जानें कैलेंडर ईयर और फाइनैंशल ईयर में क्यों है अंतर, पढ़ें पूरी खबर

punjabkesari.in Monday, Apr 01, 2019 - 11:28 AM (IST)

नई दिल्लीः आज से नया वित्त वर्ष शुरू हो चुका है, अधिकतर वित्तीय कामों जैसे कॉर्पोरेट रिजल्ट्स और टैक्स प्लानिंग के लिए इस दिन की खास अहमियत होती है। अब सवाल यह है कि आखिर कैलेंडर ईयर (जनवरी से दिसंबर) से अलग फाइनैंशल ईयर (वित्तीय वर्ष) को क्यों बनाया गया है। 

इतिहास 
अप्रैल-मार्च फाइनैंशल ईयर को भारत में 1867 में ब्रिटिश (ईस्ट इंडिया कंपनी) द्वारा लाया गया था। उन्होंने अकाउंटिंग के ग्रेगोरियन कैलेंडर सिस्टम को फॉलो किया। इससे पहले भारत में 1 मई से 30 अप्रैल तक फाइनैंशल ईयर चलता था। स्वतंत्रता के बाद अप्रैल-मार्च फाइनैंशल ईयर सिस्टम को बरकरार रखा गया। 

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बदलाव क्यों? 
भारत में कई बार फाइनैंशल ईयर में बदलाव करने के बारे में सोचा गया। 1984 में इस मामले पर विचार-विमर्श के लिए एलके झा कमेटी का गठन हुआ और इसने जनवरी से वित्तीय वर्ष शुरू करने का सुझाव दिया। हालांकि, सरकार आगे नहीं बढ़ी और कोई बदलाव नहीं किया गया। सरकार ने सोचा कि फाइनैंशल ईयर बदलने से बड़ा फेरबदल होगा और ऐसा करने के लिए टैक्स कानून और सिस्टम में सुधार करने के साथ-साथ डेटा कलेक्शन में भी बदलाव करने होंगे। 

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बदलाव का समय आ गया है? 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैलेंडर ईयर के साथ फाइनैंशल ईयर शुरू करने के पक्षधर हैं। 2016 में सरकार ने पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार शंकर आचार्य की अध्यक्षता वाली उच्च-स्तरीय कमेटी गठित की। इस कमेटी को फाइनैंशल ईयर को 1 जनवरी से शुरू करने में होने वाली संभावनाओं के अध्य्यन के लिए गठित किया गया था। कमेटी ने 2016 में ही अपनी रिपोर्ट सबमिट कर दी और तब से अभी तक यह 'इस पर सोच-विचार' चल रहा है। बदलाव के लिए जिन कारणों को बताया गया, उनमें शामिल हैं: मौजूदा सिस्टम को बिना भारतीय संस्कृति और रिवाज या भारतीय अधिकारियों की सुविधाओं को तवज्जो दिए बिना चुना गया था। इसके अलावा यह इंटरनैशनल सिस्टम से अलग है। 2017 में सरकार ने यूनियन बजट पेश करने की तारीख भी फरवरी के आखिरी दिन से बदलकर इसके पहले सप्ताह में कर दी थी। 

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jyoti choudhary

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