सस्ते रॉ मैटीरियल दिला सकते हैं ऑटो पार्ट्स सैक्टर को राहत

Wednesday, Jan 18, 2017 - 12:31 PM (IST)

लुधियाना: ‘बजट की बात पंजाब केसरी के साथ’ सीरीज नें आज हम बात करेंगे पंजाब के ऑटो पार्ट्स सैक्टर की। ऑटो पार्ट्स निर्माण में जुटी इकाइयां मुख्य रूप से लुधियाना, जालंधर, फगवाड़ा, गोराया व मोहाली में स्थापित हैं।

 
इनमें कास्टिंग प्रक्रिया के लिए कौशल रखने वाली जालंधर इंडस्ट्री में कास्टिंग ऑटो पार्ट्स और लुधियाना में फोर्जिंग पार्ट्स निर्माण में जुटी इकाइयों की बाहुल्यता है। पंजाब ऑटो पार्ट्स इकाइयां मुख्यत: ओरिजनल इक्विपमैंट मैन्युफैक्चरर (ओ.ई.एम.) सैक्टर में जुड़े हुए 50 हजार करोड़ सालाना कारोबार कर रही है। इसमें 20 प्रतिशत निर्यात के साथ ये इकाइयां 5 लाख लोगों को रोजगार देते हुए रिप्लेसमैंट बाजार की मांग की पूॢत भी कर रही हैं। सस्ते रॉ मैटीरियल की उपलब्धता से ऑटो पार्ट्स सैक्टर को राहत मिल सकती है। ऑटो पार्ट्स के निर्माताओं को बजट में क्या चाहिए। इस बारे में इस सैक्टर से जुड़े से बात की गई। 

टैक्स सलैब को कम करने की जरूरत
देश में कारोबारियों के लिए इन्कम टैक्स व कार्पोरेट टैक्स का स्लैब काफी ज्यादा है, जिसे कम करने की जरुरत है। भारत में ऑटो पार्ट्स पर सरचार्ज सहित लग रहे कार्पोरेट टैक्स 34.60 प्रतिशत के विपरीत अन्य देशों में कार्पोरेट टैक्स हांगकांग 16.5 प्रतिशत, चाइना 25 प्रतिशत, जर्मनी 29.65 प्रतिशत और जापान में 32.11 प्रतिशत है। 

अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में कायम रहने के लिए सरकार को कार्पोरेट टैक्स की स्लैब को न्यूनतम व इन्कम टैक्स की स्लैब व छूट को बढ़ाने की जरूरत है। इसी प्रकार एक्साइज ड्यूटी को भी कम करते हुए 10 प्रतिशत किया जाना चाहिए।
-उपकार सिंह आहूजा, न्यू स्वैन मल्टीटैक लिमिटेड, लुधियाना।

थाईलैंड एवं वियतनाम की तर्ज पर सरल हों सरकारी पॉलिसियां
थाईलैंड एवं वियतनाम सरकार द्वारा इंडस्ट्री को प्रोत्साहित करने के लिए सरल इंडस्ट्रीयल पॉलिसियों का गठन किया गया है, वहीं भारत से फ्री ट्रेड एग्रीमैंट के तहत इन देशों से भारत में निर्यात पर कोई ड्यूटी नहीं है, जिसके चलते देश की कई ऑटो पार्ट्स इकाइयों ने महंगी डाई के नए प्लांट उन देशों में स्थापित कर घरेलू मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों को कम्पीटीशन देना आरंभ कर दिया है। अगर भारत सरकार भी इंडस्ट्रीयल पॉलिसियों को सरलीकृत करे तो पार्ट्स निर्माता कम्पनियों को राहत मिलेगी।
-सुरेश मुंजाल, सत्यम आटो कम्पोनैंट्स लिमिटेड, लुधियाना।

मशीनों की डैप्रीसिएशन लिमिट बढ़ाने की जरूरत
केन्द्र सरकार द्वारा गत दिनों मशीनरी पर डैप्रीसिएशन लिमिट को कम किया गया है, जिसे बढ़ाने की जरूरत है। वर्तमान समय में ऑटोमेशन के मद्देनजर सी.एन.सी. मशीनों की कीमत 50 लाख से 1 करोड़ तक पहुंच चुकी है। इतनी महंगी मशीनों पर डैप्रीसिएशन कम होने से मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर नई टैक्नोलॉजी अपग्रेडेशन का सुस्त रवैया अपनाकर पिछड़ जाएगी।
-सुरिन्द्र निक्कू महिन्द्रू, निक्स इंडिया, लुधियाना।

इंडस्ट्री को मिले सस्ती ब्याज दरों पर लोन
हाऊसिंग लोन की तर्ज पर बिजनैस सैक्टर के लिए भी ब्याज दरें कम करने की जरूरत है। नोटबंदी के चलते इंडस्ट्री व कारोबारियों को हुए भारी नुक्सान की भरपाई के लिए सरकार को इंडस्ट्रीयल व कारोबारी लोन की ब्याज दरें 6 प्रतिशत तक करने की जरूरत है। सरकारी आंकड़ों अनुसार ऑटो पार्ट्स सैक्टर देश की जी.डी.पी. में सबसे ज्यादा योगदान दे रहा है। इस सैक्टर को राहत मिलती है तो इकाइयों को प्लेइंग फील्ड मिलेगा और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
-निखिल कपूर, जे.एम.पी. इंडस्ट्रीज, जालंधर।

एम.एस.एम.ई. की निवेश लिमिट दोगुनी की जाए
सरकार द्वारा इंडस्ट्री को माइक्रो, स्माल व मीडियम सैक्टर 3 कैटेगरी में बांटा गया है। इसमें माइक्रो के लिए अलग पॉलिसी एवं स्माल व मीडियम के लिए अलग पॉलिसी है। टैक्नोलॉजी के इस दौर में अत्याधुनिक मशीनों की कीमत पहले के मुकाबले बहुत बढ़ चुकी है, इसलिए सरकार को इन कैटेगरीज में निर्धारित निवेश लिमिट को दोगुना करने की आवश्यकता है।
-वाई.पी. बजाज, यशिक इंडस्ट्रीज, लुधियाना। 

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