इस्पात क्षेत्र को सहारा देगी सरकार

Tuesday, Dec 08, 2015 - 10:45 AM (IST)

नई दिल्लीः मुश्किलों में फंसे देसी इस्पात उद्योग को सरकार सहारा देने जा रही है। केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार इसी हफ्ते के अंत तक सभी इस्पात उत्पादों के लिए न्यूनतम आयात मूल्य (एमआईपी) तय करने जा रही है। सभी 14 श्रेणियों में बेस (आधार) और विशेष ग्रेड के उत्पादों पर अलग-अलग शुल्क लिए जाएंगे।

वाणिज्य विभाग एमआईपी लगाए जाने के संबंध में अधिसूचना जारी कर सकता है। इससे एक आधार मूल्य तय हो जाएगा, जिससे कम मूल्य पर इस्पात का आयात भारत में नहीं हो सकेगा। सरकार ने इससे पहले घरेलू इस्पात उद्योग को सुरक्षा देने के लिए हॉट रॉल्ड कॉयल पर 20 प्रतिशत अस्थायी सेफगार्ड शुल्क लगाया था। इस्पात मंत्रालय ने पिछले सप्ताह 14 श्रेणियों की एक व्यापक सूची वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय को भेजी थी। इस सूची में कबाड़, सेमी फिनिश्ड उत्पादों, क्वार्टो प्लेट, कोल्ड रोल्ड कॉयल, कोटेड फ्लैट स्टील उत्पाद, सभी प्रकार के स्टील पाइप एवं ट्यूब, स्टेनलेस स्टील के फ्लैट रोल्ड उत्पाद और छड़ समेत 40 से अधिक उत्पाद शामिल हैं।

विदेश व्यापार महानिदेशालय जल्द ही इस सूची को अधिसूचित कर सकता है। प्रस्तावित एमआईपी का उल्लंघन रोकने के लिए सरकार एक प्रणाली लागू कर सकती है। इस प्रणाली के अनुसार यदि मूल स्थान पर रवाना होने के लिए तैयार इस्पात की कीमत रसीद या बिल में दी गई कीमत से कम होती है तो एमआईपी तय करने के लिए प्रमुख इस्पात सूचकांकों में सूचीबद्घ कीमत का इस्तेमाल किया जाएगा।

हालांकि अगर आयात किए जा रहे इस्पात का इस्तेमाल ऐसे उत्पाद बनाने में किया जाना है, जिन्हें निर्यात कर दिया जाएगा तो वाणिज्य विभाग निर्यातकों को एमआईपी से मुक्त कर देगा। लेकिन इस छूट का दुरुपयोग रोकने के लिए विभाग दो विकल्पों पर विचार कर रहा है। इनके तहत छह महीने के भीतर ही निर्यात कर देने के लिए बाध्य किया जाएगा और एमआईपी तथा वास्तविक मूल्य को रिफंड किया जाएगा।

विदेशी व्यापार (विकास एवं नियमन) अधिनियम की धारा 3 और 5 तथा सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 11 में इस प्रकार के आधार मूल्य की अधिसूचना जारी किए जाने का प्रावधान है। किसी उत्पाद के औसत वैश्विक मूल्य तथा सेफगार्ड एवं एंटी डंपिंग कार्यवाही के दौरान भारत में प्रचलित कीमत में से जो भी कम होगी, उसी को एमआईपी माना जाएगा। घरेलू इस्पात कंपनियों इस समय जबरदस्त दबाव में हैं और 30 सितंबर, 2015 को समाप्त तिमाही में इसे कुल 4,238 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। पिछले साल 30 सितंबर को खत्म तिमाही में उद्योग को 4,647 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ था। केयर रेटिंग्स के अनुसार 145 इस्पात एवं लोहा कंपनियों पर 2.98 लाख करोड़ रुपये कर्ज है और इनका डेट टु इकिवटी अनुपात 1.27 है, जो बेहद चिंताजनक है। इस मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बताया कि देसी इस्पात उद्योग को बचाने के लिए ही ऐसा किया जा रहा है। उसने बताया कि भारत ऐसे चुनिंदा देशों में है, जहां इस्पात उत्पादों की मांग बढ़ रही है लेकिन उन्हें बनाने वाली कंपनियां घाटे में चल रही हैं।

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