मौत के बाद भी 2 लोगों को नई जिदंगी दे गया 22 वर्षीय युवक

Wednesday, Oct 04, 2017 - 11:50 AM (IST)

चंडीगढ़(पाल) : मेरे घर के चिराग ने किसी और के घर में रौशनी कर दी। अगर मेरा बेटा इस जगह होता तो वह भी यही फैसला लेता। यह बात पी.जी.आई. में ब्रेन डैड हुए युवक विक्रम के पिता ने कही, जिनके एक फैसले की बदौलत जिंदगी और मौत से लड़ रहे दो लोगों को नई जिंदगी मिल पाई है। मंगलवार को पी.जी.आई. में इस वर्ष का 35वां ओर्गन ट्रांसप्लांट किया गया।

 

12वीं क्लास में पढऩे वाला विक्रम करनाल में अपना पेपर देकर बस से घर आ रहा था लेकिन चलती बस मोड़ पर संतुलन खो बैठी व इस कारण विक्रम बस से नीचे गिर गया। गंभीर हालत में विक्रम को करनाल के कल्पना चावला अस्पताल में दाखिल करवाया गया, लेकिन हालत ज्यादा नाजुक होने से उसे पी.जी.आई. रैफर किया गया था। 

 

डाक्टर्स की मानें तो जब विक्रम को यहां लाया गया तो उसके सिर पर काफी गंभीर चोटें थी, जिस कारण काफी कोशिश के बाद भी उसकी जान नहीं बच सकी। 1 अक्तूबर को डाक्टरों ने उसे ब्रेन डैड घोषित कर दिया था। विक्रम की मां अंगरेजो रानी की मानें तो 22 वर्षीय बेटे के अंगदान करना आसान नहीं था, लेकिन उसकी वजह से दो लोगों को नई जिंदगी मिली है, इस बात की जरूर संतुष्टि है। 

 

काऊंसलिंग के बाद अंगदान का फैसला :
ब्रेन डैड विक्रम के परिजनों ने काऊंसलिंग के बाद उसके अंग दान करने का फैसला लिया, जिसकी बदौलत पी.जी.आई. में काफी वक्त से इलाज करवा कर दो किडनी पेशैंट को विक्रम की किडनी ट्रांसप्लांट की गई। जिन दो मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट की गई है वह काफी वक्त से डायलसिस पर ही जिंदा थे। इस वर्ष पी.जी.आई. अब तक 35 ब्रेन डैड मरीजों के ओर्गन ट्रांसप्लांट कर चुका है। 

 

पी.जी.आई. ओर्गन ट्रांसप्लांट (रोटो) के नोडल ऑफिसर डा. विपिन कौशल की मानं तो पी.जी.आई. ओर्गन ट्रांसप्लांट करने के मामलें में काफी आगे निकल चुका है। संस्थान आज दूसरे अस्पतालों के लिए मिसाल दे रहा है। पी.जी.आई. डाक्टर्स व रोटो विभाग इसके लिए काफी मेहनत कर रहा है, लेकिन ब्रेन डैड परिजनों के बिना यह सारी मेहनत बेकार है। परिजनों द्वारा ऐसे अपने किसी परिजन के अंगदान करना काफी सराहनीय है। अंगदान को लेकर लोगों में काफी जागरूकता भी आ रही है। लोग आगे आकर अंगदान करने की न सिर्फ बात करते हैं बल्कि शपथ भी ले रहे हैं।
 

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