन.ओ.सी. राष्ट्रपति ही जारी कर सकते हैं। विजय इलैक्शन कमीशन और राष्ट्रपति से एन.ओ.सी. मांगते रहे पर उन्हें एन.ओ.सी. नहीं मिली, जिसके चलते वह चुनाव नहीं लड़ पाए। चुनाव संपन्न होने के बाद विजय कुमार ने चुनाव को चुनौती दे डाली लेकिन पेपर स्टडी किए बिना उन्हें वापस भेज दिए गए। विजय ने सुप्रीम कोर्ट में पटीशन दाखिल कर दी लेकिन वह भी कंसीडर नहीं हुई। जवाब मिला कि काऊंसिल के जरिए पटीशन लगाई जाए। 

 

जजमैंट नहीं, ओपिनियन दिया :
विजय ने आर्थिक हालात का वास्ता देकर सुप्रीम कोर्ट के मिडल क्लास लीगल अथॉरिटी और मिडल क्लास लीगल सर्विस कमेटी को पत्र लिख कर लीगल एड मांगी, जिन्होंने काऊंसिल प्रोवाइड करवाने की एवज में 25000 की मांग की जो विजय ने पूरी कर दी लेकिन 6 माह बाद उसे 25000 की राशि वापस भेज दी गई। विजय का कहना है कि वह उसके द्वारा दाखिल की गई पटीशन स्वीकार कर ली गई थी जिसकी जजमैंट आनी चाहिए थी, चाहे वह मेरे खिलाफ जाती लेकिन कोर्ट ने जजमैंट की बजाय ओपिनियन दे दिया। कहा गया कि जिस रास्ते से आप राष्ट्रपति चुनाव लडऩे के लिए जाना चाहते हो, वह रास्ता ठीक नहीं है। 

 

ओपिनियन में कोर्ट ने दोनों पक्षों की बात पर सहमति जताई लेकिन साथ चूंकि आप राष्ट्रपति पद के कैंडिडेट नहीं थे इसलिए चुनाव को चुनौती नहीं दे सकते। विजय ने उक्त जवाब मिलने के बाद भी हार नहीं मानी और राष्ट्रपति चुनाव के पूरे एक्ट की स्टडी करने के बाद उन्होंने राष्ट्रपति सचिवालय व राष्ट्रपति को फिर से पत्र लिखा और एक्ट के तहत खुद को राष्ट्रपति पद के लिए काबिल बताया। एक्ट के तहत चूंकि एन.ओ.सी. का प्रावधान संविधान में नहीं है इसलिए राष्ट्रपति को उसे जवाब देना चाहिए था या सम्बंधित विभाग को केस रैफर करना चाहिए था जोकि चार वर्ष तक नहीं किया गया। 

 

आर.टी.आई. में पता चला कि पत्राचार की प्रोसिडिंग रिकार्ड से गायब है :
इस बार भी जब विजय को तर्कसंगत जवाब नहीं मिला तो उन्होंने आर.टी.आई. का सहारा लिया लेकिन जवाब नहीं मिलने पर उन्होंने सैंट्रल इन्फॉर्मेशन कमीशन तक अपील की जहां विजय की वीडियो कॉन्फ्रैंस के जरिये हियरिंग भी हुई। विजय ने पूछा था कि जो पत्राचार उन्होंने किया उसकी प्रोसिडिंग की डिटेल उन्हें दी जाए और बताया जाए कि राष्ट्रपति चुनाव में कितना खर्च हुआ। एक प्रश्न का जवाब मिला कि चुनावों में साढ़े सात लाख खर्च हुआ लेकिन पहले सवाल का जवाब मिला कि पत्राचार का या उसकी प्रोसिडिंग का रिकार्ड नहीं मिल पाया।  

 

राष्ट्रपति के समक्ष पटीशन दाखिल कर कहा- जजमैंट दें या छोड़ें पद 
विजय ने इन्फॉर्मेशन कमीशन से मिले जवाब के बाद एक बार फिर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पटीशन दाखिल कर मांग की कि उन्हें पटीशन की जजमैंट चाहिए जो नहीं दी जा रही इ लिए या तो वह राष्ट्रपति की पोस्ट से क्विट करें या या एक और पोस्ट क्रिएट करे। इस बार राष्ट्रपति सचिवालय ने माना कि की विजय कुमार की पटीशन वैध है, जिस पर जजमैंट दी जानी चाहिए। 

 

उक्त कमैंट कर इलैक्शन कमीशन को जवाब देने को कहा गया। इस बार भी विजय को 2015 में फिर वही जवाब मिला कि जो एन.ओ.सी. आप ने मांगी थी, वह किसी भी कानून के दायरे में नहीं आती। 19 मई, 2017 को विजय कुमार ने फिर एक पत्र राष्ट्रपति और चीफ इलैक्शन कमीशन को लिखा है कि जब तक मेरी पटीशन क्लीयर नहीं हो जाती, तब तक राष्ट्रपति चुनावों की अधिसूचना जारी न की जाए लेकिन अधिसूचना जारी कर दी गई है। अब विजय राष्ट्रपति चुनावों की अधिसूचना को चैलेंज करने जा रहे हैं। 


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