सोने की खदान की नीलामी से सरकार को मिलेंगे 50 हजार करोड़ रुपए

Saturday, Dec 31, 2016 - 02:49 PM (IST)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद खदानों की नीलामी के मामले में केंद्र सरकार का राजस्व 50,000 करोड़ तक बढ़ सकता है। कोर्ट ने सभी प्रमुख खनिज खदानों के पट्टे के लिए लंबित आवेदनों को निष्फल करार दिया है। पिछले साल यूपीए सरकार द्वारा कोल ब्लॉक आवंटन में अनियमितता बरतने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसे अवैध करार दिया था। जिसके बाद खान और खनिज (विकास और विनियमन) ऐक्ट में संशोधन के जरिए नीलामी का रास्ता तैयार किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्राकृतिक संसाधन राष्ट्र की संपत्ति हैं और उन्हें नीलामी के जरिए ही किसी को दिया जाना चाहिए। समस्या तब पैदा हुई जब देश के कई हाई कोर्ट्स ने प्रमुख खनिजों की निकासी के लिए खनन पट्टे हासिल करने के लिए केंद्र सरकार के पास लंबित पड़े आवेदनों की स्थिति के बारे में परस्पर विरोधी निर्णय दिया। कुछ हाई कोर्टों ने कहा कि इन आवेदकों को पट्टा पाने की वैध उम्मीद है। सरकार को इन खदानों की नीलामी से तकरीबन 50,000 करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद है।

भूषण पॉवर ऐंड स्टील लिमिटेड ने ओडिशा के संबलपुर जिले में एक लोहा और इस्पात संयत्र स्थापित करने का प्रस्ताव रखा था और पास के इलाकों में पट्टा हासिल करने के लिए आवेदन किया था। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी के पक्ष में आदेश देते हुए राज्य सरकार से भूषण स्टील को दो ब्लॉक में खनन पट्टा देने के लिए केंद्र से सिफारिश करने को कहा।

भूषण स्टील की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बबल और पी. चिदंबरम ने कहा कि चूंकि राज्य सरकार ने कंपनी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं इसलिए वह अपना फैसला वापस नहीं ले सकती। उन्होंने तर्क दिया कि राज्य सरकार ने खनन के पट्टे के लिए केंद्र से याचिकाकर्ता कंपनी के नाम की सिफारिश की थी इसलिए केंद्र MMDR ऐक्ट और नियमों में संशोधन के आधार पर पट्टा देने से इनकार नहीं कर सकता। दोनों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 2012 के फैसले के मुताबिक न चलकर राज्य सरकार ने कोर्ट की अवमानना की है।

केंद्र की तरफ से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केवल ओडिशा सरकार को भूषण स्टील को लौह अयस्क खनन पट्टा अनुदान देने की सिफारिश करने को कहा था, जो कि हो चुका है। इसलिए अब राज्य सरकार की ओर से न्यायालय की अवमानना का सवाल ही नहीं उठता।

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