मेयर पद के चुनाव के लिए भाजपा पार्षदों में खींचतान

punjabkesari.in Tuesday, Dec 19, 2017 - 11:43 AM (IST)

चंडीगढ़ (राय): नगर निगम के वर्ष 2018 के मेयर चुनाव के लिए भाजपा में मेयर के प्रत्याशी को लेकर खींचतान जारी है। पार्टी इस समय चार गुटों में बंटी हुई है और चारों गुट इस पद के लिए अपने-अपने प्रत्याशी दावेदारी ठोक रहे हैं। बता दें कि पार्टी में इस समय पार्टी प्रदेशाध्यक्ष संजय टंडन गुट हावी है और इस गुट की ओर से पहले भी मेयर रह चुके अरुण सूद इस सीट की दौड़ में सबसे आगे है। इसके बाद नगर सांसद किरण खेर गुट आता है। पार्टी में पूर्व सांसद सत्यपाल जैन और पार्टी नेता हरमोहन धवन के गुट भी सक्रिय हैं। 

 

सत्यपाल गुट से देवेश मोदगिल भी अपनी दावेदारी पेश करने में लगे हुए है और इस बार किरण और धवन गुट से संबंधित पार्षद उनके समर्थन में चल रहे हैं। वहीं इस दौड़ में मौजूदा सीनियर डिप्टी मेयर राजेश गुप्ता भी इस पद के लिए अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं। उनका मानना है कि सिन्योरिटी के हिसाब से वे इस पद के लिए सबसे पहले नंबर पर आते हैं। राजेश को पार्टी में निष्पक्ष माना जाता है और उनका कहना है कि उन्हें टंडन तथा अन्य गुट के पार्षदों का भी समर्थन प्राप्त है। पार्टी सूत्रों की मानें तो कहा जा रहा है कि यदि सूद को पार्टी इस पद का प्रत्याशी बनाती है तो चुनाव में क्रॉस वोटिंग होने का खतरा है। 

 

पार्टी पार्षदों का मानना है कि सूद को एक बार यह मौका मिल चुका है और अब पार्टी के अन्य वरिष्ठ पार्षदों को भी मौका मिलना चाहिए। राजेश लगातार तीन बार निगम चुनाव जीत चुके हैं। यह भी कहा जा रहा है कि यदि उन्हें इस बार अनदेखा किया गया तो वे निर्दलीय तौर पर भी इस पद के लिए दावेदारी पेश कर सकते हैं। वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अभी इस पद के लिए किसी का नाम तय नहीं किया गया है। पार्टी के चंडीगढ़ प्रभारी प्रभात झा ही यहां आकर सभी पार्टी नेताओं और पार्षदों की राय जानने के बाद किसी का नाम फाइनल किया जाएगा। 


कांग्रेस भी बैठी है ताक में 
निगम सदन में बहुमत होने के चलते ऐसा माना जा रहा है कि इस बार भी भाजपा का मेयर बनना तय है। लेकिन पार्टी में फैली गुटबाजी को देखते हुए कांग्रेस भी ताक में बैठी है कि गुटबाजी के कारण उसे लाभ मिल जाए। सूद पर संजय टंडन का हाथ है। यही वजह है कि भाजपा के अन्य गुट के पार्षदों के तमाम विरोध के चलते वे वर्ष 2016 में भी सूद को प्रत्याशी बनाने में सफल रहे थे। इस बार भी टंडन सूद को टिकट दिलवाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। पार्टी में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए टंडन के लिए ये जरूरी भी है। इससे पहले भी एक बार सांसद अपनी पंसीदा पार्षद को एक बार टिकट दिलवा चुकी है। खेर एक बार हीरा नेगी टिकट दिलवाने में सफल रही थी, लेकिन पार्टी की गुटबाजी के चलते ही मेयर चुनाव में उन्हे हार का मुंह देखना पड़ा था। 

 

उधर, सूद और देवेश की आपस में कभी बनी ही नहीं। कई बार सदन की बैठकों में देवेश और सूद एक मुद्दे पर एक-दूसरे के उल्ट चलते नजर आ चुके हैं। गत माह देवेश ने अपने वार्ड से डोर टू डोर गारबेज प्रोजैक्ट को निगमायुक्त से लांच करवा दिया था, जिसमें टंडन गुट से वर्तमान मेयर आशा जायसवाल को उन्होंने नहीं बुलाया था। इसके बाद ही टंडन गुट के कुछ पार्षदों ने मोदगिल के खिलाफ पार्टी हाईकमान को शिकायत भी दी थी और आरोप लगाया था कि वे पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं। इसके अलावा सदन में भी सूद और मोदगिल कम्युनिटी सैंटर मुद्दे पर आमने सामने हो चुके हैं। मोदगिल ने कम्युनिटी सैंटर के मुद्दे पर उनके वार्ड में सूद के दौरे पर ऐतराज जताया था। 

 

 

इसके बाद हाऊस में सूद और मोदगिल की आपस में बहस हो गई थी। निगम सदन में इस समय भाजपा के 20, कांग्रेस के 4, अकाली दल का 1 और 1 पार्षद निर्दलीय है। वहीं मेयर चुनाव में एक वोट सांसद का भी होता है, इसलिए चुनाव में कुल 27 वोट डाले जाएंगे। मनोनीत पार्षद इस चुनाव में वोट नहीं कर सकेंगे। कांग्रेस के पास इस पद के लिए एकमात्र विकल्प पार्षद दविंद्र सिंह बबला है, जिन्हें पार्टी चुनाव में टिकट दे सकती है। हालांकि पिछली बार मेयर पोस्ट हारने के बाद कांग्रेस ने सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव में अपने उम्मीदवार का नाम वापस ले लिया था, लेकिन इस बार भाजपा की गुटबाजी को देखते हुए कांग्रेस को उम्मीद है कि चुनाव में कुछ भी हो सकता है। 


 

मनोनीत पार्षदों के वोट के बिना सूद को हो सकती है मुश्किल 
इस बार निगम चुनाव में हालांकि भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला और उसके पार्षद 20 की गिनती में निगम में चुनाव जीत कर पहुंचे उस पर टंडन गुट को इस पर भी घुमान था कि 9 मनोनीत पार्षद भी भाजपा से संबंधित ही आए हैं लेकिन निगम इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि मनोनीत पार्षद मेयर, सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर चुनाव में अपने वोट का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। ऐसे में यदि पार्टी ने सूद को मेयर पद का प्रत्याशी बनाया तो उन्हें मनोनीत पार्षदों के वोट के बिना यह चुनाव जीतने में मुश्किलें आ सकती हैं। टंडन गुट अभी तक यह भी मान कर चल रहा था कि गुटबाजी के कारण बेशक उन्हें कुछ पार्षदों का साथ न मिले लेकिन मनोनीत पार्षदों का साथ तो उनके साथ ही होगा। मनोनीत पार्षदों के वोटिंग न कर पाने से कांग्रेस भी इस उम्मीद में है कि उसे भी इसका लाभ मिल सकता है और तीनों सीटों में से कोई न कोई सीट पर वे काबिज हो सकती है। 


 


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