भारत की बेटी यशिका ने जीता अमरीका का प्रतिष्ठित चांसलर अवार्ड

punjabkesari.in Saturday, Jun 02, 2018 - 08:54 AM (IST)

चंडीगढ़(रश्मि) : भारत की बेटी यशिका खत्री ने अमेरिका का प्रतिष्ठित चांसलर अवार्ड जीत कर एयरोस्पेस क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। एंब्री रिडल एयरोनॉटिकल यूनिवर्सिटी द्वारा यह प्रतिष्ठित अवार्ड विश्वविद्यालय में आयोजित सम्मान समारोह में दिया गया। एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए यह अवार्ड पाने वाली यशिका पहली भारतीय बन गई हैं। 

यशिका ने एस.ए.टी. पास कर अमरीका की एयरोनोटिकॅल यूनिवर्सिटी एंब्री-रिडल में दाखिला लिया। हर साल आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए वूमैन ऑफ एक्सीलैंट लिस्ट में भी जगह बनाई। यशिका ने अमरीका रैडक्रॉस क्लब, क्लब इंडिया, सोसायटी ऑफ प्रोफैशनल इंजीनियर्स सोसायटी, नैशनल सोसायटी ऑफ ब्लैक इंजीनियर्स और इंटरनैशनल स्टूडैंट्स एसोसिएशन के सदस्य के रूप में काम किया। अमरीका से प्रकाशित इंटरनैशनल एजुकेशन न्यूज ने मई के अंक में यह अवार्ड जीतने पर यशिका को पहले पन्ने पर स्थान दिया है। 

बता दें कि यशिका के दादा पूर्व आई.पी.एस. हजारी लाल का कहना है कि यशिका हमेशा से उसी कोलोरॉडो एट बोल्डर यूनिवर्सिटी में दाखिला लेना चाहती थी, जहां से कल्पना चावला ने पीएच.डी. की थी। यशिका के पिता राजीव खत्री ने बताया कि इससे पहले वर्ष 2016 में वह उस गोल्डन ईगल्स फ्लाइट टीम का भी हिस्सा थी, जिसने अमेरिका में प्रति वर्ष नैशनल इंटर कालेज फ्लाइंग एसोसिशन की ओर से आयोजित होने वाली क्षेत्रीय प्रतियोगिता में नेविगेशन फील्ड में राष्ट्रीय स्पर्धा में 7वां स्थान हासिल किया था। 

इसलिए दिया जाता है यह अवार्ड :
चांसलर अवार्ड उस स्नातक डिग्री लेने वाले छात्र को दिया जाता है, जिसका शैक्षिणक रिकार्ड अत्यधिक उत्कृष्ट रहा हो और उसके साथ उसने कैंपस में अपने व्यवहार एवं कम्युनिटी में उच्च स्तर की भागीदारी की हो। इसके तय किए गए 4 जी.पी.ए. प्वांइट में से छात्र ने कम से कम सभी वर्ष में कम से कम 3.5 अंक अर्जित किए हों। 

याशिका ने सभी चार वर्ष में अधिकतम 4 अंक प्राप्त कर यह अवार्ड हासिल किया है। यशिका के पिता पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं, जबकि मां गृहिणी है। मूल रूप से रोहतक के गांव इस्माईला से ताल्लुक रखने वाला यह परिवार फिलहाल पंचकूला में रह रहा है। कल्पना चावला से प्रेरित याशिका ने छठी कक्षा में ही तब एस्ट्रोनट बनने की ठान ली थी। इस मुकाम पर यशिका ने पहुंचने के लिए कभी ट्यूशन का कोई सहारा नहीं लिया।


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