शहर में 280 बच्चों को डाऊन सिंड्रोम

Wednesday, Sep 18, 2019 - 04:15 PM (IST)

चंडीगढ़ (पाल) : शहर में दो दिवसीय डाऊन सिंड्रोम पर वीरवार से कांफ्रैंस का आयोजन किया जा रहा है। यह पहली बार होगा कि चंडीगढ़ इस कांफ्रैंस की मेजबानी करेगा। देश भर से डाऊन सिंड्रोम के एक्सर्पट यहां हिस्सा लेंगे। कांफ्रैंस का मकसद इस डिस्ऑर्डर को लेकर अवेयरनैस बढ़ाना है। 

 

डाऊन सिंड्रोम एसोसिएशन ऑफ तमिलनाडु इसका आयोजन कर रहा है। इसकी स्थापना डॉ. सुरेखा रामचंद्रन द्वारा की गई है, जो इस मौके पर खुद मौजूद भी रहेंगी। कांफ्रैंस की खास बात यह है कि इसमें डॉक्टर्स के साथ-साथ डाऊन सिंड्रोम मरीज व उनकी फैमिली भी यहां मौजूद रहेंगी, जो डायरैक्ट अपने सवाल डाक्टर से कर पाएंगे।  

 

चंडीगढ़ डाऊन सिंड्रोम सोसायटी और ग्रिड (गर्वनमैंट रीहैब्लिएटेशन इंस्टीच्यूट फॉर इंटैलैक्चुअल डिसेबिलिटीज) के संयुक्त निदेशक डॉ. बी.एस. चवन ने बताया कि उनके पास 280 से ज्यादा डाऊन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चे ग्रिड में दाखिल हैं। इनकी पहचान ग्रिड ने नियमित साप्ताहिक डाऊन सिंड्रोम क्लीनिक के माध्यम से की है। 19 सितम्बर से होटल ललित में कांफ्रैंस शुरू होगी। 

 

बच्चे का आई.क्यू. सामान्य बच्चे से कम विकसित होता है
डॉ. बी.एस. चवन ने बताया कि  डाऊन सिंड्रोम नवजात बच्चों में पाया जाने वाला सबसे आम अनुवांशिक विकार है, जो क्रोमोजोम असमानता के कारण होता है। आम लोग अक्सर इसको मानसिक रोगों के साथ जोड़ लेते हैं और डाऊन सिंड्रोम को बौद्धिक दिव्यांगता के साथ जोड़ा जाता है। 


अक्सर इस बारे में विशेषज्ञों से बात करने की बजाए इसे नजरअंदाज किया जाता है। ऐसे बच्चों को आत्मनिर्भर और सक्षम बनाने के लिए ग्रिड लगातार काम कर रहा है। इस सिंड्रोम में बच्चे का आई.क्यू. सामान्य बच्चे से कम विकसित होता है। 

 

बिहेवियर थैरेपी है काफी कारगर 
पी.जी.आई. में भी अर्ली इंटरवेंशन प्रोग्राम के माध्यम से डाऊन सिंड्रोम से प्रभावित बच्चों और उनके मां-बाप की मदद की जाती है। दो की बजाए क्रोमोसोम की संख्या तीन होने की वजह से नवजात बच्चों को यह सिंड्रोम होता है। पी.जी.आई अर्ली इंटरवेंशन प्रोग्राम में बिहेवियर थैरेपी से इन बच्चों के बिहेवियर को ठीक किया जा सकता है।

 

कई एक्टिवीटिज भी होंगी 
सेल्फ-एडवोकेट्स (डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों) के लिए कई एक्टीविटी को आयोजित करने की योजना बनाई गई है ताकि डाऊन सिंड्रोम की बारीकियों को समझने में मदद मिल सके और उनका समाधान किया जा सके। 

pooja verma

Advertising