उर्जित पटेल की किताब ने खोले कई राज, बताया- किस बात पर थी सरकार से अनबन

Saturday, Jul 25, 2020 - 11:53 AM (IST)

बिजनेस डेस्कः भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ने खुलासा किया है कि वह जब RBI गवर्नर के पद पर थे तो किस बात को लेकर सरकार के साथ अनबन हुई थी। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने उस वक्त बैंकरप्सी लॉ के नियमों को ढीला करने का आदेश दिया था जिसपर पटेल राजी नहीं थे और यहीं से सरकार के साथ RBI गवर्नर का मतभेद शुरू हो गया।

किताब में लिखी यह बातें
सितंबर 2016 से लेकर दिसंबर 2018 तक RBI के गवर्नर पद पर रहे पटेल ने ये बात अपनी नई किताब Overdraft — saving the Indian saver में लिखी है, जिसमें उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिखा, लेकिन 2018 के मध्य के जिस वक्त की बात वह कर रहे हैं, वह वो दौर था जब पीयूष गोयल को कुछ वक्त के लिए वित्त मंत्री का कार्यभार सौंपा गया था। ये वक्त था मई 2018 से लेकर अगस्त 2018 के बीच का।

पटेल ने अपनी किताब में लिखा है कि 2018 के मध्य में दिवालिया मामलों के लिए नरमी वाले फैसले लिए गए, जब अधिकतर कामों के लिए वित्त मंत्री और उर्जित पटेल मामलों से जुड़ी बातों को लेकर एक ही लेवल पर थे। मई 2018 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली दिवालिया कानून का नेतृत्व कर रहे थे, लेकिन बीमारी की वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा और तत्कालीन ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल को वित्त मंत्री का कार्यभार सौंप दिया गया। 2018 में पीयूष गोयल ने मीडिया से बात करते हुए कहा सर्कुलर में नरमी लाने की बात कही और बोले कि किसी भी लोन को 90 दिनों के बाद एनपीए नहीं कहा जा सकता।

RBI चाहता था कि बैंकरप्सी कानून हो सख्त 
उन्होंने बताया कि आरबीआई चाहता था कि बैंकरप्सी कानून को सख्त बनाया जाए ताकि भविष्य में जो कंपनियां डिफॉल्ट करने की फिराक में हों उन्हें सबक मिले। फरवरी 2018 में आरबीआई की तरफ से एक सर्कुलर जारी किया गया था। इसमें कहा गया था कि जो भी लेनदार राशि नहीं चुका रहा है उन्हें डिफॉल्टर्स की लिस्ट में डाला जाए। इसके अलावा सर्कुलर में यह भी कहा गया था कि जो कंपनी डिफॉल्ट कर जाएगी उसके प्रमोटर इनसॉल्वेंसी ऑक्शन के दौरान कंपनी में हिस्सेदारी बायबैक नहीं कर सकते हैं।

नोटबंदी पर नहीं कही कोई बात
उर्जित पटेल ने अपने पद से 8 महीने पहले ही इस्तीफा दे दिया था। उनकी किताब में कहीं थी भारतीय रिजर्व बैंक और इसके बोर्ड या वित्त मंत्रालय के बीच के रिश्तों को लेकर कोई बात नहीं कही गई है। वहीं 2016 में उर्जित पटेल के कार्यकाल के दौरान लागू की गई नोटबंदी का किताब में कहीं भी जिक्र नहीं किया गया है। उर्जित पटेल के कार्यकाल के दौरान करीब 10 लाख करोड़ रुपए के बैड लोन की रिकवरी की गई। पटेल ने अपनी किताब में लिखा है कि लगातार निगरानी होती रहनी चाहिए।

सरकार पर भी लगाए आरोप
उर्जित पटेल ने अपनी किताब में RBI के स्वामित्व में सरकार की प्रधानता और निर्देशों के आधार पर कर्ज देने को फाइनेंशियल सेक्टर की दिक्कतों में गिनाया है। उन्होंने सरकार और पब्लिक सेक्टर बैंकों के बीच के फासले को कम करने पर भी चेताया है और कहा है कि इससे सरकार का कर्ज और बढ़ सकता है। उन्होंने रीयल एस्टेट प्रोजेक्ट्स को बेल आउट करने के लिए सरकार की ओर से शुरू किए गए SBI-LIC फंड को लाने पर भी चिंता जताई और कहा कि केंद्र सरकार की ओर से मुद्रा क्रेडिट स्कीम ला देना पैसे ट्रांसफर करने जैसा ही है। बता दें कि वह LIC द्वारा IDBI बैंक के खरीदे जाने के खिलाफ थे, जिसकी घोषणा अगस्त 2018 में की गई थी।
 

jyoti choudhary

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