चंडीगढ़ प्रशासन की तरफ से हाईकोर्ट के नोटिस का जवाब, मैंटीनैंस वर्क की जिम्मेदारी प्रशासन की नहीं

punjabkesari.in Wednesday, Apr 18, 2018 - 12:53 PM (IST)

चंडीगढ़(बृजेन्द्र): पंजाब यूनिवर्सिटी के मैंटीनैंस वर्क से चंडीगढ़ प्रशासन नेे साफ पल्ला झाड़ते हुए कहा है कि इसके मैंटीनैंस वर्क की जिम्मेदारी चंडीगढ़ इंजीनियरिंग डिपार्टमैंट की नहीं है। मामले में हाईकोर्ट द्वारा जारी नोटिस के जवाब में कहा गया है कि प्रशासन वर्ष 2010-11 के वित्त वर्ष तक यूनिवर्सिटी को अनुदान सहायता के रूप में फंड देता रहा है। 

 

बताया गया है कि केंद्र द्वारा पी.यू. के फंडिंग को लेकर सितम्बर, 2011 के पत्र में कहा गया कि केंद्र सरकार द्वारा यूनिवर्सिटी को फंडिंग चंडीगढ़ के एम.एच.ए. विभाग की बजाय सीधे केंद्र के एम.एच.आर.डी. द्वारा की जाएगी। उसके बाद एम.एच.ए. ने पूछा था कि क्या प्रशासन के 2010-11 के बजट से पी.यू. को कोई फंड जारी किया गया था, जिसका जवाब न में दिया गया। 

 

वहीं यूनिवर्सिटी द्वारा दिसम्बर, 2011 में बताया गया था कि वह यू.टी. के बजट से कोई अनुदान सहायता क्लेम नहीं करेगा। प्रशासन की ओर से कहा गया है कि पी.यू. का फंडिंग पैटर्न बदल गया है। अब यह एम.एच.आर.डी. द्वारा यू.जी.सी. के रूप में आता है। ऐसे में पी.यू. को मैंटीनैंस वर्क खुद से करना है। इसके लिए यूनिवर्सिटी का अपना इंजीनियरिंग विंग है। 

 

प्रशासन की ओर से यू.टी. के स्पैशल सैक्रेटरी फाइनांस हरीश नय्यर का एफिडैविट पेश किया गया। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को आदेश दिए कि अंतरिम रूप से केस की अगली सुनवाई से पहले यूनिवर्सिटी को 5 करोड़ रुपए जारी करें। पी.यू. के वाइस चांसलर डा. अरुण ग्रोवर ने कहा कि पी.यू. की वित्तीय स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है। पी.यू. की ओर से अपने खर्चों का ब्यौरा हाईकोर्ट को दिया गया। 

 

वहीं बताया गया कि पंजाब सरकार द्वारा 7वां पे कमीशन लागू न होने से केंद्र की ओर से टीचर्स के पे स्केल को लेकर किए गए वायदों का काम अटका हुआ है। केस की अगली सुनवाई 15 मई को होगी। 

 

रजिस्ट्रार के एफिडैविट में गवर्नैंस रिफार्म की मांग
केस की सुनवाई के दौरान पंजाब यूनिवर्सिटी की ओर से रजिस्ट्रार कर्नल जी.एस. चड्ढा (रि.) का एफिडैविट पेश कि या गया। गवर्नेंस रिफार्म से जुड़े मुद्दों को लेकर दायर एफिडेविट में कहा गया कि यूनिवर्सिटी के गवॄनग स्ट्रक्चर को गंभीर रूप से सुधार की जरूरत है। कहा गया है कि सीनेट में ग्रुपिज्म को लेकर कहा गया है कि यह इतनी बढ़ गई है कि विचार-विमर्श मैरिट के आधार पर नहीं होते और गु्रपिज्म प्रचलित है। 

 

सीनेट में आधिकारिक रूप से स्वीकृत ग्रुप नहीं हैं फिर भी मैंबर्स अहम मुद्दों पर पूर्व नियोजित तरीके से स्टैंड लेते हैं। एफिडैविट में नैशनल एक्रिडिएशन एंड असैसमैंट काऊंसिल की मार्च, 2015 रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है जिसमें विशेष रूप से पाया गया था कि एक्ट में तय किए गए गवर्नैंस स्ट्रक्चर को संशोधित किए जाने की जरूरत है। इसमें सिफारिश की गई थी कि विशेष रूप से फैकल्टी डींस की नियुक्ति के संबंध में गवर्नैंस स्ट्रक्चर पर दोबारा गौर करने की जरूरत है। 

 

वहीं पंजाब यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन ने केंद्रीय गृह मंत्री को सितम्बर, 2016 में विशेष रूप से गवर्नेंस रिफार्म को लेकर सुझाव दिए गए थे। इनमें फैकल्टीज की संख्या को कम करने, प्रत्येक सीनेटर को 4 की बजाय केवल 2 फैकल्टीज की मैंबरशिप लेने की मांग, फैकल्टीज के डींस को चुनने की प्रक्रिया खत्म करने आदि की मांगें शामिल थी। इस एफिडैविट पर केंद्र व पंजाब को नोटिस हुआ है।


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