Global Payments: ग्लोबल पेमेंट में डॉलर की हिस्सेदारी 49% पर पहुंची, यूरो में गिरावट
punjabkesari.in Monday, Oct 28, 2024 - 11:58 AM (IST)
बिजनेस डेस्कः अमेरिका की करेंसी डॉलर पिछले करीब आठ दशक से दुनिया पर राज कर रही है। दुनिया की कई देशों की करेंसीज ने इसे टक्कर देने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाई। दुनिया के ग्लोबल सिस्टम में डॉलर की हिस्सेदारी 49% पहुंच चुकी है जो 12 साल में सबसे ज्यादा है। स्विफ्ट के आंकड़ों में यह बात सामने आई है। पिछले दो साल में ग्लोबल पेमेंट्स (global payments) में डॉलर की हिस्सेदारी 9 फीसदी बढ़ चुकी है। डॉलर में हाल में आई तेजी ने सोने की चमक को भी कम कर दिया है। रोज-रोज नए रिकॉर्ड बना रहा सोना शुक्रवार को डॉलर की मजबूती के आगे पस्त हो गया। सोमवार को भी डॉलर के मजबूत होने से सोने की कीमत में कमी आई।
डॉलर की बढ़ती धमक ने यूरो के जोश को भी ठंडा कर दिया है। पिछले दो साल में ग्लोबल पेमेंट्स में यूरो की हिस्सेदारी 39 फीसदी से घटकर 21 फीसदी रह गई है। यह एक दशक में सबसे कम है। इस बीच चीन की करेंसी युआन की हिस्सेदारी दो फीसदी से बढ़कर पांच फीसदी पहुंच गई है लेकिन डॉलर के सामने उसकी हैसियत कुछ भी नहीं है। हाल के वर्षों में इस बात पर काफी चर्चा हुई है कि यूएस डॉलर अपनी चमक खो रहा है लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। डॉलर कमजोर होने के बजाय और मजबूत होता जा रहा है।
कैसे बढ़ता गया डॉलर
अमेरिकी डॉलर ने लगभग आठ दशकों तक दुनिया की इकॉनमी पर एकछत्र राज किया है। इसे दुनिया के सबसे सुरक्षित असेट्स में से एक माना जाता है। आपसी कारोबार के लिए दुनिया इस करंसी पर निर्भर रही है। साल 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो उसके खिलाफ अमेरिका की अगुआई में पश्चिमी देशों ने कई तरह के वित्तीय प्रतिबंध लगा दिए थे। रूस के विदेशी मुद्रा भंडार का करीब आधा हिस्सा फ्रीज कर दिया गया। इससे कई देश डॉलर से दूरी बनाना चाहते थे। लेकिन डॉलर को कमजोर करने के सारे प्रयास अब तक फलीभूत नहीं हुए हैं। दुनियाभर के सेंट्रल बैंक्स के खजाने में आज भी डॉलर सबसे ज्यादा है।
यूक्रेन संकट को चीन ने आपदा में अवसर की तरह देखा। अमेरिका के साथ उसका पहले से ही ट्रेड वॉर चल रहा है। उसे लगा कि अमेरिका आगे चलकर यही रणनीति उसके साथ भी अपना सकता है। इसे देखते हुए चीन ने रूस के साथ मिलकर अपना वित्तीय ढांचा तैयार करना शुरू किया। चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी है, जबकि रूस दुनिया का सबसे बड़ा एनर्जी एक्सपोर्टर है। रूस और चीन तेल के कारोबार के लिए युआन यूज करने के पक्ष में थे। सऊदी अरब ने भी कच्चे तेल के बदले में चीन से युआन में भुगतान लेने की इच्छा जताई थी।
ब्रिक्स की करेंसी
आज दुनिया के केंद्रीय बैंकों के पास जो विदेशी मुद्रा भंडार है, उसका करीब 60% डॉलर में है। चीन की करंसी युआन का हिस्सा 3-4 फीसदी है। लेकिन अभी उसे लंबा रास्ता तय करना है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि दुनिया के देश चीन पर भरोसा नहीं करते हैं। जानकार मानते हैं कि कोई अन्य मुद्रा निकट भविष्य में डॉलर को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। लेकिन ये हो सकता है कि डॉलर के साथ कोई एक और मुद्रा भी धीरे-धीरे उभरे। गोल्डमैन सैक्स ग्रुप के पूर्व चीफ इकॉनमिस्ट जिम ओ नील का कहना है कि ब्रिक्स देशों (ब्राजील, चीन, भारत, साउथ अफ्रीका) को इस पर पहलकदमी करनी चाहिए।