बाल रोग विशेषज्ञ के अनुसार ऐसे 6 मिथक जिन पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए
punjabkesari.in Tuesday, Jul 02, 2024 - 06:00 PM (IST)
चंडीगढ़ : हर साल 1 जुलाई डॉक्टर्स डे के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन हम हमारे बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण में डॉक्टरों की अहम भूमिका को याद करते है और साथ ही हम यह सोचकर निश्चिंत होते हैं कि इन्हीं की बदौलत हमारे छोटे बच्चे स्वस्थ और तंदुरुस्त रहते हुए से वृद्धि कर रहे हैं।
हालांकि एक क्लिक पर ढेरों जानकारियां मिलने वाले इस युग में ऑनलाइन बताए जाने वाले स्वास्थ्य से जुड़े मिथकों को मानना बड़ा ही आसान है। इंटरनेट बहुत काम की चीज है, पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए की नेट पर खोजने पर तुरंत मिलने वाले जवाब किसी पढ़े लिखे बाल रोग विशेषज्ञ की काबिलियत की जगह नहीं ले सकते हैं।
तो क्यों न इस डॉक्टर्स डे के अवसर पर कुछ आम मिथकों को दूर किया जाए, जिनका जवाब हमारे बाल रोग विशेषज्ञ अपनी ओपीडी में दिया करते हैं:
मिथक 1: दूध से बच्चों को संपूर्ण पोषण मिलता है।
इस बात का जवाब देते हुए सेक्टर 44 चंडीगढ़ के मदरहुड चैतन्य हॉस्पिटल में बाल रोग विभाग के एचओडी और चीफ कंसल्टेंट डॉ. नीरज कुमार कहते हैं कि “दूध कैल्शियम और विटामिन डी के लिए बहुत अच्छा है, लेकिन इसमें आयरन और फाइबर की कमी होती है इसलिए फलों, सब्जियों के साथ दूध का होना एक संतुलित आहार माना जाता है। साथ ही साबुत अनाज भी संतुलित आहार में बहुत जरूरी है। ज्यादा दूध पीने से बच्चों का पेट भर सकता है और शायद इसीलिए वह जरूरी खाद्य पदार्थ न खा सकें। एक साल के बाद ज्यादातर बच्चों को एक दिन में लगभग 400 मिलीलीटर दूध की ही जरूरत होती है।”
मिथक 2: बहुत ज्यादा टीके लगने से बच्चे की इम्यूनिटी को नुकसान होता है।
इस बात के जवाब में एक बार फिर से सेक्टर 44 चंडीगढ़ के मदरहुड चैतन्य हॉस्पिटल में बाल रोग विभाग के एचओडी और चीफ कंसल्टेंट डॉ. नीरज कुमार ने बताया कि “टीके वास्तव में इम्यूनिटी को मजबूत करते हैं। वे कमजोर या निष्क्रिय वायरस या बैक्टीरिया शरीर में पहुँचाकर शरीर को भविष्य के संक्रमणों से लड़ने के लिए तैयार करते हैं। आज कल टीकों की संख्या भी बढ़ी है, क्योंकि विज्ञान की बदौलत हम बच्चों को कई जानलेवा बीमारियों जैसे की निमोनिया और मेनिनजाइटिस आदि से बचाने में सफल हो रहें है। हमारे बाल रोग विशेषज्ञ विश्वसनीय संगठनों के दिशानिर्देशों का पालन करते हैं, ताकि वह एक सुरक्षित और असरदार टीकाकरण की सेवा दे सकें।”
मिथक 3: दांत निकलने पर दस्त लगते हैं।
इस बात का जवाब देते हुए डॉ. पवनदीप सिंह, कंसल्टेंट- बाल रोग विशेषज्ञ और नियोनेटोलॉजिस्ट, मदरहुड हॉस्पिटल जीरकपुर कहते हैं, “दांत निकलने पर बच्चे चिड़चिड़े हो सकते हैं। दांत निकलना और दस्त अक्सर एक ही समय में होते हैं, जिससे कुछ लोगों को लगता है कि दांत निकलने के कारण पेट खराब होता है। जबकि दांत निकलने से सीधे तौर पर दस्त नहीं लगते हैं। दांत निकलने के कारण बार- बार लार आने और संभावित पानी की कमी के चलते मल ढीला हो सकता है। लेकिन दस्त होने का संभावित कारण ठोस खाद्य पदार्थों को खाना शुरू करना या फिर अपने आस-पास की चीज़ों को अपने मुँह में डालना होता है। अगर किसी बच्चे, जिसके दांत निकल रहे हों, उसे दस्त, बुखार हो या मल में खून आ रहा हो तो तुरन्त अपने बाल रोग विशेषज्ञ से परामर्श लें ताकि इसके कारणों का पता लगाया जा सके।
मिथक 4: माताओं के अनुसार ज्यादा दूध जरूरी है।
इस बात का जवाब देते हुए डॉ.पवनदीप सिंह, कंसल्टेंट- बाल रोग विशेषज्ञ और नियोनेटोलॉजिस्ट, मदरहुड हॉस्पिटल जीरकपुर, ने बताया कि “दूध सेहत के लिए बढ़िया है, लेकिन जरूरत से ज्यादा बढ़िया नहीं होता। दूध से सिर्फ कैल्शियम और विटामिन डी ही मिलता है, एक सम्पूर्ण आहार में विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट के लिए फल और सब्जियां शामिल की जानी चाहिए और फाइबर तथा कार्बोहाइड्रेट के रूप में साबुत अनाज शामिल किया जाना चाहिए ताकि शरीर को ऊर्जा मिल सके। याद रखें, दूध संतुलित आहार का हिस्सा हो सकता है, लेकिन बढ़ते बच्चे के लिए दूध पोषण का एकमात्र स्रोत नहीं होना चाहिए।”
मिथक 5: बरसात के मौसम में बच्चों को सर्दी और फ्लू हो जाता है।
इस बात का जवाब देते हुए मोहाली में मदरहुड हॉस्पिटल्स के डॉ. सनी नरूला कंसल्टेंट - बाल रोग विशेषज्ञ और नियोनेटोलॉजिस्ट बताते हैं कि “जुकाम और फ्लू वायरस के कारण होता है, बारिश या ठंड के मौसम से नहीं। हालांकि इन बीमारियों के होने की संभावना मानसून के दौरान बढ़ जाती हैं, लेकिन इसका कारण बारिश नहीं है। सर्दी और फ्लू वायरस से फैलते हैं। बरसात के मौसम में वायरल जल्दी फैल जाता है इसलिए लोगों को लगता है की बरसात के मौसम में बच्चों को सर्दी और फ्लू हो जाता है। साथ ही बारिश के मौसम में बच्चे ज्यादातर घर के अंदर ही रहते हैं, जिससे संपर्क में आने से किसी ऐसे व्यक्ति से वायरस पकड़ने की संभावना बढ़ जाती है जो पहले से ही संक्रमित है।
मिथक 6: 6 महीने से पहले ठोस आहार खिलाना एलर्जी से बचाता है।
इस बात जवाब में मदरहुड हॉस्पिटल, मोहाली के डॉ. सनी नरूला कंसल्टेंट - बाल रोग विशेषज्ञ और नियोनेटोलॉजिस्ट ने बताया कि “यह एक आम धारणा है लेकिन जल्दी ठोस आहार शुरू करने से एलर्जी को रोकने में कोई मदद नहीं मिलती। वास्तव में 6 महीने से पहले ठोस आहार शुरू करना उल्टा असर डाल सकता है। एक बच्चे की अपरिपक्व पाचन और इम्यून सिस्टम पर बुरा असर हो सकता है, जिससे एलर्जी का खतरा बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। इसके लिए बाल रोग विशेषज्ञ की सलाह बहुत मायने रखती है। पहले 6 महीनों तक मां का दूध ही पोषण का आदर्श स्रोत होता है, जो सभी जरूरी पोषण देता है और एक मजबूत इम्यून सिस्टम बनाता है।”
याद रखें, आपके बाल रोग विशेषज्ञ एक स्वस्थ बच्चे के पालन-पोषण में बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। उनकी काबिलियत पर भरोसा करें। अपनी चिंताओं को उन्हें बताएं और अपने बच्चे की बेहतरी के लिए सही सलाह लें।