रिजर्व बैंक की तरफ से रेपो दरों में की जा सकती वृद्धि!

Sunday, Apr 23, 2017 - 02:11 PM (IST)

नई दिल्लीः महंगाई बढ़ने की रफ्तार अगर यही रही तो निकट भविष्य में नीतिगत ब्याज दर का चक्कर उल्टा भी घूम सकता है। देश में आम लोग और उद्योग रेपो रेट घटने की आस लगाये बैठे हैं लेकिन रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की पिछली बैठक में हुई चर्चा से संकेत मिल रहे हैं कि अगले साल रिजर्व बैंक की तरफ से रेपो दरों में वृद्धि की जा सकती है।समिति की बैठक के मिनट्स सार्वजनिक होने के बाद वित्तीय एजेंसियों ने भी ब्याज दरों को लेकर अपने रुख में बदलाव करना शुरू कर दिया है। पिछले 5 व 6 अप्रैल को मुंबई में हुई रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में अधिकांश सदस्यों ने महंगाई दर में हो रही वृद्धि को लेकर चिंता जाहिर की। इतना ही नहीं कुछ सदस्यों का तो यह भी मानना है कि नोटबंदी का महंगाई पर नकारात्मक असर भी क्षणिक साबित हो सकता है।

सदस्यों का मानना है कि सातवें वेतन आयोग की वेतन संबंधी सिफारिशों के लागू होने के बाद महंगाई तेजी से बढ़ सकती है। लोगों के पास ज्यादा नकदी होगी जो बाजार में मांग बढ़ाएगी। लिहाजा कीमतों में वृद्धि की आशंका प्रबल होगी। समिति के 6  में से अधिकांश सदस्यों ने महंगाई बढ़ने की आशंका जताई  है। कुछ सदस्यों ने तो इसे देखते हुए रेपो दरों में वृद्धि का सुझाव भी दिया है। इसे देखते हुए जापानी वित्तीय एजेंसी नोमूरा ने भी ब्याज दरों को लेकर अपने रुख में परिवर्तन कर लिया है। एजेंसी का मानना है कि 2017 की आखिरी तिमाही और 2018 की पहली छमाही महंगाई बढ़ाने वाले हो सकते हैं। लिहाजा एजेंसी मानती है कि 2018 रेपो दरों में वृद्धि का साल हो सकता है और इसमें दो चरणों में कम से कम 50 आधार अंकों यानी आधा फीसद की वृद्धि हो सकती है।
 

यह वृद्धि 2018 की तीसरी और चौथी तिमाही में हो सकती है। हालांकि छह अप्रैल को मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल ने रेपो रेट को यथावत बनाये रखने का एलान किया था। समिति के सदस्य मानते हैं नोटबंदी का असर खत्म होने के साथ-साथ खाद्य उत्पादों की कीमतों में वृद्धि शुरू होगी। मार्च के थोक महंगाई आंकड़ों से भी स्पष्ट है कि खाद्य उत्पादों की महंगाई रफ्तार पकड़ रही है। वैसे भी मौद्रिक समिति के मुताबिक बाजार में अतिरिक्त लिक्विडिटी की स्थिति बनी हुई है। मार्च खत्म होते-होते भी बाजार में 3141 अरब रुपये की नकदी उपलब्ध है। इसलिए ज्यादा नकदी उपलब्ध कराने का मतलब होगा महंगाई के खतरों को और बढ़ाना।

 

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