नई वित्त मंत्री निर्मला के सामने होंगी ये 10 बड़ी चुनौतियां

Friday, May 31, 2019 - 04:01 PM (IST)

बिजनेस डेस्कः मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वाणिज्य एवं उद्योग और फिर रक्षा मंत्री रहीं निर्मला सीतारमण को अब वित्त मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया है। तमिलनाडु के एक साधारण परिवार में 18 अगस्त 1959 को जन्मीं सीतरमण ने मंत्री के रूप में अपने काम से सबको प्रभावित किया है लेकिन वित्त मंत्री के रूप में अब उनकी असली परीक्षा होगी। उन्हें ऐसे समय में यह जिम्मेदारी मिली है, जब अर्थव्यवस्था के सामने कई बड़ी चुनौतियां खड़ी हैं। आइए एक नजर डालते हैं कि निर्मला को किन बड़ी मुश्किलों का सामना करना है।

अर्थव्यवस्था में सुस्ती
देश की आर्थिक विकास दर पांच तिमाहियों के निचले स्तर 6.6% पर पहुंच गई है और अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि ग्रामीण खपत मांग में गिरावट और तेल की कीमतों में धीमी वृद्धि से हालत और बदतर हो सकती है। ऐसे में सीतरमण के सामने सबसे बड़ी चुनौती विकास रफ्तार को 7 फीसदी या इससे अधिक पर बनाए रखने की होगी। 

तेल से खाद्य पदार्थों तक पर महंगाई की आंच 
मोदी सरकार को 2014 से 2019 तक महंगाई के मोर्चे पर दिक्कत नहीं हुई। ईंधन और खाद्य पदार्थों के दाम कम रहे, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि इनके दाम बढ़ने लगे हैं। पश्चिमी एशिया के तेजी से बदलते हालातों की वजह से तेल के दामों में आग लग सकती है तो हाल ही में जारी आंकड़े दिखाते हैं कि लंबे समय तक नरमी के बाद खाद्य पदार्थों के होलसेल दाम में वृद्धि हो रही है। 

रोजगार का संकट 
नए वित्त मंत्री को रोजगार के मोर्चे पर भी कड़ी मेहनत करनी होगी। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में रोजगार एक बड़ा मुद्दा रहा। रोजगार के मुद्दे ने 2014 नरेंद्र मोदी को सत्ता दिलाई, लेकिन रोजगार संकट को लेकर विपक्ष लगातार उनपर हमलावर रहा। अब संभावित आर्थिक मंदी से रोजगार के नए अवसर पैदा करने में चुनौती और बढ़ जाएगी। 

मैन्युफैक्चिरिंग में कमी 
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी कमजोरी बनी हुई है। औद्योगिक उत्पादन मार्च में 21 महीने के निचले स्तर (-) 0.1 पर आ गया। जानकारों का कहना है कि भारत को चीन की तरह मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर विशेष जोर देने की जरूरत है। 

डिमांड में सुस्ती 
अगली सरकार के लिए एक और बड़ी चुनौती डिमांड में कमी की वजह से आने वाली आर्थिक सुस्ती होगी। एफएमसीजी से पैसेंजर वीइकल तक कंज्यूमर डिमांड में कमी से इकॉनमी को जोर का झटका लगा है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 के आखिरी तीन महीनों में एफएमसीजी सेक्टर की वृद्धि दर 16 फीसदी थी और इस साल के पहले तीन महीनों में गिरकर 13.6 फीसदी रह गई है। ग्रामीण इलाकों में जरूरी वस्तुओं की बिक्री में सबसे ज्यादा गिरावट आई है। 

पब्लिक असेट से नकदी 
नए वित्त मंत्री को रेल ट्रैक, सड़कों, बंदरगाहों और पावर यूनिट्स से फंड जुटाने के बारे में विचार करना होगा। नई सरकार के खजाने में इजाफा करने के लिए नए स्पेक्ट्रम की भी नीलामी हो सकती है। 

जीएसटी 2.0 
18 और 28 प्रतिशत के जीएसटी स्लैब से अब भी लोगों को दिक्कत है इसलिए इसको दो मुख्य स्लैब में मर्ज करने की जरूरत है। बीजेपी के मैनिफेस्टो में भी जीएसटी को सरल करने की बात कही गई थी। हो सकता है सरकार इस बारे में कोई मजबूत कदम उठाए। 

कुछ बड़े बैंकों का विकास 
मोदी सरकार-2 के अंतर्गत कुछ और बैंकों का मर्जर करके बड़े पांच बैंकों का विकास किया जा सकता है। इसके बाद सरकार इनको कैपिटल देकर मजबूत बनाने का काम कर सकती ही। 

NBFCs के लिए तरलता 
NBFCs के कुछ असेट खरीदकर सरकार इन्हें बचाने का कदम उठाना होगा। इसे बॉन्ड से खरीदकर अन्य स्रोतों को विकसित करने पर ध्यान दिया जा सकता है। 

किसानों का सशक्तीकरण 
किसानों की आय को बढ़ाना मोदी सरकार के मैनिफेस्टो में था। सरकार को किसान के लिए बाजार तैयार करने की जरूरत है जिससे वह अपने उत्पाद को आसानी से बेच सके। इसके अलावा कई अन्य योजनाओं की भी जरूरत पड़ेगी। 
 

jyoti choudhary

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