खदानों के पट्टे की अवधि समाप्त होने से मार्च के बाद इस्पात उद्योग के समक्ष आ सकते हैं व्यवधानः सेल

Saturday, Dec 21, 2019 - 04:14 PM (IST)

नई दिल्लीः सरकारी इस्पात कंपनी सेल ने शनिवार को कहा कि कई कोयला व लौह अयस्क खदानों के पट्टे की अवधि समाप्त होने के कारण मार्च 2020 के बाद इस्पात उद्योग के समक्ष व्यवधान उपस्थित हो सकता है। अगले साल मार्च में कोयला तथा लौह अयस्क के कई खदानों का पट्टा समाप्त होने वाला है।

खदान एवं खनिज (विकास एवं नियमन) संशोधित अधिनियम के अनुसार, इस बार इन पट्टों का नवीकरण नहीं किया जाएगा बल्कि इनकी नए सिरे से नीलामी की जाएगी। सेल के चेयरमैन अनिल कुमार चौधरी ने फिक्की द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के ‘भारत: पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का खाका' सत्र में कहा, ‘‘कानून में बदलाव की वजह से अभी संभवत: सारी प्रक्रियाएं नीलामी के रास्ते से होकर गुजरेंगी, इससे कई सारी दिक्कतें खड़ी हो रही हैं और इन नीलामियों के कारण इस्पात उद्योग को एक अप्रैल 2020 से व्यवधान का सामना करना पड़ सकता है।'' चौधरी ने कहा कि इस्पात उद्योग के लिए चिंता का एक और विषय उच्च इनपुट लागत है। अभी देश में इस्पात की उत्पादन लागत सर्वाधिक है और इसका एक मुख्य कारक करों की दरें हैं।

उन्होंने कहा कि चाहे कोयला हो या लौह अयस्क, इनपुट सामग्री पर रॉयल्टी करीब 20 फीसदी है। ढुलाई की लागत भी अन्य देशों की तुलना में अधिक है। बिजली के कारण भी उत्पादन लागत बढ़ रही है। चौधरी ने कहा, ‘‘भारत में प्रति टन इस्पात की औसत उत्पादन लागत करीब 450 डॉलर है, जबकि चीन में यह 350 डॉलर है। चीन में इस्पात उद्योग को कर की कम दरें तथा सरकारी प्रोत्साहन का लाभ मिल रहा है।'' उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक लौह अयस्क का सवाल है, हमारे पास यह पर्याप्त मात्रा में है। एकमात्र मुद्दा प्रस्तावित वैधानिक नीलामी है। कोकिंग कोल हमारे देश में उपलब्ध नहीं है और पूरा उद्योग जगत विशेषकर इस्पात क्षेत्र ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और अमेरिका आदि से इसके आयात पर निर्भर है।'' उन्होंने कहा कि सरकार की राष्ट्रीय इस्पात नीति के तहत इस्पात उत्पादन 30 करोड़ टन करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पाने के लिये इन सभी चुनौतियों को दूर करने की जरूरत है।

Supreet Kaur

Advertising