एसोचैम और PWC के अध्ययन में हुआ यह बड़ा खुलासा

Monday, Jul 03, 2017 - 10:26 AM (IST)

नई दिल्ली: देश में दिसम्बर, 2016 तक करीब 13,363 मैगावाट की जलविद्युत परियोजनाएं ठंडे बस्ते में पड़ी हैं। इससे इनकी लागत 52,697 करोड़ रुपए बढ़ गई है। यह खुलासा एसोचैम और प्राइज वाटरहाऊस कूपर्स (पी.डब्ल्यू.सी.) की ओर से संयुक्त रूप से किए गए ताजा अध्ययन में हुआ।

अध्ययन के अनुसार देश में जलविद्युत की अपार संभावनाओं के बावजूद अब तक सिर्फ 30 प्रतिशत क्षमता का दोहन किया गया है। सतत ऊर्जा सुरक्षा के लिए देश में जलविद्युत उत्पादन को बढ़ावा देने के शीर्षक से प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार केंद्र की करीब एक-चौथाई यानी 24 प्रतिशत जलविद्युत परियोजनाओं में स्थानीय एवं कानून व्यवस्था से जुड़े मुद्दों तथा 21 प्रतिशत में भू-गर्भीय, जलविज्ञान और जमीन की बनावट के कारण विलंब हो रहा है।

35 प्रतिशत परियोजनाएं ठेके संबंधी विवादों कारण लटकीं
राज्यों की इन परियोजनाओं में से 35 प्रतिशत ठेके संबंधी विवादों तथा निजी क्षेत्र की 35 प्रतिशत परियोजनाएं भू-गर्भीय तथा जमीन की बनावट से जुड़े मुद्दों के कारण लटक गई हैं। अध्ययन में इन परियोजनाओं से जुड़े विभिन्न पक्षों में समन्वय के लिएक ‘जलविद्युत आयोग’ के गठन की संभावना पर विचार करने, समर्पित पारेषण गलियारा बनाने तथा परियोजना के आसपास सामाजिक-आर्थिक चिंताओं को दूर करने का सुझाव दिया गया है। इन परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण की कठिनाइयों को दूर करने के लिए सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के साथ जनभागीदारी का माडल अपनाए जाने और इनके लिए अलग से कोष बनाने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा परियोजनाओं का विकास करने वालों से सामाजिक एवं पर्यावरण संबंधी संसाधनों के वित्तीय मूल्य का आकलन करने की भी बात कही गई है।

17,000 करोड़ की पनबिजली नीति पर विचार कर सकता है मंत्रिमंडल
केंद्रीय मंत्रिमंडल इस महीने पनबिजली नीति को मंजूरी दे सकता है। इस नीति के तहत 11,639 मैगावाट क्षमता की 40 अटकी पनबिजली परियोजनाओं को 16,709 करोड़ रुपए का सहयोग उपलब्ध कराया जाएगा। नीति के तहत ऐसे सभी उपक्रमों को अक्षय ऊर्जा का वर्गीकरण दिया जाएगा। एक सूत्र ने कहा कि बिजली मंत्रालय ने नीति को पिछले महीने अंतिम रूप दिया था। इसे वित्त मंत्रालय के पास समीक्षा के लिए भेजा गया है जिसके बाद इसे मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाएगा। सूत्र ने कहा कि इस नीति को इसी महीने केंद्रीय मंत्रिमंडल के पास मंजूरी के लिए रखा जा सकता है। एक बार नीति को मंजूरी के बाद बड़ी और छोटी पनबिजली परियोजनाओं के बीच भेद समाप्त हो जाएगा। इससे भारत 2022 तक 225 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्य को हासिल कर सकेगा। 

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