एक्सीडैंट में घायल महिला कोमा में, आरोपी कार चालक को नहीं खोज पाई पुलिस

punjabkesari.in Friday, Dec 15, 2017 - 02:21 PM (IST)

चंडीगढ़ (रमेश): 16 दिसम्बर, 2016 की शाम करीब पांच बजे बीना रावत अपने घर सैक्टर 29 से मार्कीट गई थी लेकिन उसे नहीं पता था कि भविष्य में वह जमीन पर पांव भी नहीं रख पाएगी। बीना को सैक्टर-29 व 30 की ट्रैफिक लाइटों के पास एक सफेद रंग की कार चला रहे चालाक ने टक्कर मारी थी जिसके बाद से बीना कोमा में है। डाक्टर जवाब दे चुके हैं लेकिन पति ने आस नहीं छोड़ी है। दिन-रात पत्नी की सेवा में जुटा है। सारे जीवन की जमा पूंजी इलाज पर खर्च हो चुकी है। रिटायरमैंट को सिर्फ 15 दिन शेष बचे हैं, जिनका कहना है कि खुद को नीलाम कर दूंगा लेकिन पत्नी के होश में आने का इंतजार नहीं छोडूंग़ा। 


 

केस फाइल में सिर्फ एम.एल.आर. 
घटना के साढ़े तीन घंटे बाद इंडस्ट्रीयल एरिया पुलिस स्टेशन से सब इंस्पैक्टर गुरदास सिंह सैक्टर-32 के अस्पताल आए थे जिसके बाद पुलिस ने परिवार से संपर्क ही नहीं किया। अब एक वर्ष बाद जांच अधिकारी का तबादला हुआ तो जांच की फाइल दूसरे अधिकारी के पास आई जिन्होंने परिवार से घर जाकर संपर्क किया और बताया कि जांच फाइल में एम.एल.आर. के अलावा कोई डॉक्यूमैंट नहीं है। यानी जांच हुई ही नहीं। मामला भी आई विटनेस जूस वाले फिरासत अली की शिकायत पर दर्ज हुआ था। इसके अलावा आसपास रेहड़ी-फड़ी व अन्य दुकानदारों के बयान तक नहीं लिए गए। न ही आसपास सी.सी.टी.वी. कैमरों की रिकार्डिंग हासिल करने का प्रयास किया गया। मौके पर जाकर हमने भी जांच कि जहां 50 मीटर की दूरी पर साई मंदिर व बाबा बालक नाथ मंदिर के आसपास सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे हुए हैं जोकि घटना के वक्त भी थे। अब चाह कर भी इतनी पुरानी फुटेज नहीं मिल सकेगी। 

 

शायद कर्ज देना हो इसलिए 
बीना के पति गजपाल सिंह रावत का मानना है कि शायद बीना का कर्ज मैंने देना था सो चुका रहा हूं। तीनों बेटियां भी मां की सेवा में जुटी हैं। बेशक उसने इन्हें अपनी कोख से जन्म नहीं दिया। गजपाल ने वर्ष 2002 में बीना से विवाह किया था जिनकी पहली पत्नी को तीसरी बेटी को जन्म देने के बाद ऐसा सदमा लगा कि उसका दिमागी संतुलन बिगड़ गया। बच्चो के लालन-पालन और पहली पत्नी की सेवा में बीना ने कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन हंसते-खेलते परिवार में 16 दिसम्बर, 2016 को ऐसा ग्रहण लगा जो आज तक बरकरार है। गजपाल ने रिटायरमैंट के बाद खुद के घर के लिए 15 से 20 लाख रुपए जमा किए थे जोकि बीना के इलाज में खर्च हो चुके हैं। ऊपर से तीन जवान बेटियों के घर बसाने की चिंता भी उन्हें सता रही है। हमने पूछा-कब तक इस जिंदा लाश की सेवा करते रहोगे? जिस पर गजराज की आंखें नम हो गई। उनका कहना था कि जब तक सांसें हैं, इसकी सांसें भी बरकरार रखूंगा। 


 

घर बना अस्पताल
गजराज एक निजी मीडिया हाऊस में काम करते हैं, जिन्हें आवास की सुविधा भी मिली हुई है लेकिन वह भी रिटायरमैंट के बाद खाली करना पड़ेगा। अभी घर का एक कमरा अस्पताल बना हुआ है जहां सेवा भारती से मिले हॉस्पिटल बेड पर बीना को रखा गया है। उन्हे हर दो घंटे बाद करवट देनी होती है और हर चार घंटे बाद पाइप से फीड। नहलाना, धुलाना, क्लीनिंग व ड्रेसिंग भी घर पर ही दिन में दो वक्त होती है क्योंकि बेड पर रहते हुए बेड सोल हो चुका है और गहरे जख्म भर नहीं रहे। मल-मूत्र भी बिस्तर पर ही करवाया जा रहा है। जब भी कोई मूवमैंट होती है तो लगता है बीना उठ खड़ी होगी लेकिन चंद मिनट बाद ही वह हलचल सपना बन जाती है। 

 

पुलिस की जांच पर भी उठाए सवाल
गजराज ने पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल उठाये हैं कि आखिर क्यों जांच को दबाया गया और एक वर्ष से उन्हें संपर्क क्यों नहीं किया गया। अब जब इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर बदला तो उसे हमारी याद क्यों आई। माना कार चालक अज्ञात था, फिर भी जांच तो होनी चाहिए थी। अगर कोई वी.आई.पी. होता तो आरोपी भी मिल जाता लेकिन साधारण लोगों की कौन सुनता है? 


 

गाडी ट्रेस नहीं हुई जांच क्या करते?
एक्सीडैंट के बाद मौके पर पहुंचे इंवेस्टिगेशन ऑफिसर सब इंस्पैक्टर गुरदास सिंह को हमने ढूंढ कर उनसे बात की। उनका कहना था कि जूस वाले को शिकायत करता बनाकर एफ.आई.आर. दर्ज की गई थी। धारा 279 व 337 लगाई गई थी। गाड़ी का नंबर पता नहीं चला इसलिए जांच आगे नहीं बढ़ पाई। मैंने अस्पताल से एम.एल.आर. लेकर अटैच कर दी थी, आसपास सी.सी.टी.वी कैमरे भी नहीं थे। पीड़ित के घर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ी।


 


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