हर 3 मिनट में मरता है TB का एक मरीज

Friday, Aug 18, 2017 - 10:57 AM (IST)

चंडीगढ़ (पाल): पी.जी.आई. में टी.बी. का क्योर रेट 80 से 85 प्रतिशत तक है लेकिन इसके बावजूद मरीज इलाज के दौरान दवाई बीच में ही छोड़ देते हैं जिसकी वजह से यह बीमारी खतरनाक रूप ले लेती है। संस्थान में हर वर्ष करीब 200 नए टी.बी. के मरीज रजिस्टर किए जा रहे हैं। वहीं भारत में हर तीन मिनट में 1 व्यक्ति की मौत टी.बी. की वजह से होती है। वीरवार को माइक्रोबॉयल टैक्नोलॉजी संस्थान (एम.टैक) में टी.बी. के इलाज में आ रही चुनौतियों व इसके इलाज में आ रही नई दवाओं के बारें में जानने के लिए सिम्पोसियम का आयोजन किया गया। सिम्पोसियम का आयोजन स्व. डा. पॉल की याद में रखा गया था जिन्होंने 80 से ज्यादा दवाओं की खोज में अपना योगदान दिया है। यह कार्यक्रम एम.टैक के लिए इसलिए भी खास रहा क्योंकि हाल ही में एम.टैक ने टी.बी. की लैटेस्ट रिसर्च व डिवैल्पमैंट को लेकर जॉनसन एंड जॉनसन के साथ एक समझौता किया है। 


 

इलाज में काफी कारगर डा. कौल की खोज 
सिम्पोसियम में देशभर से कई डाक्टर्स ने हिस्सा लिया, वहीं पी.जी.आई. से प्लमनरी मैडीसिन विभाग के एच.ओ.डी. प्रो. डी. बैहरा व जी.एम.सी.एच.-32 के निदेशक प्रो. जनमेजा भी मौजूद रहे। इससे पहले टी.बी. की नई दवाई की खोज में संस्थान के निदेशक डा. अनिल कौल की दवाई बेडाक्यूलिन काफी कारगर साबित हो रही है। यह दवा पिछले 40 वर्षों में ऐसी पहली नई दवा है जिसे यूनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन एंड यूरोपियन यूनियन रैगुलेरटी एजैंसीस फॉर ट्रीटमैंट ऑफ एम.डी.आर. ट्यूबरकूलोसिस से मान्यता मिली है। वहीं भारत में भी वर्ष 2015 में इस दवा को गवर्नमैंट ऑफ इंडिया के नैशनल ट्यूबरक्यूलोसिस कंट्रोल प्रोग्राम का हिस्सा बनाया गया है। वहीं वर्ष 2015 में डब्ल्यू.एच.ओ. ने इस दवाई को अपनी जरूरी दवाओं की सूची में रखा है। डाक्टर अनिल कौल ने अपने करियर के 20 वर्ष टी.बी. की दवाई के खोज में दिए हैं।    

Advertising