यूट्रिन की दुर्लभ समस्याओं और पुरुष इनफर्टिलिटी के मामलों में, बिरला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ अपनी पर्सनलाइज्ड देखभाल से दंपतियों कामां-बाप बनने के सपने को साकार कर रहा है

punjabkesari.in Wednesday, May 14, 2025 - 10:52 AM (IST)

चंडीगढ़। इनफर्टिलिटी एक डायग्नोसिस नहीं है - यह आमतौर पर ओवर लैपिंग स्थितियों, कठिन परिणामों और इमोशनल स्ट्रेस की एक से अधिक कारणों वाली पहेली है।ऐसे ही एक मामले में एक दम्पति के लिए उनकी साढ़े पांच साल का सफर इन्हीं दिक्कतों से घिरा हुआ था।बार-बारआईवीएफ से मिली असफलता, एक बार दूसरी तिमाही में हीगर्भपात, और उसके बाद होने वाली इमोशनल तनाव और शारीरिक तौर पर कमजोरी पूरी तरह से तोड़ देने वाला अनुभव बन गया था। इन चुनौतीपूर्ण स्थितियों के बावजूद,दम्पति के हौंसले ने उन्हें बिरला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ, चंडीगढ़ में ले आया, औरडॉ. राखी गोयल की एक्सपर्ट देखरेख के तहत, उन्होंने अपने मां-बाप बनने का सपना पूरा कर ही लिया।डॉ.राखी गोयल ने उनके लिए काफी सोच-विचार के बाद एक ऐसी स्ट्रेटजी तैयार की जो आखिरकार उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं के पूरा करने में सफल रही और उनको अपने बच्चे का मां-बाप बनने का सुख मिला।

कई जटिलताओं के बीच भी, बिरला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ ने पूरी गंभीरता और गहराई से उनकी जांच की।

34 वर्षीय महिला का री प्रोडक्टिव अतीत बहुत कठिन था। उसे समय से पहले यानि प्रीमैच्योर ओवरियन इनसफीशेंसी (डिम्बग्रंथि अपर्याप्तता) थी। साथ ही, एडेनोमायसिस और एक यूनिकॉर्नुएट यूट्रस भी था। यह एक दुर्लभ जन्मजात स्थिति होती है जिसमें यूट्रस सामान्य से आधा आकार का होता है, जिसमें रक्त की आपूर्ति कम होती है और इम्प्लांटेशन क्षमता काफी सीमित होती है।

इस के अलावा, उनकी एंडोमेट्रियोसिस की भी हिस्टरी थी और वह एक अलग सेंटर पर डोनर एगआईवीएफ द्वारा एक बार पहले भी गर्भवती हो चुकी थी। वह गर्भावस्था 22 सप्ताह में समाप्त हो गई थी क्योंकि प्लेसेंटा का अचानक खुलना एक गंभीर जटिलता थी जिसके लिए इमरजेंसी हिस्टेरोटॉमी की आवश्यकता थी।उसके साथी को भी गंभीर फर्टिलिटी संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा।उसके सीमन एनालसिस में टेराटोज़ोस्पर्मिया - स्पर्म का असामान्य आकार–हाई डीएनए फ्रेगमेंटेशन(25%) और कमजोर मोटीलिटी दिखाई दी।डॉ.गोयल ने कहा कि "वे डायग्नोसिस से भरे एक फ़ोल्डर के साथ आए और मुश्किल से आशा की एक किरण थी। लेकिन उनका संकल्प मजबूत था और इसने हमें एक सही रास्ते की तलाश करने के लिए प्रेरित किया - भले ही इसे शुरू से ही बनाना पड़े।"

कोई शॉर्टकट नहीं, केवल व्यक्तिगत कदम

डॉ. गोयल जानती थी कि इस मामले में ऐसे सॉल्यूशन की आवश्यकता थी जो स्पर्म की समस्या को हल कर सके, यूट्रिन को इन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार कर सके, ओबस्टिट्रिक जोखिम को संभाल सके और साथ ही इमोशनल तनाव और थकावट को दूर कर सके।

दम्पति ने दोबारा डोनर एग आईवीएफ साइक्लि अपनाया और छह अच्छे ग्रेड के ब्लास्टोसिस्ट बनाए गए। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती यूट्रसकोएम्ब्रयो यानि भ्रूण को स्वीकार करने के लिए तैयार करना था। यूट्रिन की सूजन को कम करने और एंडोमेट्रियल रिसेप्टिविटी को बढ़ाने के लिए जीएन आर एचए गोनिस्ट का तीन महीने का आहार शुरू किया गया। इस बीच, टीम ने महिला की ओवरऑल हेल्थ को लगातार बेहतर बनाए रखने पर भी ध्यान केंद्रित किया - विशेष रूप से उनका ब्लडप्रेशर, जो उसकी पिछली गर्भावस्था के दौरान बढ़ गया था। लाइफस्टाइल में बदलाव, लगातार निगरानी और सपोर्टि व थेरेपी मुख्य आधार थे।

यूट्रस तैयार करने के बाद, एक टॉपग्रेड डे-5 ब्लास्टोसिस्ट ट्रांसफर किया गया।डॉ. गोयल ने कहा, "ऐसी स्थितियों में, जहां यूट्रस स्ट्रक्चरली तौर पर कमजोर है, मल्टीप्लएम्ब्रयो ट्रांसफर खतरनाक हैं। यह केवल गर्भवती होने के बारे में नहीं है, यह इसे सुरक्षित बनाने के बारे में है।"

परिणाम पॉजिटिव प्रेगनेंसी टेस्ट के तौर पर सामने आया लेकिन बिरलाफर्टिलिटी एंड आईवीएफ की टीम जानती थी कि गर्भावस्था को लगातार सहायता और निगरानी की आवश्यकता है। महिला की गर्भावस्था और यूट्रिन की स्थिति के कारण, गर्भावस्था हमेशा हाईरिस्क वाली थी। सीरियल स्कैनिंग ने प्लेसेंटा प्रीविया को प्लेसेंटा एक्रीटाकेएवीडेंस द्वारा जटिल दिखाया - दोनों बहुत गंभीर जटिलताएं हैं जिनकी निरंतर निगरानी की आवश्यकता थी।

गर्भावस्था को पूरे ध्यान से सक्रिय रूप से प्रबंधित करने के लिए एक मल्टी-डिसप्लनरी टीम ने मिलकर काम किया। 34 सप्ताह में, महिला ने तय योजना के तहत सीजेरियन सेक्शन द्वारा एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया।

क्या अंतर था

यह केवल एक मेडिकल उपलब्धि नहीं थी। यह पर्सनाइलजेशन, स्ट्रेटजी और मजबूत हौंसले की जीत थी। सावधानी पूर्वक समय बद्ध हार्मोनट्रीटमेंट और सिंगल एम्ब्रयोट्रांसफर से लेकर निरंतर जोखिम निगरानी और सहयोगी केयर तक - हर विकल्प चुना गया जो कि प्रमाण-आधारित था।

लेकिन डॉ. गोयल की राय में, इस सफर की असली ताकत खुद दम्पति के पास ही थी। उन्होंने कहा कि "उन्हें कई बार इस सफर को बीच में छूट जाने के चलते बार-बार असफलता मिली थी। लेकिन वे वापस आते रहे। उनके विश्वास ने हमें उद्देश्य दिया - और अंततः सफलता हासिल हुई।"

यह अनुभव बताता है कि सबसे कठिन यात्राओं में भी सही केयर मिल सकती है।


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