ऑक्यूपेशनल एक्सपोज़र के कारण वायु प्रदूषण - अस्थमा पीड़ितों के लिए गंभीर ट्रिगर

punjabkesari.in Monday, Jan 09, 2023 - 02:56 PM (IST)

ऑक्युपेशनल एक्सपोज़र के कारण वायु प्रदूषण, अस्थमा पीड़ितों के लिए गंभीर ट्रिगर 


पिछले सालों में हवा का प्रदूषण पूरी दुनिया में जनस्वास्थ्य की एक बड़ी समस्या बन चुका है। भारत में दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित 20 शहर हैं, और यहाँ पर प्रदूषण से हर साल एक मिलियन से ज्यादा लोगों की जान जाती है । ग्रीनपीस इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 99 प्रतिशत से ज्यादा आबादी ऐसी हवा में साँस लेती है, जो पीएम 2.5 के मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वास्थ्य आधारित मानकों के मुकाबले काफी ज्यादा खराब है । ज्यादातर लोग इस शब्दावली को अभौतिक सिद्धांत मान सकते हैं, लेकिन इसके परिणाम बहुत वास्तविक होते हैं।
पीएम 2.5 एक बहुत महीन पार्टिकुलेट मैटर होता है। ये बहुत छोटे कण हवा को धुंधला बनाते हैं, और जब इनकी संख्या बहुत ज्यादा हो जाती है, तो दिखाई देना मुश्किल हो जाता है । ये कण रेगिस्तान की धूल के कारण प्राकृतिक हो सकते हैं, या फिर मनुष्यों द्वारा फैक्ट्री के धुएं, कृषि, और जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने वाले बिजली घरों के कारण उत्पन्न हो सकते हैं । इन महीन कणों के बारे में ध्यान देने वाली बात यह है कि जब इन्हें साँस के साथ अंदर लिया जाता है, तो ये फेफड़ों में गहराई तक उतरकर साँस और दिल की बीमारियाँ पैदा कर सकते हैं। इनका सबसे गहरा असर श्वसन प्रणाली पर पड़ता है।
जहाँ देश में बढ़ते वायु प्रदूषण में योगदान देने वाले तत्वों की सूची बहुत लंबी है, जिनके कारण फेफड़ों को स्थायी नुकसान हो सकता है, लेकिन ऑक्युपेशनल वायु प्रदूषण और प्रतिदिन इस प्रदूषण में रहने वाले लोगों, खासकर अस्थमा जैसी पुरानी साँस की बीमारी के पीड़ितों पर इसके प्रभाव के बारे में ज्यादा नहीं कहा गया है।
डॉ . एस. के. जिंदल, मेडिकल डायरेक्टर एवं सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट, चंडीगढ़ ने बताया कि ऑक्युपेशनल अस्थमा वह अस्थमा है, जिसमें काम करते हुए कैमिकल्स, गैसों धुएं, एवं अन्य कणों के संपर्क में आने और उनमें साँस लेने के कारण साँस की नली के संकरा होने, सूज जाने या फिर जलन की समस्या होने लगती है। निरंतर इनके संपर्क में रहने के कारण एक एलर्जिक या प्रतिरक्षा प्रणाली में प्रतिक्रिया के कारण अस्थमा के समान ही छाती में जकड़न, घरघराहट, और डिस्पनिया यानि साँस फूलने की शिकायत हो जाती है । निर्माण स्थल पर काम करने वालों के सिलिका के संपर्क में बने रहने, स्वास्थ्यकर्मियों के लेटेक्स और कैमिकल्स के संपर्क में रहने, और ट्रैफिक पुलिस के धूल एवं वाहनों के धुएं में लंबे समय तक रहने के कारण साँस की नली में जलन उत्पन्न हो सकती है  और अस्थमा के लक्षण जैसे साँस का फूलना, खाँसी, घरघराहट बढ़ सकती है, तथा अस्थमा का दौरा भी पड़ सकता है। इससे न केवल पहले से मौजूद साँस की बीमारियाँ बढ़ जाती हैं, बल्कि कई नए लोगों में पुरानी साँस की बीमारियाँ भी पैदा हो सकती हैं। 
चंडीगढ़ का एक मामला लेते हैं। यहाँ एक 35 वर्षीय ट्रैफिक पुलिसकर्मी को गंभीर क्रोनिक रेस्पिरेटरी समस्या जैसे साँस फूलने, खाँसी, और घरघराहट की शिकायत उस समय शुरू हुई जब वह 29 वर्ष का था, और उसका करियर शुरू ही हुआ था। हर बदलते मौसम में व्यस्त सड़कों, ट्रैफिक जाम वाले चौराहों पर प्रदूषण के निरंतर संपर्क में बने रहने के कारण उसकी साँस की नली पर बहुत बुरा असर हुआ, जिसके लिए इलाज जरूरी हो गया। यह केवल अस्थायी संक्रमण है, यह सोचकर उसने तीन सालों तक अपना इलाज खुद किया। लेकिन समय के साथ उसकी समस्या बढ़ती चली गई और उसे अपनी नौकरी छोड़ने के लिए लगभग मजबूर होना पड़ा था, जिस पर उसे गर्व था। 
लेकिन तभी एक मित्र की सलाह से उसने एक पल्मोनोलॉजिस्ट से अपनी बीमारी का इलाज कराने का निर्णय लिया। उसके इतिहास और उसके व्यवसाय को देखते हुए उसका लंग फंक्शन परीक्षण किया गया, जिसमें अस्थमा का पता चला। इसलिए उसे एक इन्हेलर दे दिया गया। शुरू में वह अपने निदान और इलाज के लिए आश्चर्यचकित और शंकालु था, और उसे डर था कि इससे उसे अपना काम करने में मुश्किल हो सकती है। लेकिन सही जानकारी, मार्गदर्शन और शिक्षा के साथ आज छः साल बाद भी वह अपने शहर के ट्रैफिक पुलिस बल का एक गौरवशाली सदस्य है। परामर्श के अनुरूप वह इन्हेलेशन थेरेपी का पालन करता है और अपनी स्थिति का प्रभावशाली नियंत्रण करने में समर्थ है।’’
ऐसी ही अनेक कहानियाँ हैं, जिनमें लक्षणों को नजरंदाज कर दिया जाता है, और अस्थमा के ट्रिगर्स या इस बीमारी की जागरुकता कम होने के कारण स्थिति का निदान नहीं हो पाता है। 
अस्थमा के ऑक्युपेशनल संपर्क में रहने वाले लोगों के लिए सावधानियाँ
लक्षणों को बिगड़ने से बचाने के लिए जागरुकता का होना और ट्रिगर्स से बचकर रहना जरूरी है। साँस की किसी भी बीमारी को नियंत्रित करने के लिए मेडिकल सलाह जरूरी है। ऑक्युपेशनल अस्थमा का निदान अन्य तरह के अस्थमा की तरह ही होता है। इसके निदान के सबसे महत्वपूर्ण टूल्स में से एक पीक फ्लो मेज़रमेंट है। पीक फ्लो मीटर से आकलन किया जाता है कि आप साँस बाहर छोड़ते हुए हवा को कितनी तेजी से बाहर निकाल पाते हैं। इससे आपके फेफड़ों की शक्ति और साँस की नली कितनी खुली है, यह समझने में मदद मिलती है । इसके अलावा, कार्यस्थल पर कौन सा पदार्थ लक्षणों को बढ़ा रहा है, यह जानने के लिए एलर्जी स्किन प्रिक टेस्ट कराया जा सकता है । अस्थमा और ट्रिगर्स समय के साथ बदल सकते हैं, इसलिए सर्वश्रेष्ठ इलाज प्राप्त करने के लिए डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए कुछ बिंदु हैं, जो आपको अस्थमा को नियंत्रित रखने और प्रदूषक तत्वों के ऑक्युपेशनल एक्सपोज़र से जुड़े ट्रिगर्स को कम करने में मदद कर सकते हैंः


o   डॉक्टर के परामर्श से व्यक्ति की स्थिति, उसके कार्यस्थल, जीवनशैली, और पर्यावरण के अनुरूप एक अस्थमा एक्शन प्लान बनाना बहुत जरूरी है ।
o   डॉक्टर द्वारा बताई गई इन्हेलेशन थेरेपी का पालन करें, फिर चाहे लक्षण प्रकट होते हों या नहीं। इससे कार्यस्थल के ट्रिगर्स के कारण उत्पन्न होने वाले अस्थमा के दौरे से बचने में मदद मिलेगी ।
o   डॉक्टर के परामर्श से एक क्विक रिलीफ इन्हेलर अपने पास रखें।
o   साँस की नली को उत्तेजित करने वाले प्रदूषक तत्वों, धूल, कीटाणुओं एवं अन्य तत्वों को साँस के साथ अंदर खींचने से रोकने का सबसे प्रभावशाली तरीका मास्क पहनना है । 
o   नियमित रूप से मेडिकल जाँच कराएं और पीक फ्लो मीटर द्वारा अपने फेफड़ों के स्वास्थ्य की निगरानी करें ताकि उत्तेजक कणों के कारण फेफड़ों को होने वाली क्षति को रोका जा सके । 
o   औद्योगिक हाईज़ीन की तकनीकों का इस्तेमाल करें, जो संपर्क में आने वाले उत्तेजक कणों के लिए उचित हैं। इससे एक्सपोज़र कम से कम होगा ।


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Content Writer

Ajay kumar

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